महाशिवरात्रि पर्व - शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है

भारतीय संस्कृति मन और आत्मा का विस्तार है कि आध्यात्मिकता की आधारशिला पर स्थित है। उपासना मत और ईश्वर संबंधी विश्वास की स्वतंत्रता भारतीय संस्कृति की परंपरा रही है। आत्मा और ब्रह्म के शाश्वत संबंध तथा स्वरूप की विवेचना इसका केंद्र बिंदु है। शिव का वास्तविक अर्थ है। वह जो नहीं है, पूरी सृष्टि की उत्पत्ति की अवधारणा छूने से मानी जाती है और अंत में शून्य में विलीन ता में निहित है। व्यापक सुमिता अस्तित्व का आधार भी है। परमहंस का मूलभूत गुण है। असीम विशाल तारामंडल उस व्यापक सुनीता में बस जरा सी चीजें हैं। सैफ परंपरा में स्थित सर्वोच्च भगवान है जो ब्रह्मांड की रचना, रक्षा और परिवर्तन करते हैं। शिव स्वरूप विराट और अनंत है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है। परमात्मा का कोई सीमित स्वरूप नहीं है और ना ही वह किसी। कार्निस है भगवान शिव एक सूक्ष्म पवित्र दीप्तिमान ज्योतिपुंज है। महाराज महान रात्रि अर्थात ज्ञान की रात और जयंती अर्थात जन्मदिवस परमपिता परमात्मा शिव दबाते हैं। जब अज्ञान और अंधकार की रात्रि प्रबल हो जाती है। परमात्मा का ही नाम है जिसका संस्कृत अर्थ है। सदा कल्याणकारी अर्थात जो सभी का कल्याण करता है। यह दिन हम ईश्वर के इस धरा पर अवतरण के समय की याद में मनाते हैं। समुद्र मंथन से प्राप्त हलाहल विष भी राष्ट्र की रक्षा के लिए कंठ में धारण करने की भी यह प्रतीक महा रात्रि है। अंत का भी अंत होता है। कुछ भी कहां अनंत होता है परंतु भगवान शिव आज भी है और अनंत भी भारत समन्वय परिवार की ओर से महाशिवरात्रि की अशेष शुभकामनाएं।

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