श्रीमद भगवत गीता (लंदन) भाग - 6 | Shree Mad Bhagwat Geeta London Part 6 | Bharat Mata

Shree Mad Bhagwat Geeta London Part 6 - Swami Satyamitranand Giri Ji Maharaj

अगर हम सभी की परमात्मा से पक्की दोस्ती हो जाए तो संकोच खत्म हो जाएगा और निसंकोच परमात्मा से कुछ भी ले सकते हो। परमात्मा के लिए सच्चा भाव ही ऐसी मित्रता को जन्म दे सकता है। आराध्य के लिए सच्ची भक्ति करनी चाहिए और वह जो भी दे उसे ले लेना चाहिए। अध्यात्म के सभी मार्ग स्वीकार लेने चाहिए। श्री कृष्ण कहते हैं कि कर्म के फल का परित्याग करना चाहिए और परमात्मा पर कर्म का फल छोड़ देना चाहिए। सत्कर्म की चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन आज के समय में मनुष्य कर्म करने के बाद फल की चिंता में व्यस्त रहता है और वह परमात्मा को भी याद दिलाता रहता है कि मैंने कर्म किया है और अभी तक उसका फल नहीं मिला है।

श्रीमद भगवद गीता के उपदेशों का सार

अगर हम सभी की परमात्मा से पक्की दोस्ती हो जाए तो संकोच खत्म हो जाएगा और निसंकोच परमात्मा से कुछ भी ले सकते हो।
परमात्मा के साथ सच्चा भाव और मित्रता, संकोच को समाप्त करती है। सच्ची भक्ति और श्रद्धा से परमात्मा के मार्गदर्शन को स्वीकार करना चाहिए। इसके लिए, स्वामी सत्यामित्रानंद जी महाराज का यह प्रवचन श्रेणी में देखें

आराध्य के प्रति सच्ची भक्ति का महत्व

परमात्मा के लिए सच्ची भक्ति ही मित्रता का आधार है। आराध्य जो भी प्रदान करें, उसे हृदय से स्वीकार करें।

  • अध्यात्म के विभिन्न मार्गों को अपनाएं।
  • श्री कृष्ण के अनुसार, कर्म के फल का परित्याग आवश्यक है।
  • परमात्मा पर अपने सभी कार्यों का फल छोड़ने की आदत डालें।

स्वामी जी का यह गहन प्रवचन भारत माता के यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है।

श्रीमद भगवद गीता का यह उपदेश हमारे जीवन के हर पहलू में संतुलन और समर्पण लाने का संदेश देता है। स्वामी सत्यामित्रानंद जी महाराज का प्रवचन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और फल का त्याग परमात्मा से जुड़ने का मार्ग है।

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