मनुष्य अपना शत्रु - मित्र स्वयं है | Swami Satyamitranad Ji Maharaj | Bhagwad Geeta | Pravachan
भारत माता की इस प्रस्तुति में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज ने अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण के संवाद के माध्यम से बहुत गहरी बात समझाई है।
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि यह तो अच्छा होगा कि मैं कोई कर्म न करूं और कर्म के फल से भी मुक्त हो जाऊं। बार-बार उसे यही विचार आता कि भगवान के पास इतनी शक्ति है, तो उसे खुद कुछ करने की आवश्यकता क्यों है? अगर भगवान खुद सब कुछ कर सकते हैं, तो मुझे क्यों कोई कार्य करना चाहिए? भगवान श्री कृष्ण इस विचार पर सोचते हैं कि अगर मैं ही सब कुछ करूंगा तो फिर तुम्हें संसार में भेजने का क्या उद्देश्य है?
कर्म का महत्व और आत्म-उद्धार का संदेश
यहाँ भगवान ने अर्जुन को यह समझाया कि संसार में कर्म करना ही मनुष्य का उद्देश्य है। भगवान कहते हैं, "मैंने तुम्हें मानव रूप में भेजा है, ताकि तुम अपनी शक्ति का उपयोग करो। यदि मैं ही सब कुछ कर दूं, तो लोग सिर्फ यही कहेंगे कि भगवान में शक्ति थी, वह जो चाहे कर सकते थे। लेकिन अगर तुम कर्म करते हो, तो तुम्हें यश मिलेगा, तुम समाज में आदर्श स्थापित कर सकोगे।"
भगवान श्री कृष्ण ने कहा, "अर्जुन, तुम अपना उद्धार स्वयं करो।" यही संदेश भगवान देते हैं कि मनुष्य को अपनी शक्ति का सदुपयोग करके आत्मोत्थान की ओर बढ़ना चाहिए।
उद्धत का अर्थ और आत्म-संयम का महत्व
यहाँ पर भगवान उद्धत शब्द का प्रयोग करते हैं। उद्धत का अर्थ होता है, ऊँचाई की ओर बढ़ना। जब हम अपनी शक्ति को अपने भीतर के साधनों - जैसे योग, प्राणायाम, ध्यान, संयम, और पूजा-पाठ से नियंत्रित करते हैं, तो वह शक्ति ऊपर की दिशा में जाती है और हमें ब्रह्मा की गति प्राप्त होती है।
भगवान कहते हैं, "तुम्हारा शत्रु और मित्र दोनों तुम स्वयं हो।" यदि कोई व्यक्ति अपने विवेक का सही उपयोग करता है तो वह अपना मित्र बन जाता है, लेकिन यदि वह बिना विवेक के कार्य करता है तो वही उसका शत्रु बन जाता है।
शास्त्रीय उदाहरण और निष्कर्ष
महर्षि वेदव्यास ने एक श्लोक में कहा है कि व्यक्ति को अपनी इंद्रियों को संयमित रखना चाहिए, क्योंकि इंद्रियाँ मनुष्य को पथभ्रष्ट कर सकती हैं। लेकिन अगर व्यक्ति सही मार्ग पर चलने का प्रयास करता है, तो उसका उद्धार निश्चित है।
एक उदाहरण से यह समझाते हुए स्वामी जी बताते हैं कि एक समय महर्षि जैमिनी ने किसी महिला से बात की और उसके बाद उसका शास्त्र के विपरीत आचरण किया, लेकिन जैसे ही उन्होंने भगवान के श्लोक को याद किया और आत्म-संयम रखा, उन्होंने महसूस किया कि उनका शत्रु और मित्र दोनों उनका ही मन था।
भगवान श्री कृष्ण का संदेश स्पष्ट है: हमें अपनी शक्ति का सही उपयोग करना चाहिए। जीवन में कोई भी कठिनाई आए, तो हमें अपना आत्म-संयम बनाए रखते हुए अपने जीवन को उत्थान की ओर ले जाना चाहिए।
हमारी जो भी इच्छाएँ और मानसिक भ्रांतियाँ हैं, वे केवल हमें भ्रमित करती हैं। हमें खुद को ऊपर उठाने के लिए आत्मा से जुड़ने की आवश्यकता है।
"उद्धरेत आत्मनात्मानं" - अपने आत्म को उद्धार करो, यही जीवन का सच्चा उद्देश्य है।
अंत में, स्वामी जी एक सुंदर उदाहरण देते हैं कि एक माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है, लेकिन जब वह किसी कार्य में व्यस्त होती है, तो वह बच्चे को कहती है कि थोड़ा ऊपर कूदो, ताकि वह उसे अपनी गोद में ले सके।
भगवान भी यही कहते हैं – "जब तुम प्रयास करते हो, तो मैं तुम्हारे पास आकर तुम्हारी मदद करता हूँ।"
"उद्धरेत आत्मनात्मानं" – अर्थात तुम खुद अपना उद्धार करो, और जब तुम नहीं कर पाओगे, तो मैं तुम्हारे लिए वहां रहूँगा। यही भगवान का अनंत प्रेम है।
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