भविष्य पुराण: Bhavishya Puran | Ved Puran in Hindi | Bharat Mata

पुराण ज्ञान गंगा की श्रंखला में भविष्य पुराण का संक्षिप्त परिचय हमारी आज की प्रस्तुति है।

भविष्य पुराण: सूर्य की महिमा और पूजा का वर्णन

भविष्य पुराण को 'सौर पुराण' या 'सौर ग्रन्थ' भी कहा जाता है क्यों कि इस पुराण में भगवान सूर्य की महिमा और पूजा उपासना का वर्णन विस्तार से किया गया है। भविष्य पुराण के अनुसार इसके श्लोको की संख्या 50,000 के लगभग होनी चाहिए परन्तु वर्तमान में इसके 28,000 श्लोक ही उपलब्ध है। इस पुराण को चार खण्डों में विभाजित किया गया है ब्राह्म पर्व, मध्यम पर्व, प्रतिसर्ग पर्व और उत्तर पर्व - भविष्य पुराण में सूर्य की महिमा, उनकी उपासना पद्धति, विविध व्रत-उपवास, विभिन्न प्रकार के स्रोत, औषधियों का वर्णन, विविध भारतीय संस्कार, वास्तु शिल्प आदि शामिल हैं।

भविष्य पुराण के चार खण्ड

  1. ब्राह्म पर्व- भविष्य पुराण के इस पर्व में कुल 215 अध्याय हैं। इस पर्व का प्रारम्भ महर्षि सुमंत एवं राजा शतानीक के संवादों से होता है। इस पर्व में दाएँ हाँथ में स्थित तीर्थों का वर्णन है जो इस प्रकार है - देव तीर्थ, पितृ तीर्थ, ब्रह्म तीर्थ, प्रजापत्य तीर्थ और सौम्य तीर्थ। 
  • देव तीर्थ - ब्राह्मण को दाएँ हाँथ से दी गयी दक्षिणा आदि कर्म आते हैं। 
  • पितृतीर्थ - तर्पण एवं पिण्डदान आदि कर्मों का उल्लेख है। 
  • ब्रह्मतीर्थ- आचमन आदि कर्म आते हैं।
  • प्रजापत्य तीर्थ - विवाह के समय लग्न होत्र आदि कर्म आते हैं। 
  • सौम्य तीर्थ - देवकार्य के लिए किए गए कर्म, पूजा-अर्चना आदि हैं।

इसी पर्व में पाँच महायज्ञों का उल्लेख भी है-

  • ब्रहम यज्ञ - ब्रहम मुहूर्त में ईश्वर के लिए किया जाने वाला यज्ञ। 
  • पितृ यज्ञ - पितरों की संतुष्टि और प्रसन्नता के लिए किया जाने वाला यज्ञ। 
  • देव यज्ञ - देवताओं की संतुष्टि के लिए किया जाने वाला यज्ञ। 
  • भूत यज्ञ - समस्त प्राणियों की सुख-शांति के लिए किया जाने वाला यज्ञ। 
  • अतिथि यज्ञ - अतिथि की सेवा में लगे रहना। 
  1. मध्यम पर्व - इस पर्व में समस्त कर्मकाण्ड का निरुपण है। चार प्रकार के मासों चन्द्र मास, सौर मास, नक्षत्र मास और श्रावण मास - का वर्णन इस पर्व में किया गया है । श्राद्ध कर्म, पितृकर्म आदि चन्द्र मास में करना चाहिए विवाह-संस्कार, यज्ञ, व्रत, स्नान आदि सत्कर्म सौस्मर में करने का विधान है। सोम या पितृगण के कार्य नक्षत्र मास में किये जाते हैं यज्ञ के दिनों की गणना आदि कर्म श्रावण मास में करना चाहिए। मलमास या अधिक मास का वर्णन भी इसमें वर्णित है।
  2. प्रतिसर्ग पर्व - प्रतिसर्ग पर्व इतिहास का सुन्दर विवेचन प्रस्तुत करता है। इसमें सतयुग के राजवंशों का वर्णन, त्रेतायुग के सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन, द्वापर युग के चंद्रवशी राजाओं का वर्णन, बौद्ध राजाओं आदि का वर्णन मिलता है। मनुष्य के सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन के लिए अत्यन्त मंगलकारी सत्यनारायण व्रत कथा का उल्लेख भी इस पर्व में वर्णित है। 
  3. उत्तर पर्व - इस पर्व में 208 अध्याय है। इस पर्व में भगवान विष्णु की माया से नारद जी के मोहित होने का वर्णन मिलता है। स्त्रियों को सौभाग्य प्रदान करने वाले अनेक व्रतों का वर्णन किया गया है।

भविष्य पुराण में समाज व्यवस्था और शिक्षा प्रणाली

भविष्य पुरान समाज व्यवस्था पर भी अच्छा प्रकाश डालता है, जिसके अनुसार-"जाति न तो जन्म से होती है, न वंश से और न ही व्यवसाय से बल्कि कर्म तथा आचरण से होती है। शिक्षा प्रणाली के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए भविष्य पुराण कहता कि केवल पाँच प्रकार के गुरु होते हैं-
1.     पहले आचार्य जो वेदों का रहस्य समझायें
2.    दूसरे उपाध्याय जो जीवको पार्जन हेतु वेद पाठ करायें। 
3.    तीसरे गुरु या पिता जो अपने शिष्यों तथा सन्तानों को बिना भेदभाव के शिक्षित करें। 
4.    चौथे ऋत्विक जो अग्निहोत्र या यज्ञ करायें। 
5.    पाँचवे महागुरु जो गुरुओं का भी गुरु हो जिसे तेंद, पुराण, रामायण आदि ग्रन्थों का उचित ज्ञान हो।

भविष्य पुराण मे सूर्य उपासना के अतिरिक्त, गणेश पूजन और स्वर्ग-नरक का भी विस्तृत वर्णन किया गया है। शिक्षा प्रणाली, व्रत-उपवास के साथ-साथ मंदिर निर्माण की विस्तृत जानकारी भी इस पुराण में प्राप्त होती है। इस पुराण में भारत के लगभग एक सहस्त्र वर्ष के इतिहास पर सुन्दर प्रकाश डाला गया है। अत: इस पुराण को वर्तमान भारतीय संस्कृति, धर्म और सभ्यता का महान ग्रंथ भी कहा जाता है। 

भारत माता का प्रयास है की इस पुराण ज्ञान श्रंखला के माध्यम से जनमानस तक पुराणों में निहित ज्ञान और कल्याणकारी संदेशों को प्रेषित करें, और अपनी प्राचीनतम सनातन संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान दें।

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