Vaman Puran | भगवान विष्णु वामन अवतार | तीन पगों में त्रिलोक पर विजय | Vaman Avatar-Raja Bali Story

पुराणों का उद्देश्य

पुराणों का मुख्य उद्देश्य सारगर्भित संवादों के माध्यम से सर्वसाधारण को वैदिक परंपरा के ज्ञान का संप्रेषण करना है। यह एक निरंतर चलने वाली, अक्षुण्ण परंपरा है, जो केवल एक औपचारिक व्यापार नहीं, बल्कि एक तप साधना का रूप लेती है। पुराणों का ज्ञान गंगा की धारा की तरह प्रवाहित होता है, जो जीवन को शुद्ध और समृद्ध करता है। हमारी आज की प्रस्तुति वामन पुराण का संक्षिप्त परिचय है, जो इस ज्ञान श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी है।

वामन पुराण की विशेषता

'वामन पुराण' नाम से तो वैष्णव पुराण प्रतीत होता है, क्योंकि इसका नामकरण विष्णु के वामन अवतार के आधार पर किया गया है, परन्तु वास्तव में यह शैव पुराण है। इसमें शैव मत का विस्तार से वर्णन है। इस पुराण में लगभग 10,000 श्लोक बताए जाते हैं, लेकिन वर्तमान में केवल 6000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इसका उत्तर भाग प्राप्त नहीं है।

वामन पुराण में वर्णित महत्वपूर्ण कथाएँ

राजा बलि और वामन अवतार

वेदों में कहा गया है- यह समस्त जगत विष्णु जी के तीन चरणों के अर्न्तर्गत हैं। इस उपाख्यान के अंतर्गत प्रहलाद के पौत्र राजा बलि का वैभवपूर्ण वर्णन करते हुए उनकी दानशीलता की प्रशंसा की गयी है।
कथा के अनुसार, एक बार राजा बलि ने देवताओं पर चढ़ाई करके इन्द्रलोक पर अधिकार कर लिया। उनकी दान की प्रशंसा सर्वत्र होने लगी। तब विष्णु भगवान वामन अंगुल का वेश धारण करके राजा बलि से दान माँगने जा पहुँचे। दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने बलि को सचेत किया कि तेरे द्वार पर दान माँगने स्वयं विष्णु भगवान पधारे हैं,उन्हें दान मत दे बैठना। परन्तु राजा बलि उनकी बात नहीं माना। उसने इसे अपना सौभाग्य समझा कि भगवान स्वयं उसके द्वार पर भिक्षा माँगने आये हैं। तब भगवान विष्णु ने बलि से तीन पग भूमि मांगी और राजा बलि ने संकल्प करके भूमि दान कर दी। तब भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप धारण करके दो पगों में तीनों लोक नाप दिये और तीसरा पग राजा बलि के सिर पर - रखकर उसे पाताल लोक भेज दिया। इस प्रकार इस कथा में श्री विष्णु को सृष्टि का नियन्ता और दैत्यराज बलि की दानवीरता को प्रदर्शित किया गया।. परन्तु यह कथा ही 'वामन पुराण' का प्रमुख विषय नहीं, इस पुराण में शिव चरित्र का भी विस्तार से वर्णन है।

सती और दक्ष यज्ञ

प्रचलित कथाओं के अनुसार सती बिना निमन्त्रण के अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाती है, वहाँ शिव का अपमान हुआ देखकर अग्नि दाह कर लेती है। परन्तु 'वामन पुराण' के अनुसार गौतम-पुत्री जया सती के दर्शन के लिए आती है उससे सती को ज्ञात होता है कि जया की अन्य बहने विजया, जयन्ती एवं अपराजिता अपने नाना दक्ष के यज्ञ में गयी हैं। इस बात को सुनकर सती, शिव को निमन्त्रण न आया जानकर शोक में डूब जाती हैं, और वहीं भूमि पर गिरकर अपने प्राण त्याग देती हैं। यह देख शिव की आज्ञा से वीरभद्र अपनी सेना केसाथ जाते हैं और दक्ष यज्ञ का विध्वंस कर देते हैं।

कामदेव का दहन

'वामन पुराण' में 'काम दहन' की कथा भी भिन्न है। इसमें बताया कि शिव जब दक्ष-यज्ञ का विध्वंस कर रहे थे तब कामदेव ने उन पर 'उन्माद', 'संताप' और 'विजृम्भण' नामक तीन बाण चलाये, जिससे विक्षिप्त होकर शिवजी सती के विलाप करने लगे। व्यथित होकर उन्होनें वे बाण कुबेर के पुत्र पांचालिक को दे दिये। जब कामदेव फिर बाण चलाने लगे तो शिव जी भागकर दारुकवन में चले गये। वहाँ तपस्या में लीन ऋषियों की पत्नियाँ उन पर आसक्त हो गयीं। इस पर ऋषियों ने शिवलिंग खंडित होकर गिरने का शाप दे दिया। शाप के कारण जब शिवलिंग धरती पर गिरा, तो सभी ने देखा कि उस लिंग का तो कहीं अंत नहीं है। इस पर सभी देवगण, ब्रह्मा, विष्णु सहित शिव जी की स्तुति करने लगे। तब शिव जी ने प्रसन्न होकर पुन: लिंग धारण किया। इस पर विष्णु जी ने चारों वर्णों द्वारा शिवलिंग की उपासना का नियम प्रारम्भ किया और साथ ही शव, पाशुपत, कालदमन और कापालिक नामक चार प्रमुख शास्त्रों की रचना की।
एक अन्य कथा इस प्रकार है कि एक बार शिवजी चित्रवन में तपस्या कर रहे थे तभी कामदेव ने उन पर आक्रमण कर दिया। तब शिव जी ने क्रोध में आकर उसे अपनी दृष्टि से भस्म कर दिया। भस्म होने के बाद वह राख नहींबना, वह पाँच पौधों में परिवर्तित हो गया। वे पौधे दुक्मधृष्ट, चम्पक, वकुल, पाटल्य और जाती पुष्प कहलाये।

वामन पुराण में वर्णित अन्य महत्वपूर्ण विषय

इस पुराण मे बसंत का भी सुन्दर वर्णन प्राप्त होता है.

ततो वसन्ते संप्राप्ते सिंशुका ज्वलनप्रभाः।
निष्पत्राः सततं रेजुः शोभयन्तो धरातलम्।।

अर्थात बसन्त ऋतु के आगमन पर ढाक के वृक्ष, लाल वर्ण वाले पुष्पों के कारण अग्नि के समान प्रभा हो रहे हैं। उन लाल पुष्पों के गुच्छों से लदे वृक्षों के कारण धरा शोभायमान हो रही है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में सृष्टि की उत्पत्ति, विकास, विस्तार और भूगोल का भी उल्लेख है। इस पुराण में प्रहलाद की कथा, अन्धकासुर, तारकासुर, महिषासुर वध की कथा, दुर्गा सप्तशती, देवी महात्म्य आदि अनेक तीर्थों का वर्णन मिलता है। इस पुराण में देवगण में भगवान जनार्दन सर्वश्रेष्ठ हैं। पर्वतों में शेषादि, आयुधों में सुदर्शन चक्र, पक्षियों में गरुड़, सर्पों में शेषनाग, नदियों में गंगा, तीर्थों मे कुरुक्षेत्र, सरोवरों में मानसरोवर धर्म नियमों में सत्य, यज्ञों में अश्वमेघ, पुराणों में मत्स्य पुराण, तेज में सूर्य, नक्षत्रों में चन्द्र को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। इस पुराण में 'आत्मज्ञान' को ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान बताया हैं-

किं तेषां सनेलैस्तीर्थे राश्रभैव प्रयोजनम्। 
येषां चानन्मकं चित्तमात्मन्येव व्यवस्थिम् ।।

अर्थात् जिसका अर्न्तमन (चित्त) व्यवस्थित अथवा संयमित है उसको तीर्थों और आश्रमों की कोई आवश्यकता नहीं होती। उनका हृदय ही तीर्थ होता है और मन ही आश्रम होता है।

निष्कर्ष

'वामन पुराण' केवल विष्णु अवतार की कथा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें शिव तत्व, धर्म, आत्मज्ञान और सृष्टि के रहस्यों का विस्तार से वर्णन है। यह पुराण हमें हमारी सनातन संस्कृति की समृद्ध परंपराओं से जोड़ने का कार्य करता है। भारत समन्वय परिवार का उद्देश्य है कि इस पुराण ज्ञान श्रंखला के माध्यम से पुराणों में निहित अद्वितीय ज्ञान और कल्याणकारी संदेशों को जन-जन तक पहुँचाया जाए, ताकि हमारी प्राचीन और समृद्ध सनातन संस्कृति का संरक्षण हो सके। 

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