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क्यों लिया भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार ? | Kurma Avatar Katha

वर्तमान समय में समग्र विश्व को धर्म का वास्तविक ज्ञान देना, वेदों और पुराणों के माध्यम से ही संभव है। वेदों और पुराणों की दिव्य शिक्षाओं के कारण ही धर्म की रक्षा और भक्ति का सुन्दर एवं सशक्त विकास हो रहा है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 प्रमुख पुराणों में से एक महत्वपूर्ण पुराण कूर्म पुराण है। कूर्म पुराण का ज्ञान सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार धारण करके राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था। पुन: इस का ज्ञान भगवान विष्णु ने 'कूर्मावतार" अर्थात् कच्छप रूप में समुद्र मंथन के समय मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर धारण करके इन्द्रादि देवताओं तथा ऋषियों को सुनाया था। तीसरी बार लोमहर्षण ऋषि द्वारा शौनकादि ऋषियों को नैमिषारण्य में सुनाया था।

इस पुराण में 17.000 श्लोक, और चार संहिताएँ हैं। ये संहिताएं हैं - ब्राह्मी संहिता, भगवती संहिता, शौरी संहिता और वैष्णवी संहिता। इन चारों संहिताओं में आज केवल ब्राह्मी संहिता ही उपलब्ध है जिसमें सर्ग, प्रतिसर्ग, देवों और ऋषियों के वंश, मन्वन्तर, वंशानुचरित तथा अन्य धार्मिक कथाएँ उपलब्ध हैं।

कूर्म पुराण संक्षिप्त कथा

देवता और दानव दोनों अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करने को तैयार हुए तो सर्वप्रथम पृथ्वी की समस्त औषधियों को समुद्र में होमा गया। मंथन करने के लिए मन्दाराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग की रस्सी बनाकर समुद्र मंथन प्रारम्भ किया गया। परन्तु मन्दराचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा और अथाह सागर के पाताल में चला गया। तब देवता और दानवों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की और भगवान विष्णु ने कूर्म अर्थात् कछुए का रूप धारण करके मन्दराचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाकर मथानी रूप में धारण किया। इस प्रकार समुद्र मंथन के फलस्वरूप पारिजात वृक्ष, हरि चन्दन, कल्पवृक्ष. कौस्तुभ मणि, धन्वंतरि वैद्य, चन्द्रमा, कामधेनु, ऐरावते' हाथी, उच्चैश्रवा घोड़ा, साख शाड़ग धनुष, लक्ष्मी रम्भा, शंख, वारुणी, कालकूट और अमृत कलश रत्न निकलें।

अन्य पुराणों की भाँति कूर्म पुराण में भी सृष्टि की उत्पत्ति 'ब्रह्मा' से मानी गयी है। इस पुराण में विष्णु के नाभि कमल से ब्रहमा जी का जन्म और फिर ब्रहमा जी के नौ मानस पुत्रों के जन्म का वृतान्त है । यहाँ कूर्म रूप में विष्णु भगवान स्वयं ऋषियों से चारों आश्रमों का उल्लेख करके उनके दो दो रूप बताते हैं।

आश्रम व्यवस्था का विवेचन

ब्रहमचर्य आश्रम - इसमे दो प्रकार के ब्रह्मचारी होते हैं।

उपकुर्वाणक - जो ब्रहमचारी विधिवत वेदों तथा अन्य शास्त्रों का अध्यन करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता है, वह उपकुर्वाणक ब्रह्मचारी होता है।

नैष्टिक - जो ब्रहमचारी जीवन पर्यन्त गुरु के निकट रहकर ब्रह्मज्ञान का सतत अभ्यास करता है। वह नैष्टिक ब्रहमचारी कहलाता है।

गृहस्थ आश्रम - गृहस्थ आश्रम मे रहने वाले मनुष्य 'साधक' और 'उदासीन' कहलाते हैं।

साधक गृहस्थ - जो व्यक्ति अपनी गृहस्थी एवं परिवार के भरण पोषण में लगा रहता है - वह साधका गृहस्थ कहलाता है।

उदासीन गृहस्थ – जो देवगणों के ऋण, पितृगणों के ऋण तथा ऋषियों के ऋण से मुक्त होकर निर्लिप्त भाव से अपनी पत्नी एवं सम्पति का उपभोग करता है, वह उदासीन गृहस्थ कहलाता है।

वानप्रस्थ आश्रम - इसे दो रूपों 'तापस' और 'सान्यासिक’ में विभक्त किया गया है।

तापस वानप्रस्थी - जो व्यक्ति वन में रहकर हवन, अनुष्ठान तथा स्वाध्याय करता है वह तापस वानप्रस्थी कहलाता है।

सान्यासिक वानप्रस्थी - जो साधक कठोर तप से अपने शरीर को क्षीण कर लेता है तथा ईश्वर की आराधना में निरन्तर लगा रहता है उसे सान्यासिक वानप्रस्थी कहते हैं।

संन्यास आश्रम - संन्यास आश्रम में रहने वाले व्यक्ति 'पारमेष्ठिक' तथा योगी कहलाते हैं।

पारमेष्ठिक सन्यासी - नित्यप्रति योगाभ्यास द्वारा अपनी इंद्रियों और मन को जीतने वाला तथा मोक्ष की कामना रखने वाला साधक पारमेष्ठिक सन्यासी कहलाता है।

योगी सन्यासी - जो साधक ब्रहमा का साक्षात्कार कर अपनी आत्मा में ही परमात्मा के दिव्य स्वरुप का दर्शन करता है, वह योगी संन्यासी कहलाता है।

पुराण की विशेषताएँ

इस पुराण के पूर्वार्द्ध भाग में निष्काम कर्म योग साधना, चतुर्युग वर्णन, काल वर्णन नौ प्रकार की सृष्टियों का वर्णन, भगवान शिव के विविध रूपों की महिमा, शक्ति उपासना का भावुक वर्णन, स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर में जाने का वर्णन, मोक्ष वर्णन तथा पौराणिक भूगोल का विस्तृत उल्लेख है।

इस पुराण के उत्तरार्द्ध में ' ईश्वर गीता' और 'व्यास गीता' का बहुत ही सुन्दर विवेचन किया गया है।

ईश्वर गीता में भगवान शिव के नटराज रूप का वर्णन है। 'आत्मतत्व' के स्वरूप का वर्णन करते हुए भगवान शिव कहते हैं जिस प्रकार प्रकाश और अधकार का, धूप और छाया का कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता उसी प्रकार आत्मा और प्रपंच दोनों एक दूसरे से सर्वथा भिन्न हैं।

इसके अलावा कूर्म पुराण में सांख्य योग के चौबीस तत्वों, सदाचार के नियमों, गायत्री महिमा गृहस्थ धर्म, विविध संस्कारों आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। कूर्म पुराण वैष्णव प्रधान पुराण है लेकिन इसमें शिव जी की महिमा का विस्तार से उल्लेख है अत: यह पुराण सभी सम्प्रदायों के लिए महत्वपूर्ण है।

भारत माता चैनल का प्रयास

भारत माता चैनल का प्रयास है की पुराण ज्ञान श्रंखला के माध्यम से जनमानस तक पुराणों में निहित ज्ञान और कल्याणकारी संदेशों को जन-जन तक प्रेषित करें, और अपनी प्राचीनतम सनातन संस्कृति के संरक्षण में अपना योगदान दें।

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