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गरुड़ पुराण | मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा और रहस्य | Garuda Purana in Hindi | Hindu Dharm Granth

भारतीय संस्कृति का सार प्राप्त करने के उच्चतम उपाय है हमारे पुराण। भारत माता चैनल की पुराण की ज्ञान श्रंखला मे आज हम बात करेंगे गरुड़ पुराण की।
गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म के 18 पवित्र पुराणों में से वैतवव सम्प्रदाय से सम्बंधित एक महापुराण है। सनातन धर्म में गरुड़ पुराण मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला माना जाता है किन्तु यह भ्रम की स्थिति है। प्राय: कर्मकाण्डी ब्राह्मण इस पुराण के 'प्रेत खण्ड' को ही गरुड़ पुराण मानकर प्रस्तुत करते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है।

गरुड़ पुराण का स्वरूप और महत्व

वास्तविक तथ्य यह है कि इस पुराण में विष्णु भक्ति का विस्तार से वर्णन किया गया है। गरुड़ पुराण में 19,000 श्लोक बताये जाते है किन्तु वर्तमान समय में लगभग 7000 श्लोक ही उपलब्ध हैं। इस पुराण को पूर्व खण्ड और उत्तरखण्ड दो भागों में विभाजित किया गया है।
पूर्वखण्ड में विष्णु भक्ति और उपासना की विधियों का उल्लेख है। उत्तर खण्ड में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नरकों में जीव के पड़ने का वृतान्त है। प्रेत योनि से मुक्ति कैसे प्राप्त की जाये, श्राद्ध और पितृ कर्म का विस्तार - से वर्णन है। उत्तरखण्ड को 'प्रेतखण्ड' भी कहा जाता है जिसे मृत्यु के उपरान्त सुनने का प्रावधान है।

गरुड़ पुराण की कथाएँ और ज्ञान

 

भगवान विष्णु के वाहन पक्षीराज को गरुड़ कहा जाता है। एक बार भगवान विष्णु से गरुड़ ने प्रश्न पूछा कि मृत्यु के बाद प्राणियों की स्थित, जीव की यमलोक यात्रा, विभिन्न कर्मों से प्राप्त होने वाले नरकों, योनियों तथा दुर्गति के रहस्य गूढ़ हैं, कृपया इस रहस्य को बताइये। गरुड़ की जिज्ञासा शान्त करने के लिए जो ज्ञानमय उपदेश श्री विष्णु ने बताया उसे ही गरुड़ पुराण कहते हैं। भगवान विष्णु के श्री मुख से बढ़ रहस्य एवं कल्याणकारी वचन गरुड़ पुराण कहलाया। गरुड़ पुराण ज्ञान ब्रहमा जी ने महर्षि वेदव्यास को सुनाया। तत्पश्चात् वेदव्यास ने अपने शिष्य महर्षि सूत जी को तथा महर्षि सूत जी ने नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषि मुनियों को सुनाया।

इस पुराण मे महर्षि कश्यप और तक्षक नाग को लेकर सुन्दर उपाख्यान है। ऋषि शाप के कारण जब राजा परीक्षित को तक्षक नाग डसने जा रहा था, तब मार्ग में उसकी भेंट कश्यप ऋषि से हुयी। तक्षक ने ब्राह्मण का रूप धर कर उनसे पूछा कि वे इस तरह उतावले होकर कहाँ जा रहे हैं? इस पर कश्यप ऋषि ने कहा कि तक्षक नाग, महाराज परीक्षित को डसने वाला है मैं उनका विष प्रभाव दूर करके राजा को पुनः जीवित कर दूँगा। यह अपना परिचय दिया और उनसे लौट जाने को कहा क्यों कि उनके, विष प्रभाव से आज तक कोई जीवित नहीं बचा था। तब कश्यप ऋषि ने कहा कि वे अपनी मंत्र शक्ति से राजा का विष प्रभाव दूर कर देंगे। इस पर → तक्षक ने कहा कि यदि ऐसा है तो मैं इस वृक्ष को भस्म कर देता हूँ आप इसको पुन: हरा-भरा करके दिखाइये। इस पर कश्यप ऋषि ने उस वृक्ष की भस्म एकत्र की और अपना मंत्र फूँका तभी तक्षक ने आश्चर्य से देखा कि उस भस्म से कोंपल फूट आयीं धीरे-धीरे पुनः वृक्ष हरा-भरा हो गया। इस पुराण मे बताया है कि कश्यप ऋषि को यह प्रभाव गरुड़ पुराण सुनने से ही आया था।

इस पुराण में नीति सम्बन्धी सार तत्व, आर्युवेद, गया तीर्थ महात्म्य, श्राद्ध विधि, दशावतार चरित्र तथा सूर्य-चन्द्र का वर्णन विस्तार से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त गारुड़ी विद्या मंत्र " पक्षि ॐ स्वाहा' और विष्णु पंजर आदि का वर्णन भी है। इसमे ज्योतिष शास्त्र सामुद्रिक शास्त्र, सम्पूर्ण अष्टांग योग, वर्णाश्रम धर्म व्यवस्था आदि का उल्लेख है।

इस पुराण के 'प्रेत कल्प' में 35 अध्याय हैं जिसका प्रचलन सबसे अधिक है। इन पैंतीस अध्यायों में यमलोक, प्रेतलोक और प्रेत योनि क्यों प्राप्त होती है उसके कारण, दान महिमा, अनुष्ठान, श्राद्ध कर्म विस्तार से वर्णन है।

 

मृत्यु के बाद क्या होता है?

यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर जानने की इच्छा सभी की होती है- गरुड़ पुराण भी इसी प्रश्न का उत्तर देता है। जहाँ धर्म शुद्ध और सत्य आचरण पर बल देता है वहीं पाप- पुण्य, नैतिकता. अनैतिकता, कर्तव्य - अकर्तव्य तथा इनके शुभ अशुभ फलों पर भी विचार करता है। वह इन्हें तीन अवस्थाओं में विभक्त करता है -

  1. पहली अवस्था: सभी अच्छे-बुरे कर्मों का फल इसी जीवन में प्राप्त होता है।

  2. दूसरी अवस्था: मृत्यु के उपरान्त जीव चौरासी लाख योनियों में से किसी एक में अपने कर्मानुसार जन्म लेता है।

  3. तीसरी अवस्था: अपने कर्मों के अनुसार स्वर्ग या नरक में जाता है।

 

जिस प्रकार चौरासी लाख योनियों है उसी प्रकार चौरासी लाख नरक भी हैं जिन्हें मनुष्य अपने कर्मफल के रूप में भोगता है।

गरुड पुराण में इसी स्वर्ग-नरक की व्यवस्था का विस्तार से वर्णन किया गया है। गरुड़ पुराण में प्रेत योनि और नरक में पड़ने से बचने के उपाय भी बताये गये हैं। इसमें सर्वाधिक प्रमुख उपाय दान-दक्षिणा, पिण्डदान, श्राद्ध कर्म आदि बताये गये हैं। सर्वाधिक प्रसिद्ध इस 'प्रेत कल्प' के  अतिरिक्त इस पुराण मे' 'आत्मज्ञान' के महत्व का भी प्रतिपादन किया गया है। परमात्मा का ध्यान ही आत्मज्ञान का सबसे सरल उपाय है। इस प्रकार कर्मकाण्ड पर सर्वाधिक बल देने के उपरान्त गरुड़ पुराण में ज्ञानी और सत्यव्रती व्यक्ति को बिना कर्मकाण्ड किए भी सद्गति प्राप्त कर परलोक में उच्च स्थान प्राप्त करने की विधि बतायी गयी है।

 

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