Shiv Puran Katha | श्री शिव महापुराण कथा | शिव महापुराण के रहस्य
शिव पुराण: एक महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथ | हिन्दू धर्म में पुराणों का महत्व
हिन्दू धर्म मे पुराणों को उच्च महत्व दिया गया है। पुराणों में भारतीय संस्कृति के आदर्शों, रीति-रिवाजों, और परंपराओं का विवरण होता है। ये आदर्श और परंपराएं समाज को एक संजीवनी और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं। भारत समन्वय परिवार सनातन धर्म की अति महत्वपूर्ण धरोहर अर्थात हमारे पुराणों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है। इसी श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम जानेंगे शिव पुराण के विषय मे।
शिव पुराण की विशेषताएँ
महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित शिव पुराण सभी पुराणों मे सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला पुराण है। इस पुराण का संबंध शैष मत से है। इस पुराण मे आठ खण्ड और 24,000 श्लोक है। इस पुराण मे प्रमुख रूप से शिव भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों मे इन्हे संघार का देवता माना गया है। जटाजूट धारी, गले मे लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघंबर, चिता की भस्म लगाए, हाथ मे त्रिशूल, सारे विश्व को डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं, इसलिए उन्हे ‘नटराज’ की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यू’ का भेद होता है। शीश पर गंगा और चंद्र-जीवन एवं कला के घोटक हैं। शरीर पर चित की भस्म – मृत्यू का प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अंत मे मृत्यू सागर मे लीन हो जाता है।
तुलसीदास का दृष्टिकोण
‘रामचरित मानस’ मे तुलसीदास ने जिन्हे ‘अशिव वेषधारी’ कहा है, वे जन-सुलभ तथा आडंबर विहीन वेश को ही धारण करने वाले हैं। ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है। इस पुराण मे कलयुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को ‘मुक्ति’ के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
शिव पुराण की संहिताएँ
इस पुराण मे आठ संहिताओं का उल्लेख है, जो मोक्ष कारक है:
1. विद्येश्वर संहिता
विद्येश्वर संहिता – इस संहिता मे शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्व भी बताया गया है। इस संहिता मे उल्लेख है की अर्जित धन के तीन भाग करके – एक भाग धन वृद्धि मे, एक भाग उपभोग मे और एक भाग धर्म-कर्म मे व्यय करना चाहिए।
2. रुद्र संहिता
रुद्र संहिता – रुद्र संहिता मे शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमे नारद-मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ मे देह त्याग, पार्वती विवाह, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, शंखचूड़ से युद्ध और उनके संघार आदि की कथा का विस्तार से वर्णन है। इस संहिता मे ‘सृष्टि खण्ड’ के अंतर्गत जगत का आदि कारण शिव को माना गया है। शिव से ही आदि शक्ति ‘माया’ का आविर्भाव होता है और शिव से ही ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति बताई गई है।
3. शतरुद्र संहिता
शतरुद्र संहिता – इस संहिता मे शिव के लोक प्रसिद्ध ‘अर्धनारीश्वर’ रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि विकास के लिए धरा गया था। इस संहिता मे शिव की आठ मूर्तियाँ भी बताई गई है। इन मूर्तियों मे भूमि, जल, अग्नि, पवन, अंतरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य, और चंद्र अधिष्ठित हैं।
4. कोटि रुद्र संहिता
कोटि रुद्र संहिता – कोटिरुद्र संहिता मे शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंग क्रमशः सौराष्ट्र मे सोमनाथ, श्री शैल मे मल्लिकार्जुन, उज्जैन मे महाकालेश्वर , ओंकार मे अमलेश्वर, हिमालय मे केदारनाथ, डाकिनी मे भीमेश्वर, काशी मे विश्वनाथ, गोमती तट पर त्रयंबकेश्वर, चिताभूमि मे वैद्यनाथ, सेतुबंध मे रामेश्वर, दारुक वन मे नागेश्वर और शिवालय मे घुस्मेश्वर है। इस संहिता मे विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों और शिवरात्रि व्रत के महात्म्य का वर्णन है।
5. उमा संहिता
उमा संहिता – इस संहिता मे शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्व बताया गया है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है और शिव पुराण का अध्यन करने से ही अज्ञान नष्ट हो जाता है।
6. कैलास संहिता
कैलास संहिता – कैलास संहिता मे ओंकार के महत्व का वर्णन है। इसमे विधिपूर्वक शिवोपासना, नंदी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना की गई है। गायत्री मंत्र के जप का महत्व भी बताया गया है।
7. वायु संहिता
वायु संहिता – इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग मे पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिवज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव ध्यान का महत्व बताया गया है। शिव के निर्गुण और सगुण रूप की विवेचना की गई है। जिस प्रकार अग्नि तत्व और जल तत्व को किसी रूप मे रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याण कारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप मे प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं। शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रमुख विषय है।
निष्कर्ष
शिव पुराण हिंदू पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिकता की आधारशिला के रूप में कार्यरत है, जो भक्तों को उनकी आध्यात्मिक यात्रा पर प्रेरित और मार्गदर्शित करता रहता है।
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