Ganesh Chaturthi | गणेश चतुर्थी : क्या है बप्पा के जन्मोत्सव का ऐतिहासिक महत्व
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
कैसे प्रारंभ हुआ गणेश उत्सव?
भगवान् गणेश ज्ञान, समृद्धि, और सौभाग्य के प्रतीक हैं. गणेश जी को विद्यार्थियों के प्रथम प्रणेता के रूप में माना जाता है, और समस्त भारतवर्ष में गणेश भगवान् की वंदना विघ्नहर्ता और विनायक आदि 108 नामों से की जाती है. प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से 10 दिवसों तक गणेश चतुर्थी उत्सव मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जन्मोत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है. इस पावन पर्व पर लोग अपने घरों में गणेश जी की मूर्ती का अभिनन्दन करते हैं और 10 दिनों की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करने के पश्चात् अनंत चतुर्दशी के दिन हर्षोल्लास के साथ उस मूर्ती का विसर्जन करते हैं.
श्री गणेश जी के जन्म की रोचक पौराणिक कथा
शिव पुराण में वर्णित है की एक बार माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी दिव्यशक्ति से एक बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बना दिया, साथ ही किसी को प्रवेश करने की अनुमति ना देने का आदेश भी दिया. जब महादेव ने प्रवेश करने का प्रयत्न किया तो गजानन ने उन्हें रोक दिया. भगवान् शिव माता उमा के प्रिय पुत्र से सर्वथा अंजान थे | वे उस हठी बालक पर क्रोधित हो गये और अपने गणों को आज्ञा दी और युद्ध शुरू हो गया परन्तु माता पार्वती के सर्वगुण सर्वशक्तिशाली पुत्र से कौन जीत सकता था| अंत में भगवान शिव ने क्रोधित हो कर अपने त्रिशूल से गजानन का सर धर से अलग कर दिया. यह देख कर माँ पार्वती अत्यंत क्रोधित हो उठीं और प्रलय की ठान ली. भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर देवी की स्तुति कर के शांत होने की प्रार्थना की. तब माँ पार्वती ने अपने पुत्र को पुनः जीवित करने का आग्रह किया. फिर शिव जी के निर्देश पर विष्णु जी ने उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आये. महादेव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित किया. माता पार्वती ने उसे ह्रदय से लगाकर सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया.
गणेश चतुर्थी का महत्व, भारतीय पौराणिक कथाएं तथा इतिहास
गणेशोत्सव महाराष्ट्र का एक मुख्य त्यौहार है, परन्तु वर्तमान समय में इसकी धूम अखिल भारत में है. इस त्यौहार से जुड़ा हुआ सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है की इसका महत्त्व पौराणिक से अधिक ऐतिहासिक है. इस महोत्सव का आधार भारत के इतिहास से सम्बंधित है.
अनुमानित है की सन 1680 में शिवाजी ने इस उत्सव को सर्वप्रथम पुणे में मनाया था. 18वीं सदी में पेशवा भी सार्वजनिक रूप से भाद्रपद के माह में गणेशोत्सव मनाते थे, परन्तु ब्रिटिश राज के आगमन पर इस महान उत्सव के लिए आर्थिक सहायता बंद कर दी गयी थी और अनेक संकटों के कारण यह उत्सव रोकना पड़ा. इसके पश्चात् विख्यात स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने इस महोत्सव को पुनः आरम्भ करने का निश्चय किया. 1892 में एक नियमानुसार अंग्रेज़ शासक भारतियों को किसी स्थान पर एकत्रित नहीं होने देते थे. तिलक जी ने सोचा की इस जन्मोत्सव के माध्यम से भारतियों को एक स्थान पर समायोजित करना , संस्कृति के प्रति सम्मान तथा राष्ट्रवाद की भावना को जागृत करना संभव होगा. प्रारंभ में तिलक जी को अत्यधिक विरोध का सामना करना पड़ा परन्तु लाला लाजपत राय, बिपिन चन्द्र पाल, अरविंदो घोष, राजनारायण बोस, और अश्विनी कुमार दत्त ने उनका समर्थन किया और गणेशोत्सव पुनः आरम्भ हुआ.
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत की रचना के लिए गणेश जी का आह्वाहन किया. व्यास जी श्लोक बोलते गए और गणेश जी बिना रुके 10 दिनों तक महाभारत को लिखते गए. उन 10 दिवसों में भगवान् गणेश पर धूल मिट्टी की परत जम गयी थी. फिर अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश जी ने सरस्वती नदी में स्नान कर के स्वयं को शुद्ध किया. यही कारण है की 10 दिनों के उत्सव के पश्चात् गणेश भगवान् की मूर्ती को विसर्जित करने की प्रथा का पालन किया जाता है.
गणेशोत्सव में गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करके पूजन, अभिषेक आदि किया जाता है और उनके सर्वप्रिय मोदक का भोग लगाया जाता है. ग्यारह दिनों के इस उत्सव के दौरान सार्वजनिक मंडल आकर्षक दृश्यों का प्रदर्शन करते हैं. ऐतिहासिक, पौराणिक, सामाजिक, और लोकगीतों का सौन्दर्यपूर्ण उत्सव है यह गणेशोत्सव. Bharat Mata परिवार हिन्दुओं के सर्वप्रिय देवता गजानन गणनायक की स्तुति बारम्बार करता है
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