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यस्मात्पुरा ह्यनतीदं पुराणां तेन हि स्मृतम्।
निरुक्तमस्य यो वेद सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
अर्थात प्राचीन काल से जीवित और प्रवाहमान होने के कारण इसे पुराण कहा गया है|
जो व्यक्ति इसके निरुक्त को जान लेता है, वह सब पापो से मुक्त हो जाता है |
वेदो से भी पूर्व जिन शब्दों को स्मृति में संजोया गया , वही पुराण है| ये प्राचीनतम धरोहर है , जिन्हे व्यास जी ने 18 खंडो में विभक्त किया | इन महान धर्म ग्रंथो के विशाल भंडार में सृष्टि , लय , मन्वंतरों तथा प्राचीन ऋषियों, मुनियो और राजाओ के वंशो तथा चरित्रों का वर्णन समाहित किया गया है | भारतीय जीवन शैली , भक्ति मार्ग और कर्मयोग का पुराणों में अदभुत समन्वय मिलता है | हज़ारो पृष्ठो में फैले इन पुराणरूपी मुक्ताओं की दिप-दिप दमकती आभा से जो दिव्य दर्शन होता है, उससे प्रत्येक धर्म प्राण मनुष्य का जीवन निहाल हो जाता है| पुराण ऐसे प्रकाश स्तम्भ है, जो वैदिक सभ्यता और सनातन धर्म का पूर्ण परिचय तो देते ही है,साथ ही मनुष्य की जीवन- शैली को सही रास्ता दिखाते है|
मत्स्य पुराण (Matsya Puran Hindi) 18 पवित्र पुराणों में एक पुराण हे, और पुराणों की सूचि में 16वें स्थान पे है। इस पुराण में 14,000 श्लोक और 291 अध्याय है। यह पुराण वैष्णव पुराण है। इस पुराण में प्रलय काल के समय भगवान विष्णु ने एक मत्स्य (मछली) का अवतार धारण किया इसलिए यह मत्स्य पुराण के नाम से जाना जाता है।
मत्स्य पुराण में जल प्रलय के साथ, मत्स्य और मनु के संवाद का वर्णन, ‘राजधर्म’ और ‘राजनीति’ का अत्यन्त श्रेष्ठ वर्णन, ‘सावित्री सत्यवान’ की कथा, ‘नृसिंह अवतार’ की कथा, तीर्थयात्रा का वर्णन, दान महात्म्य का वर्णन, प्रयाग तीर्थ और काशी महात्म्य का वर्णन, पवित्र नर्मदा का महात्म्य, स्थापत्य कला’ का सुन्दर वर्णन, मूर्तियों के निर्माण की पूरी प्रकिया एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर विशेष वर्णन कहा गया है।
मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछ्ली) के अवतार धारण करके राजा मनु को सभी प्रकार के जीव-जन्तु एकत्रित करने के लिये कहा, और पृथ्वी जब जल में डूब रही थी, तब मत्स्य अवतार में भगवान ने उस नांव की रक्षा की थी। इसके पश्चात ब्रह्माजी ने पुनः जीवन का निर्माण किया।
परम पवित्र मत्स्य पुराण में सभी शास्त्रों का शीर्षस्थ अदभुत ज्ञान अथाह भंडार है। यह पुराण श्रोता और वक्ता के सभी पापों को दूर करके सभी प्रकार के कल्याण को भी प्रदान करता है। इस पुराण में राजा मनु और मत्स्य की कथा के साथ ही पृथ्वी के प्रलय की कथा भी है।
मत्स्य पुराण (Matsya Puran Hindi) का ज्ञान भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) का रूप धारण करके स्वयं कहा है। यह पुराण वैष्णव, शाक्त, सौर, शैव, सभी सम्प्रदाय में पूज्य माना जाता है। मत्स्य पुराण की एक दिन की भी कथा सुनले वह मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर भगवान श्रीमन्नारायण के परम धाम को प्राप्त कर लेता है। परम् पवित्र यह पुराण महापापों का नाश करके आयु की वृद्धि करने वाला, कीर्ति वर्धक और यश को बढ़ाने वाला पुराण है।
‘मत्स्य पुराण’ में पुरुषार्थ के विषय में कहा गया हे की जो व्यक्ति आलसी होता है और कर्म नहीं करता, वह भूखा मरता है। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाला मनुष्य कभी भी जीवन में सफल नहीं होता। उस मनुष्य से श्रीवृद्धि तथा समृद्धि सदैव रूठी रहती है।
यह पाठ साहित्य की पुराण शैली की सबसे प्रारंभिक ज्ञात परिभाषा प्रदान करने के लिए उल्लेखनीय है। मत्स्य पुराण के अनुसार पांच विशेषताओं के साथ लिखा गया इतिहास पुराण कहलाता है , अन्यथा इसे आख्यान कहा जाता है । ये पांच विशेषताएं हैं ब्रह्मांड विज्ञान , ब्रह्मांड की प्राथमिक रचना के अपने सिद्धांत का वर्णन, माध्यमिक रचनाओं का कालानुक्रमिक विवरण जिसमें ब्रह्मांड जन्म-जीवन-मृत्यु के चक्र से गुजरता है, देवी-देवताओं की वंशावली और पौराणिक कथाएं, मन्वंतर , राजाओं की किंवदंतियां। और सौर और चंद्र राजवंशों सहित लोग|
मत्स्य पुराण में एक श्लोक (भजन) है, जो हिंदू धर्म में पारिस्थितिकी की श्रद्धा के महत्व को बताता है। इसमें कहा गया है, "एक तालाब दस कुओं के बराबर है , एक जलाशय दस तालाबों के बराबर है, जबकि एक पुत्र दस जलाशयों के बराबर है, और एक पेड़ दस बेटों के बराबर है।
वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित 'मत्स्य पुराण' व्रत, पर्व, तीर्थ, दान, राजधर्म और वास्तु कला की दृष्टि से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुराण है। प्रारम्भ में प्रलय काल में पूर्व एक छोटी मछली मनु महाराज की अंजलि में आ जाती है। वे दया करके उसे अपने कमण्डल में डाल लेते हैं। किन्तु वह मछली शनै:-शनैष् अपना आकार बढ़ाती जाती है। सरोवर और नदी भी उसके लिए छोटी पड़ जाती है। तब मनु उसे सागर में छोड़ देते हैं और उससे पूछते हैं कि वह कौन है?
भगवान मत्स्य मनु को बताते हैं कि प्रलय काल में मेरे सींग में अपनी नौका को बांधकर सुरक्षित ले जाना और सृष्टि की रचना करना। वे भगवान के 'मत्स्य अवतार' को पहचान कर उनकी स्तुति करते हैं। मनु प्रलय काल में मत्स्य भगवान द्वारा अपनी सुरक्षा करते हैं। फिर ब्रह्मा द्वारा मानसी सृष्टि होती है।
मत्स्यावतारी महात्म्य के द्वारा राजा वैवस्वत् मनु तथा सप्तर्षियों को, जो अत्यंत दिव्य एवं लोक-कल्याणकारी उपदेश दिए गए हैं, वे ही मत्स्य पुराण में संगृहीत हैं।
सृष्टि के प्रारंभ में जब हयग्रीव नामक असुर वेदादि समस्त शास्त्रों को चुराकर पाताल में चला गया, तब भगवान् ने मत्स्यावतार धारण कर वेदों का उद्धार किया और एक विशाल नौका को अपने सींग से खींचते हुए महाराज मनु को मत्स्य पुराण की कथा सुनाई थी।
भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि हम जन जन को इन प्राचीनतम धर्म ग्रंथो में निहित मानव ज्ञान और आध्यात्मिक संदेशो से परिचित कराये और इस सांस्कृतिक धरोहर को आज के परिपेक्ष्य में शाश्वत स्वरुप प्रदान करे|