श्री केदारनाथ धाम : जाने पूरी कहानी और आध्यात्मिक रहस्य | Kedarnath Dham | Kedarnath Yatra | Bharat Mata
भारत एक ऐसा देश है जिस के कण-कण में आस्था आध्यात्मिक एवं धर्म विद्यमान है। सर्वधर्म समभाव का अनुपम प्रति भारत संपूर्ण विश्व में अपनी संस्कृति इतिहास एवं सभ्यता के लिए प्रसिद्ध है। भारत की किसी अद्भुत संस्कृति एवं धर्म के गौरव की पताका को फहराता मंदिर है। केदारनाथ मन्दिर भारतीय धर्म के महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है, जो उत्तराखण्ड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह मंदिर हिमालय पर्वत की गोद में स्थित है और भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। चार धामों और पंच केदारों में से भी यहाँ स्थित है।
Famous Hindu Temple in India: केदारनाथ मन्दिर
केदारनाथ मन्दिर का निर्माण प्राचीन काल में हुआ था, और इसकी शैली और स्थापत्य कला कत्यूरी शैली से प्रेरित है। मान्यता है कि इसे पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने बनवाया था। मंदिर में स्थित स्वयंभू शिवलिंग अत्यंत प्राचीन है और इसे आदि शंकराचार्य ने जीर्णोद्धार किया था। केदारनाथ का स्थान भी अत्यधिक प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त है। यहाँ की वातावरणिक विशेषताएँ, जैसे कि ऊँची पहाड़ियों का सम्मिलन, कराचकुंड, और भरतकुंड के समीप स्थित नदियाँ, इसे एक अद्वितीय धार्मिक और पर्यटन स्थल बनाती हैं। मंदाकिनी नदी का जलसंग्रहण क्षेत्र भी इस स्थल के महत्व को और बढ़ाता है। केदारनाथ मन्दिर का अस्तित्व और महत्व इसे भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बनाता है, जो आज भी लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
केदारनाथ की महिमा एवं इतिहास
माना जाता है कि भगवान विष्णु के अवतार महत्वपूर्ण नर और नारायण ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने प्रार्थना अनुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यही स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर स्थित है। एक अन्य कथा के अनुसार महाभारत में पांडव। अपने ही बंधु बंधुओं के रक्तपात से अत्यधिक दुखी थे और उस पाप से मुक्ति के लिए भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे किंतु भगवान शिव उनसे अत्यंत रिश्ते थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। पांडवों ने भगवान शिव को काशी और उसके पश्चात उत्तराखंड के गुप्तकाशी में खोजा परंतु महादेव केदार पुरिया के शिव जी को खोजते खोजते पांडव यहां भी आ पहुंचे। भगवान शिव ने यह जान महेश का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जा मिले, किंतु भीम के द्वारा उनको पहचानने पर प्रभु धरती में प्रवेश करने लगे। इस पर भीम ने अपनी शक्ति से उनको अंदर जाने से रोक लिया, जिससे उनकी पीठ वाला हिस्सा है। वहां बचा रह गया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति एवं दृढ़ संकल्प देखकर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति प्रिंट के रूप में यहां निवास करते हैं और केदारनाथ में शिवलिंग के स्थान पर कौन है, शीला की पूजा की जाती है जिसके ऊपर ही यह मंदिर है।
मंदिर के निर्माण का कोई प्रामाणिक उल्लेख किया था, किंतु कहां जाता है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था। केदारनाथ मंदिर 1 फीट ऊंची वेदिका पर निर्मित है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है जिसके बाहर प्रांगण में पूजनीय नंदी बैल बहन के रूप में विराजमान है। मंदिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। गर्भ ग्रह मध्य भाग सभा मंडल ग्रह के मध्य में भगवान श्री। केदारेश्वर जी का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग स्थित है। प्राचीन काल में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर सुंदर कटुए पत्थरों से निर्मित जलेबी बनाई गई थी और इस मंदिर का निर्माण इन्हीं पत्थरों द्वारा किया गया है। मंदिर की छत लकड़ी की बनी हुई है जिसके शिखर पर स्वर्ण कलश स्थापित है। श्रावण मास में यहां दर्शन हेतु कावड़ियों का तांता लगा रहता है। महादेव के दर्शन अभिलाषी भक्तों के लिए मंदिर के कपाट प्रातः 6:00 बजे से खुल जाते हैं। दोपहर 3:00 से 5:00 तक विशेष पूजा होती है जिसके पश्चात मंदिर कुछ समय के लिए बंद रहता है। चाहे को 5:00 बजे से फिर दर्शन हेतु मंदिर के कपाट खुलते हैं और रात्रि 8:00 बजे आरती के बाद पुनः कपाट सुबह तक के लिए बंद कर दिए जाते हैं। शीतकाल के समय केदारनाथ जी का प्रवास यहां से 7 किलोमीटर दूर उखीमठ में होता है। यहां पर स्थित मंदिर में भगवान शिव की ओमकारेश्वर के रूप में निरंतर पूजा होती है। किंतु केदारेश्वर में ग्रीष्मकालीन प्रवास के छह माह तक उनकी पूजा केदार रूप में होती है। अतः जो श्रद्धालु शीतकाल में केदारनाथ के दर्शन करना चाहते हैं उखीमठ में दर्शन लाभ प्राप्त करते।
केदारनाथ यात्रा का समय
केदारनाथ धाम उत्तराखंड की पावन छोटा चार धाम यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह यात्रा हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को इस प्राचीन मंदिर की ओर आकर्षित करती है। छोटा चार धाम यात्रा में अन्य मंदिर हैं जैसे कि बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, लेकिन केदारनाथ का महत्व विशेष है जो भगवान शिव को समर्पित है। केदारनाथ मंदिर के दर्शन की तिथि प्रत्येक वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार निर्धारित की जाती है। मंदिर का उद्घाटन अक्षय तृतीया और महा शिवरात्रि के दिन किया जाता है। इसके बाद, मंदिर का समापन दीवाली के बाद भाई दूज के दिन होता है, जब वह शीतकाल के लिए बंद कर दिया जाता है। यह अनुसंधान के लिए उपयुक्त तिथियां हैं क्योंकि वहां के पर्वतीय माहौल के बदलते विशेषताओं को ध्यान में रखती हैं।
केदारनाथ यात्रा का मार्ग
केदारनाथ यात्रा के लिए श्रद्धालुओं को पहले हरिद्वार या देहरादून तक पहुँचना होगा, जो की रेल, बस या उड़ान से संभव है। दिल्ली से हरिद्वार की दूरी लगभग 200 किलोमीटर है, जो बस या रेल से आसानी से संभव है। हरिद्वार या देहरादून से फिर गौरीकुंड तक बस, टैक्सी या रेलवे मार्ग से जा सकते हैं। गौरीकुंड से केदारनाथ तक का मार्ग 18 किलोमीटर का पैदल ट्रैक है, जिसमें लगभग 15-18 घंटे की चढ़ाई करनी पड़ेगी। इसमें पर्वतीय रास्ते और दृश्यों का आनंद लेने का मौका मिलेगा। यदि इस लंबे पैदल ट्रैक को नहीं करना चाहते हैं, तो हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है, जिससे गौरीकुंड से केदारनाथ आसानी से पहुँच सकते हैं। यह विकल्प आपके लिए समय और शारीरिक थकावट को कम कर सकता है। केदारनाथ यात्रा के लिए सर्वश्रेष्ठ ऋतु अप्रैल से नवंबर है, जब मंदिर खुला रहता है।
2013 की प्रकार्तिक आपदा
जून 2013 में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण अनेक स्थानों पर विनाशकारी प्रक्रिया हुई थी, और इसका सबसे बड़ा प्रभाव केदारनाथ में देखा गया था। इस विपदा ने मंदिर के आसपास के क्षेत्र को तबाह कर दिया था, जबकि मंदिर का मुख्य हिस्सा और वर्षों पुराना गुंबद अद्वितीय रूप से सुरक्षित रहा। केदारनाथ मंदिर एक अनसुलझी पहेली है जिसे वैज्ञानिकों ने समझने की कोशिशें की हैं। इस मंदिर का स्थान और उसकी वास्तुकला में छुपी गहरी वैदिक संस्कृति और धार्मिकता की भव्यता को दर्शाते हैं। केदारनाथ को भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सबसे ऊंचा माना जाता है, और इसे युगों से मान्यता मिली है।