Ling purana | लिंग पुराण | जानिए शिव के 28 अवतारों का वर्णन | लिंग की उत्पत्ति || Bharat Mata

भारत की अद्वितीय संस्कृति विरासत और गहन ज्ञान परंपरा का वर्णन करते हुए, वेद, उपनिषद, महाकाव्य और पुराणों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये ग्रंथ केवल धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में मानवता के लिए मार्गदर्शन करते हैं। पुराण ज्ञान श्रंखला मे भारत माता चैनल प्रस्तुत करता है लिंग पुराण। 

लिंग पुराण: शिव के तीन स्वरूपों की अद्वितीय व्याख्या

'लिंग पुराण' शैव सम्प्रदाय का पुराण है। लिंग का अर्थ शिव के पहचान चिन्ह' से है जो, अज्ञात तत्व का परिचय देता है। अर्थात भगवान शिव की ज्योतिरूपा शक्ति का चिंह है। इस पुराण में लिंग का अर्थ विस्तार से बताया गया है। यह पुराण प्रधान प्रकृति को ही लिंग रूप मानता है -

प्रधानं प्रकृतिश्चैति यदादुर्लिंगयुक्तमम् ।
गन्धवर्णरसैहीनं शब्द, स्पर्शादिवर्जितम् ॥

अर्थात् प्रधान प्रकृति उत्तम लिंग कही गयी है, जो गन्ध, वर्ण, रस, शब्द और स्पर्श से वर्जित है। लिंग पुराण की कथा शिव पुराण के समान ही हैं। इस पुराण में 163 अध्याय और 11,000 श्लोक है। भारतीय वेदों, उपनिषदों तथा दर्शनों में सृष्टि का प्रारम्भ ब्रहम से माना जाता है, उस ब्रह्म - का न कोई आकार है और न कोई रूप। उसी शब्द ब्रहम का प्रतीक चिन्ह साकार रूप में शिवलिंग है। यह शिव अव्यक्त भी है और अनेक रूपों में प्रकट भी होता है।

प्राचीन मनीषियों ने भगवान के 'तीन रूपों 'व्यक्त', 'अव्यक्त' और 'व्यक्ताव्यक्त' का' उल्लेख किया है। 'लिंग पुराण' ने इसी भाव को शिव के तीन स्वरूपों में व्यक्त किया है

"एकनैव छतं विश्वं व्याप्त त्वेवं शिवेन तु ।
'अलिंग चैव लिंग च लिंगा लिंगानि मूर्तयः ।।

अर्थात् शिव के तीन रूपों में से एक के द्वारा सृष्टि का संहार हुआ है और उस शिव के द्वारा ही यह व्याप्त है। 

उस शिव की अलिंग, लिंग और लिगॉलिंग तीन मूर्तियाँ हैं। अर्थात जिस प्रकार ब्रह्मा को पूरी तरह न समझ पाने के कारण नेति-नेति कहा जाता है उसी प्रकार शिव व्यक्त भी है और अव्यक्त भी। शिवलिंग कहीं व्यक्त मूर्ति है। इस पुराण में शिव के 28 अवतारों का वर्णन है। जिसमें अंधक, जलंधर, त्रिपुरासुर आदि राक्षसों की कथाओं का भी उल्लेख है। 

लिंग पुराण का महत्व और इसकी उत्पत्ति

लिंग पुराण मे सृष्टि की उत्पत्ति पंच भूतों आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी द्वारा बतायी गयी है। सृष्टि सृजन का विचार ब्रहमा जी के मन में आया तो पहले अहंकार  का जन्म हुआ। यह अहंकार सृष्टि-से पूर्व का गहन अन्धकार माना जा सकता है। इस अहंकार से पाँच सूक्ष्म तत्व- शब्द, स्पर्श, रूप, रस, और गंध उत्पन्न हुए है जो तन्मात्र कहलायें। इनके पाँच स्थूल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी प्रकट हुए। भारतीय सिद्धान्त के अनुसार तत्वों के इसी विकास- क्रम, से सृष्टि का आविर्भाव होता है। 

धर्म की व्याख्या करते हुए· पुराण कहता है कि धर्म और अध्यात्म का वास्तविक सार है कि मनुष्य अपनी संकीर्ण दृष्टि त्याग कर प्राणियों से आत्मीय भाव का अनुभव करे। 

आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पंडित: 

अर्थात् जो समस्त प्राणियों में आत्मीय भाव रखता है, वही पंडित है।

इस पुराण मे राजा क्षुप और दधीचि ऋषि की कथा के माध्यम से ब्राह्मणों की श्रेष्ठता बतायी गयी है। इस पुराण में चारों युगों के वर्णन से सृष्टि के क्रमिक विकास को बताया गया है। खगोल विद्या के अर्न्तर्गत इस पुराण में बताया है कि चन्द्रमा, नक्षत्र और ग्रह आदि सभी सूर्य से निकले हैं और उसी में लीन हो जायेंगें। सूर्य ही तीनों लोकों का स्वामी है। काल, ऋतु और युग उसी से उत्पन्न होते हैं। इस पुराण में, सांसारिक कष्टों की निवृत्ति के लिए मुख्य मार्ग 'ध्यान' को बताया गया है।

सृष्टि की उत्पत्ति और पंचभूतों का महत्व

इस पुराण में योग के पाँच प्रकार बताये गये हैं.

1. मंत्र योग - में मंत्रों का जप और ध्यान किया जाता है।
2. स्पर्श योग - में योगियों द्वारा बताये गये अष्टांग योग का वर्णन है।
3- भाव योग - में राजयोग की भाँति शिव की मन से आराधना की जाती है।
4. अभाव योग - में इस संसार को सर्वथा शून्य और मिथ्या माना है, यह क्षणभंगुर है और जल्दी ही समाप्त होने वाला है।
5. महायोग- इन सभी प्रकार के योगों का संकलित एवं कल्याणकारी स्वरूप है।

इस पुराण में शिव की उपासना, गायत्री महिमा, पंच यज्ञ विधान, काशी महात्म्य, दक्ष-यज्ञ विध्वंस, उमा स्वयंवर, शिव तांडव, अघोर रूप धारी शिव की प्रतिष्ठा, त्रिपुर वध आदि का वर्णन है। पौराणिक दृष्टि से लिंग पुराण शिक्षाप्रद और कल्याणकारी है। वस्तुतः शैव मत का प्रतिपादन करते हुए लिंग पुराण ब्रह्मा की एकता का सिद्धान्त प्रतिपादित करता है। सकल विश्व और मानव कल्याण को समर्पित पुराण ज्ञान को भारत माता की ओर से शत-शत नमन।

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