Vishnu Purana: क्या है विष्णु पुराण में, जानिए ब्रम्हांड की उत्पत्ति के रहस्य - Ved & Puran
पुराणों का उद्देश्य सारगर्भित संवादों की श्रंखला द्वारा सर्वसाधारण जन जन को वैदिक परंपरा के ज्ञान का संप्रेषण है| इस संप्रेषण का तात्पर्य वाक्य या शब्दों की पुनराव्रत्ति मात्र नहीं, अपितु वाक्यार्थ को ग्रहण कराने के समर्पण भाव की साधना है| यह अमूल्य धरोहर, यह वाचिक थाती, यह अक्षुण्ण परंपरा, यह सौंपना और ग्रहण करना निर्जीव व्यापार नहीं है,अपितु एक तपः साधना है|
विष्णु पुराण का संक्षिप्त परिचय
अट्ठारह पुराणों की सूची में तृतीय स्थान पाने वाला यह पुराण पाराशर ऋषि की रचना है| इसके खंडों को अंश कहते हैं, इसके अंशों की संख्या 126 है| इस पुराण में मुख्य रूप से कृष्ण चरित्र का वर्णन है| यह ग्रंथ वैष्णव दर्शन का मूल आलंबन है| आचार्य रामानुज ने अपने श्री भाष्य में इसका प्रमाण व उद्धरण बहुलता से किया है|
प्रथम अंश में सर्ग लक्षण अथवा सृष्टि की उत्पत्ति की विस्तृत विवेचना है| इसमे काल का स्वरूप, ध्रुव,प्रथु और प्रह्लाद की कथाएँ है| द्वितीय अंश में भूगोल का बहुत ही सांगोपांग विवेचना है| लोकों का स्वरूप एवं पृथ्वी के नौ खंडों का वर्णन है, तथा गृह,नक्षत्र,ज्योतिष आदि का परिचय दिया गया है| तृतीय अंश में मन्वन्तर,वेदत्रयी की शाखाओं का विस्तार, ग्रहस्थ धर्म व श्राद्धकर्म की विधि का विस्तार से वर्णन है| पाँचवाँ अंश और सभी 38 अध्याय भागवत के दशम स्कन्ध की भाति भगवान श्री कृष्ण की विविध लीलाओं का वर्णन करते हैं| छठा अंश केवल आठ अध्यायों का है| जिसमे कलिधर्म निरूपण तथा प्राकृत प्रलय व ब्रह्मयोग का निरूपण है| विष्णु पुराण के अंतिम तीन अध्यायों में खाण्डिक्य, जनक व कोशिध्वज की कथा के माध्यम से कर्म मार्ग व अध्यात्म मार्ग, दोनों की ही बहुत ही सुंदर व तुलनात्मक चर्चा की गई है|
विष्णु पुराण में भारतवर्ष का वर्णन
विष्णु पुराण में भारतवर्ष को कर्मभूमि कहा गया है, जहां मनुष्य कर्मों को संचित व क्षय कर सकता है| शेष सम्पूर्ण पृथ्वी भोगभूमि है, जहां कर्मों के फल द्वारा भोग तो प्राप्त हो सकते हैं,परंतु कर्मों का संचयन व क्षय नहीं होता है|
भारत भूमि का परिचय देते हुए कहा गया है
“उत्तरं यतसमुद्रस्य हिमाद्रेश्चैथ दाक्षिणम्
वर्ष तद भारतं नाम भारती यत्र संततिः
जो पवित्र भू भाग समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में स्थित है,उसका नाम भारत है और उसकी संतति भारती है|
इतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यम चान्तश्य गम्यंते
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां कर्म भूमौ विधीयते|
यहीं से स्वर्ग,मोक्ष,अंतरिक्ष व पाताल लोक को पाया जा सकता है| इसके अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी किसी भी भूमि पर मनुष्यों के लिए कर्म का विधान नहीं है|
भारत भूमि की वंदना के लिए विष्णु पुराण का निम्नलिखित ललित पद अमर हो गया है|
गायन्ति देवाः किल गीतकानि
धान्यास्तु ते भारत भूमिभागे ।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते
भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् |
कर्माण्डसंकल्पितत्फलानि
संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते ।
अवाप्य तां कर्ममहीमनन्ते
तस्मिँल्लयं ये त्वमलाः प्रयान्ति |
अर्थात देव गण भी निरंतर यही गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और मोक्ष के मार्गभूत भारत भूमि में जन्म लिया है, वे पुरुष हम देवताओं की अपेक्षा भी अधिक धन्य व बड़भागी है, जो लोग इस कर्मभूमि में जन्म लेकर अपनी कलाकांक्षा से रहित कर्मों को परमात्म स्वरूप श्री विष्णु भगवान को अर्पण करने से निर्मल,पाप रहित होकर अंत में उस अनंत में लीन हो जाते है वे धन्य है|
भारत समन्वय परिवार का प्रयास है कि अपनी प्राचीनतम् सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संचित पुराणों के इस ज्ञान और कल्याणकारी संदेशों को जनमानस तक प्रेषित कर इन्हे सदा संरक्षित रखने की दिशा में अपना योगदान दें|