पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण (सावन) हिन्दू धर्म मे अति महत्वपूर्ण महीनों मे से एक हैइसकी शुरुआत आषाढ़ पूर्णिमा के बाद होती है। इस साल सावन महिना है कुछ ज़्यादा खास, जो की हो रहे हैं सोमवार से आरंभ और सोमवार पर ही समाप्त। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार देवशयनी एकादशी 17 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी, और 22 जुलाई सोमवार के दिन सावन शुरू होंगे और 19 अगस्त सोमवार को समाप्त होंगे।
हिंदू या वैदिक कैलेंडर के अनुसार, सावन पांचवा महीना होता है और इसे उन शुभ महीनों में से एक माना जाता है जिसमें लोग भोलेनाथ भगवान शिव को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। भगवान शिव का एक नाम "अशुतोष" भी है, जिसका अर्थ है कि वे अपने भक्तों से बहुत आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। जो भी उनके पास किसी भी प्रकार की सांसारिक इच्छा के साथ आता है, उसे निश्चित रूप से पूर्ण कर दिया जाता है, और सावन के महीने मे मांगी गई हर मनोकामना महादेव पूर्ण करते हैं। इसलिए इस महीने मे भक्त अपनी पूरी श्रद्धा से व्रत एवं अनुष्ठान करते हैं।
क्यूँ है सावन सर्वश्रेष्ठ महिना? क्या है सावन का इतिहास?
मान्यता है कि भगवान शिव ने संसार को बचाने के लिए समुद्र मंथन के समय विष पी लिया था । हालाँकि, देवी पार्वती ने उनके कंठ को पकड़ लिया था और उन्हें विष से बचा लिया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव को और अधिक पीड़ा हुई थी। सावन की परंपरा का एक हिस्सा यह है कि भगवान शिव के भक्त उनके लिए गंगा नदी से पवित्र जल लाते हैं ताकि उनके पीड़ा ठीक हो सकें। इसके अतिरिक्त, श्रावण के सोमवार पर रखे जाने वाले व्रतों को श्रावण सोमवर व्रत कहा जाता है और भगवान शिव को धन्यवाद देने और समृद्धि, सफलता और मनोकामनाओं की पूर्ति करने के लिए रखा जाता है। चूंकि यह महीना पूर्णतः भगवान शिव को समर्पित है, इसलिए कई लोग इसे उनका पसंदीदा महीना मानते हैं।
एक अन्य मान्यता ये भी है कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति द्वारा अपने देह का त्याग किया था, उससे पूर्व देवी सती ने महादेव को प्रत्येक जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने राजा हिमाचल और रानी मैना के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया और पार्वती के रूप में देवी ने अपनी युवावस्था में, सावन के महीने में अन्न, जल त्याग कर, निराहार रह कर कठोर व्रत किया था। मां पार्वती के इस व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया। तभी से भगवान महादेव सावन का महीन अतिप्रिय है।
इसके अतिरिक्त सावन मास के लिए एक अन्य किमविदंती यह भी है की कि भगवान शिव सावन के महीने में धरती पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्ध्य देकर, जलाभिषेक किया गया था। इसलिए भक्त मानते हैं की प्रत्येक वर्ष इस महीने मे महादेव अपनी ससुराल आते हैं और यही कारण है की भक्त पूरे महीने भगवान शिव की कृपा हेतु उनमे लीन रहते हैं।
क्या होता है रुद्राभिषेक?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है – स्नान कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक, रुद्राभिषेक के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। विद्वान कहते हैं की महादेव को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है सावन मे रुद्राभिषेक करना।
रुद्राभिषेक का पौराणिक महत्व-
शिवपुराण के रुद्र संहिता में सावन मास में रुद्राभिषेक का विशेष महत्व वर्णित है। शिव पुराण की कथा के अनुसार सृष्टि का पहला रुद्राभिषेक भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने साथ मिलकर किया था। रुद्राभिषेक की पौराणिक कथा यह है कि श्रेष्ठता के परीक्षण में भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के आत्मलिंग के ऊपरी सिरे की खोज के लिए हंस बनकर यात्री शुरू की। तो भगवान विष्णु ने वराह बनकर आत्म लिंग के दक्षिणी सिरे को खेजने की यात्रा आरंभ की। थक कर जब दोनों को आत्म लिंग का कोई छोर नहीं मिला तो दोनों ने यात्रा रोक दी। तब भगवान शिव ने कहा कि आप दोनों ही मेरे आत्म लिंग से ही उत्पन्न हुए हैं। सृष्टि की रचना और पालन के लिए ब्रह्मा जी मेरे दक्षिण अंग से और विष्णु जी मेरे वां अंग से उत्पन्न हुए हैं। इसके बात को जानकर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु दोनों ने साथ मिलकर भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया।
रुद्राभिषेक की विधि-
रुद्राभिषेक प्रारंभ करने से पूर्व भगवान श्री गणेश जी का ध्यान व पूजन किया जाता है। इसके पश्चात पूजा स्थान पर शिवलिंग को उत्तर दिशा में स्थापित करें और सर्व प्रथम गंगा जल से अभिषेक किया जाता है। इसके पश्चात कामना और दूध, दही, शहद, घी, शर्करा, आदि उपलब्ध चीजों से से उनका अभिषेक किया जाता है। सभी चीजों से अभिषेक करते समय भक्त अपने मन में शिव मंत्र का जाप करते रहते हैं। भगवान शिव का सभी चीजों से अभिषेक करने के बाद अंत में एक बार फिर गंगाजल डालकर शिवलिंग को अच्छी तरह से स्नान करवाया जाता है। इसके पश्चात शिवलिंग का चंदन, भस्म आदि से तिलक और पुष्प, बेलपत्र, वस्त्र, रुद्राक्ष आदि से श्रृंगार किया जाता है। फिर बाद भगवान शिव को भोग लगाया जाता है और उनकी शुद्ध देशी घी से बने दीये से आरती की जाती है। देवों के देव महादेव की आरती करने के बाद उसे गंगाजल से आचमन किया जाता और उस बचा हुआ जल सभी लोगों पर प्रसाद स्वरूप छिड़का जाता है। इसके पश्चात् सभी भक्त आरती ग्रहण करते हैं।
- किन-किन चीजों से होता है रुद्राभिषेक ? और क्या उनके महत्व ?
- जल से रुद्राभिषेक - तेज ज्वर भी शांत हो जाता है।
- तीर्थ के जल से रुद्राभिषेक - मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- दुध से रुद्राभिषेक –आरोग्यता, सुख-समृद्धि और आनंद की प्राप्ति होती है।
- दही से रुद्राभिषेक – कलेश दूर होते हैं और सुख शांति की प्राप्ति होती है।
- घी से रुद्राभिषेक - वंश का विस्तार होता है।
- पंचामृत से रुद्राभिषेक - मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
- शहद से रुद्राभिषेक - शिक्षा में सफलता मिलती है।
- सुगंधित द्रव्य से रुद्राभिषेक - मानसिक शांति मिलती है।
- गन्ने के रस से रुद्राभिषेक - धन की समस्या से निवारण मिलता है।
- सरसों के तेल से रुद्राभिषेक - शत्रु पराजित होते हैं।
- भांग से रुद्राभिषेक - लड़ाई-झगड़ा, महामारी एवं बीमारियों से निवारण मिलता है।
- भस्म से रुद्राभिषेक – महादेव सभी दुख दूर कर देते हैं।
सावन मे शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व?
अग्नि के समान विष पीने के पश्चात महादेव शिव का कंठ बिल्कुल नीला पड़ गया था। विष की उष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पण किया इसलिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना है।
शिव जी पर बेलपत्र क्यूँ चढ़ाए जाते हैं?
मान्यता है की भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त बेलपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथानुसार, जिस समय 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी थी तब उन्होंने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समी पत्र का महत्व होता है। इसलिए सावन महीने मे भक्त महादेव पर बेलपत्र और समी पत्र चढ़ाते हैं। शस्त्रों मे सावन माह को पुरुषोत्तम माह भी कहा गया है और यह भी वर्णित है की तीन दलों वाले बेलपत्र को चढ़ाने से तीन जन्मों के पाप नाश हो जाते है । बेलपत्र के दर्शन मात्र से ही पाप नाश हो जाते हैं और छूने से सभी प्रकार के शोक, कष्ट दूर हो जाते हैं।
सावन के सोमवार व्रत रखने का कारण व लाभ।
श्रावण माह में भगवान शिव के भक्त आमतौर पर महादेव को प्रसन्न करने के लिए सोमवार को उपवास करते हैं। इस अवसर पर वे कुछ विशेष आहार का त्याग करते हैं और भगवान शिव की प्रेमभक्ति में लगे रहते हैं। कुछ भक्त आठहार वार्त के दौरान सोलह सोमवार व्रत का पालन करते हैं, जिसे "सोलह सोमवार व्रत" कहा जाता है। सोमवार के व्रत इस प्रकार से किये जाते हैं-
- अनाज, दाल इत्यादि का त्याग करके केवल फल और दूध का सेवन करना।
- केवल पानी का सेवन करना।
- पानी भी न पीना (पूर्ण उपवास)।
भगवान शिव की कृपा हेतु इन चार स्तरों में से भक्त अपनी आस्थानुसार उपवास का पालन करते हैं। व्रत के अतिरिक्त सामान्य दिनों मे भी सावन मे तामसिक जीवन और भोजन से दूर रहकर सात्विकता को अपनाना चाहिए।
सावन में पड़ने वाले त्योहार और उनके विशेष महत्व।
- 22 जुलाई 2024, सोमवार – प्रथम सावन सोमवार
- 23 जुलाई 2024, मंगलवार - पहला मंगला गौरी व्रत
- 24 जुलाई 2024, बुधवार - गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत
- 27 जुलाई 2024, शनिवार – कालाष्टमी
- 29 जुलाई 2024, सोमवार - दूसरा सावन सोमवार
- 30 जुलाई 2024, मंगलवार - दूसरा मंगला गौरी व्रत
- 31 जुलाई 2024, बुधवार - कामिका एकादशी
- 05 अगस्त 2024, सोमवार - तीसरा सावन सोमवार
- 06 अगस्त 2024, मंगलवार - मासिक दुर्गाष्टमी
- 08 अगस्त, 2024, गुरुवार - विनायक चतुर्थी
- 09 अगस्त 2024, शुक्रवार - नाग पंचमी
- 12 अगस्त 2024, सोमवार - चौथा सावन सोमवार व्रत
- 13 अगस्त 2024, मंगलवार - चौथा मंगला गौरी व्रत, मासिक दुर्गाष्टमी
- 16 अगस्त, 2024, शुक्रवार - पुत्रदा एकादशी
- 19 अगस्त 2024, सोमवार - रक्षा बंधन, पांचवां सावन सोमवार व्रत, एवं सावन समापन।
हर हर महादेव।
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