गया में पिंड दान का महत्व । सीता जी क्यों किया फल्गु नदी के बालू से दशरथ जी का पिंड दान

अश्विन(क्वार) माह कृष्णपक्ष के 15 दिवसों को पितृपक्ष कहते है इसे श्राद्धपक्ष भी कहा जाता है। पितरों का पृथ्वी पर आगमन कर जल आहार ग्रहण करना व परिवार को आशिर्वाद प्रदान करना पितृपक्ष है। पितृ से आशय जैसे मनुष्य योनि देव योनि ठीक वैसे ही पितृ योनि से है। इसका पितृसत्तात्मकता से कोई सम्बन्ध नही है।

आपके मन मे यह प्रश्न कभी ना कभी उठता होगा कि अश्विन माह में ही पितृपक्ष क्यों मनाया जाता है। चूंकि सनातन में सबकुछ तर्कसम्मत है। यहां आंख मूंदकर अंधविश्वास जैसा कुछ नही है. यहां सभी परम्पराओ के पीछे कुछ ना कुछ आधार है। शास्त्रोनुसार पितृलोक को चंद्रमा के दक्षिण में 22° पर कहीं माना जाता है। विज्ञान अनुसार अश्विन माह के कृष्णपक्ष में चन्द्रमा की दूरी पृथ्वी के सबसे निकट होती है। इसलिए पितरों का चंद्रमा से पृथ्वीलोक हेतु आगमन का यही सबसे उपयुक्त समय होता है। वेदों में पितरों के निवास की दिशा दक्षिण मानी गई जिसमें महा श्वान व हीन श्वान की चर्चा है। वेदों के श्लोक व विज्ञान के केनिस माइनर मेजर तारे पढ़कर आपका मन अपने पूर्वजों के प्रति गर्व से भर उठेगा, कि उन्हें खगोल व अंतरिक्ष विषय का कितना गहरा ज्ञान था। ना केवल ज्ञान था अपितु उसे व्यवहारिक रुप में परम्पराओ में ढालकर अपनाया भी जाता था।

पुनः पितृपक्ष विषय पर लौटते है। आपके मन में उठ रहे एक और प्रश्न का उत्तर लीजिए कि श्राद्ध पक्ष तिथिअनुसार ही क्यों मनाए जाते है। जब इसका उत्तर आप पाएंगें तो आपका मन ऋषिमुनियों का ज्ञान जानकर रोमांचित हो उठेगा। पितृलोक व पृथ्वी की समय गणना अलग अलग होती है.

पितृलोक का 1 दिन= पृथ्वी का 1 वर्ष लगभग।

पितृलोक का 1 घण्टा= पृथ्वी के 15 दिन।

पितृलोक के 4 मिनट= पृथ्वी का 1दिन।

पितृलोक का "प्रवेशमार्ग" अश्विन माह के कृष्णपक्ष में केवल 1 घण्टे के लिए खुलता है जो कि पृथ्वी पर 15 दिन के बराबर है। किसी परिवार के पितृ को पृथ्वी पर आने के लिए केवल 4 मिनट का समय ही मिलता है जो कि पृथ्वी पर 1 दिन के बराबर है. यह 4 मिनट का समय तिथिअनुसार तय होता है इसलिए व्यक्ति की म्रत्यु पश्चात कुछ वर्ष उपरांत उसके तिथि मिलान की पूजा की जाती है। आपके पूर्वजो की आत्मा को वर्ष में एकबार 4 मिनट हेतु आपके घर आकर जल आहार ग्रहण करने की अनुमति प्राप्त होती है।

पितृलोक का 1 दिन पृथ्वी पर 1 वर्ष बराबर होता है अतः पितृ श्राद्धपक्ष में जलपान ग्रहण कर वर्षभर के लिए तृप्त रहते है और आपको आशीर्वाद प्रदान करते है। यह जलपान उन्हें विधिपूर्वक श्राद्ध करने व मनुष्यों ब्राह्मणों पक्षी पशुओं को भोजन कराने से मिलता है। 

पितृ के रुष्ट होने से आपका अच्छा समय खराब हो जाता है। अतः अपनी यथा शक्ति के अनुसार श्राद्धपक्ष में पितरों को याद करें, कुछ ना बने तो कुछ मीठा बनाकर दीपक जलाकर नैवेद्य बनाए व गाय, श्वान, कौंवा या जो मिले उसे खिलाए। वह भी ना बने तो कुछ फल मंदिर मे चढ़ा आये और पितरों का आह्वान कर जलपान ग्रहण करने का निवेदन करे व उनके आशीर्वाद की कामना करें।

पितरों को नमन कीजिए वे आपके साक्षात देवता है। शास्त्रों में पूर्वजो को देवतुल्य माना गया है। जिनके पितृ प्रसन्न रहते है उस घर में सदैव खुशहाली रहती है।

भारत समन्वय परिवार समस्त पितरों को सादर प्रणाम करता है, और आप सभी के लिए खुशहाली, शान्ति व समृद्धि की कामना करता है।