साधना का सबसे सरल उपाय क्या है | Swami Satyamitranand Ji Maharaj | Adhyatm Ramayana | Pravachan

सच्ची शांति प्राप्ति का उपाय: “सुदं सर्वभूतानां”

भारत माता की इस प्रस्तुति में परम पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज बताते हैं कि शांति प्राप्ति का सबसे सरल उपाय यह है कि हम यह मान लें — "सुदं सर्वभूतानां", अर्थात् भगवान सब प्राणियों के सुहृद (मित्र) हैं।

मन के भटकाव और साधना की वास्तविकता

स्वामी जी कहते हैं कि मनुष्य जप करता है, ध्यान करता है, लेकिन मन भटकता है। कभी नींद आ जाती है, कभी अपने स्वार्थों की कल्पनाएं आने लगती हैं। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कहा कि साधना का सबसे सरल मार्ग यह है कि हम यह समझें कि भगवान केवल हमारे नहीं, बल्कि सबके मित्र हैं।

हमारी कठिनाई यही है कि हम कुछ लोगों को अपना शत्रु मानते हैं, कुछ को प्रतिस्पर्धी। लेकिन जब हम भगवान से यह कहते हैं कि “हे प्रभु, मेरे साथ तो रहना, लेकिन उस दुष्ट का साथ मत देना,” तो हम भगवान के सार्वभौमिक स्वरूप को नहीं समझते।

जब भगवान ने कह दिया कि “मैं सबका मित्र हूं,” तो हमें यह अधिकार नहीं कि हम भगवान से कहें कि किसी से मित्रता करें और किसी से नहीं।

अपमान में भी परमात्मा का दर्शन

स्वामी जी आगे बताते हैं कि जब हम अपमान सहते हैं, तब भी हमें यह समझना चाहिए कि अपमान करने वाले में भी भगवान ही विराजमान हैं। यही दृष्टिकोण हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाता है। यदि ऐसा न होता तो प्रह्लाद अपने अत्याचारी पिता के लिए भी मोक्ष की प्रार्थना न करता। यह भाव उत्पन्न करना कठिन है, लेकिन यथार्थ साधना का मार्ग यही है — सबमें एक ही परमात्मा को देखना।

शास्त्रों का वास्तविक उद्देश्य और आत्मचिंतन

केवल शास्त्र पढ़ना पर्याप्त नहीं

स्वामी जी यह भी समझाते हैं कि केवल शास्त्र पढ़ना पर्याप्त नहीं है। यदि शास्त्र पढ़ने से केवल वाद-विवाद या अहंकार बढ़े, तो वह ज्ञान नहीं, अज्ञान है।

उन्होंने पंडित विष्णुधर जी का उदाहरण दिया जो काशी के बड़े विद्वान थे, परंतु जब यह बोध हुआ कि उनका ज्ञान केवल दूसरों को पराजित करने के लिए था, तो उन्होंने मौन व्रत धारण कर लिया और आत्मचिंतन में लग गए।

चार महावाक्य और आत्मा-ब्रह्म का ऐक्य

शास्त्रों में वर्णित चार महावाक्य

  • “अहम् ब्रह्मास्मि”

  • “तत्त्वमसि”

  • “प्रज्ञानं ब्रह्म”

  • “अयम् आत्मा ब्रह्म”

का उद्देश्य यही है कि हम आत्मा और ब्रह्म के ऐक्य को समझें। यह शरीर नहीं, आत्मा ब्रह्म है। यही आत्मज्ञान हमें द्वैत से मुक्त करता है और अविद्या को नष्ट करता है।

स्वामी जी कहते हैं कि यह महावाक्य केवल संन्यासियों के चिंतन का विषय नहीं हैं, कोई भी व्यक्ति इनके माध्यम से आत्मज्ञान की ओर अग्रसर हो सकता है।

अहंकार से मुक्ति ही शास्त्रों का सार

अहंकार नहीं, अनुभव जरूरी है

अंत में स्वामी जी कहते हैं कि शास्त्रों का उद्देश्य है — अहंकार को मिटाकर परमात्मा की अनुभूति कराना। यदि शास्त्र अहंकार बढ़ा दें, तो वे बंधन का कारण बन जाते हैं। लेकिन यदि उनके माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त हो जाए, तो वही शास्त्र मुक्ति के द्वार खोल देते हैं।

सच्चा साधक कौन?

अतः सच्चा साधक वह है जो भगवान को सबमें देखता है, अपने द्वेष और भेदभाव को त्यागता है और आत्मा की एकता का अनुभव करता है — यही सच्ची शांति का मार्ग है।

यह लेख प्रस्तुत किया गया है Bharat Mata चैनल द्वारा।
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