प्रभु श्री राम को 14 वर्षों का ही वनवास क्यों मिला था? | Ram Ji Ko 14 Varsh Vanvas | Bharat Mata
जब अधर्म पर धर्म की विजय का उल्लेख होता है..
जब आदर्श जीवन चरित्र की व्याख्या होती है..
जब आस्था एवं भक्ति का अद्भुत समन्वय होता है..
तब.. ह्रदय में एक ही स्वर गुंजायमान होता है – श्री राम..!
भारतीय इतिहास एवं सनातन संस्कृति में.. श्री राम.. केवल प्रभु ही नहीं.. अपितु पितृभक्त.. मातृसेवक.. स्नेही भ्रातृ.. निष्ठावान पति तथा कर्तव्यनिष्ठ राजा के समन्वित स्वरुप में.. एक आदर्श मानव के मापदंड स्थापित करते हैं। मानवता.. प्रेम.. विनम्रता.. दया.. वीरता.. सहनशीलता के ऐसे अनुपम आदर्श.. जिनका अनुकरण हम करना चाहते हैं परन्तु.. कदाचित ये हमारे सांसारिकता से युक्त जीवन में संभव नहीं..!
किन्तु प्रभु श्री राम में अपार श्रद्धा रखने वाले तथा उनकी जीवन गाथा से प्रेरणा प्राप्त करने वाले.. भक्तों के ह्रदय में.. एक प्रश्न अवश्य विद्यमान है.. “प्रभु श्री राम को 14 वर्षों का ही वनवास क्यूँ मिला था.. ? न उससे अधिक और न ही उससे न्यून..!”
तो आज हम इस प्रश्न का उत्तर आपको प्रदान करेंगे..
ये तो सभी को ज्ञात है.. कि श्री राम ने.. अपनी माता कैकेयी की आज्ञा तथा अपने पिता महाराज दशरथ के वचन का मान रखने हेतु.. 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किया था।
वास्तव में.. श्री राम के इस 14 वर्ष के वनवास का आधार.. उस समय का प्रशासनिक नियम तथा पूर्वनियोजित दैवीय नियति का क्रियान्वन था। रामायण की कथा.. त्रेतायुग के काल की है। उस समय एक प्रशासनिक नियम था.. कि यदि राज्य का उत्तराधिकारी.. 14 वर्षों के लिए.. अपने सिंहासन का त्याग करता है.. तो उसका राज्याधिकार समाप्त हो जाता है। इसी कारण से.. रानी कैकेयी ने महाराज दशरथ से.. श्री राम के लिए.. 14 वर्षों का ही वनवास माँगा था.. जिससे श्री राम जब वनवास के 14 वर्षों की अवधि व्यतीत करके अयोध्या वापस लौटें.. तब तक उनका राज्याधिकार समाप्त हो चुका हो।
किन्तु अब यदि विराट रूपरेखा में इस पूरे प्रकरण की विवेचना की जाए.. तो श्री राम का वनवास.. पूर्वनियोजित दैवीय नियति थी। श्री हरि विष्णु के सप्तम अवतार.. प्रभु श्री राम का धरती पर अवतरण.. अधर्म पर धर्म की विजय की संस्थापना तथा धरती पर रामराज्य की स्थापना के उद्देश्य से हुआ था। यद्यपि रानी कैकेयी.. श्री राम को भरत से भी अधिक प्रेम करतीं थीं.. किन्तु फिर भी.. उनके द्वारा श्री राम के लिए 14 वर्षों का वनवास माँगना.. प्रभु श्री राम का माता सीता तथा लक्ष्मण सहित वन गमन.. लंकापति रावण द्वारा माता सीता का हरण तथा अंततः रावण का वध.. ये सब विधि का विधान था.. जिसके लिए 14 वर्षों के वनवास की भूमिका अत्यंत आवश्यक थी। इस 14 वर्ष के वनवास में.. प्रभु श्री राम को ऋषि.. मुनियों.. निर्धन एवं दुखी जनों के अतिरिक्त.. पशु-पक्षियों के उद्धार के विषय में भी विचार-मंथन करना था.. क्यूंकि समस्त जीव-जंतुओं का कल्याण ही.. रामराज्य की स्थापना का आधार था।
इन वृहद् कारणों के अतिरिक्त.. प्रभु श्री राम के 14 वर्षों के वनवास का.. एक सूक्ष्म कारण भी है.. मानव जाति हेतु ईश्वर द्वारा प्रदत्त नैतिक शिक्षा!
भगवान विष्णु के महिमामयी अवतार.. प्रभु श्री राम का सम्पूर्ण जीवन.. जिसमें 14 वर्षों का वनवास.. एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है.. सम्पूर्ण मानवता के लिए.. ये शिक्षा है.. कि सांसारिक सुख से कहीं अधिक श्रेयस्कर.. माता-पिता का मान.. पत्नी का सम्मान तथा प्रजा की सेवा है।
Bharat Mata परिवार की ओर से.. हम सभी.. मर्यादा पुरषोत्तम प्रभु श्री राम का वंदन करते हैं। जय श्री राम
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