सिंह गढ़ किला | मराठाओं की शान का प्रतीक | History Of Sinhagad Fort In Hindi | Bharat Mata
भारत की ऐतिहासिक प्रचुरता भारत के कण कण में परिलक्षित होती है। प्राचीन काल से ही भारत अपने भव्य स्मारकों और धरोहरों के लिए विश्व प्रसिद्ध रहा है। प्राचीनकालिक समृद्धशाली भवन आज भी भारत की उन्नत और धार्मिक संस्कृति को दर्शाते हैं। ऐसी ही सांस्कृतिक प्रचुरता से ओत प्रोत किलों ने महाराष्ट्र की शान में अनेकों सितारे जड़े हैं। महाराष्ट्र में हमेशा से ही मराठा परचम लहराता रहा है। आज हम जिस किले की चर्चा करने जा रहे हैं वो भारतीय इतिहास में अपनी एक अलग पहचान कायम किये हुए है। मराठाओं की शान का प्रतीक, पुणे शहर से लगभग 30 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित सिंहगढ़ किला जो आज से लगभग 2000 साल पूर्व निर्मित हुआ था।
सिंहगढ़ किले को पहले के समय में कोंढाना नाम से जाना जाता था। मान्यता है कि प्राचीनकाल में सिंहगढ़ किले से पूर्व, यहाँ कौंडिन्य’ अथवा ‘श्रृंगी ऋषि’ का आश्रम हुआ करता था। किवदन्तियों के अनुसार, महाराष्ट्र के पूर्व शासक यादवों या शिलाहार नरेशों में से कुछ ने इसे कोंढाना किले में परिवर्तित किया होगा।
सिंहगढ़ किले की खास बातें | Special Features of Sinhagad Fort
सिंहगढ़ किला अपने गर्भ में अनेकों रहस्य समेटे हुए है। मुग़ल काल में ये किला कुछ विशेष चर्चा का विषय बना। मुग़ल काल में मुहम्मद तुग़लक़ के शासन में ये किला ‘नागनायक’ नामक राजा के अधिकार में था। आठ माह के लंबे युद्धकाल के पश्चात यहाँ क्रमशः अहमदनगर के संस्थापक मलिक अहमद और बीजापुर के सुल्तान का भी कब्ज़ा रहा।
इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ इस किले का विशेष संबंध दर्ज है। शिवाजी के पिता मराठा नेता शहाजी भोंसले को इब्राहीम आदिल शाह के शासनकाल में पुणे क्षेत्र का नियंत्रण सौपा गया था किन्तु शिवाजी महाराज ने किसी मुग़ल शासक के सामने ना झुकने का प्रण लिया था, अतः वो स्वराज्य की स्थापना की ओर अग्रसर हो गए। उन्होंने आदिल शाह के सरदार सिद्दी अम्बर को अपने अधीन कर कोंढाना किले को अपने स्वराज्य में शामिल कर लिया। 1649 में अपने पिता को दिल शाह की कैद से छुड़ाने के लिए उन्हें इस किले को फिर से आदिल शाह को सौपना पड़ा।
तदन्तर, 1665 में इस किले की कमान मुगल सेना प्रमुख “मिर्जाराजे जयसिंग” के हाथों में चली गई। शिवाजी ने अपने सरदार तानाजी मालूसरे और उनके सैनिकों के माध्यम से ये किला फिर से अपने नाम कर लिया। इस युद्ध में तानाजी वीरगति को प्राप्त हुए। तानाजी को श्रद्धांजलि देने के लिए शिवाजी महाराज ने इस किले का नाम सिंहगढ़ रखा।
सिंहगढ़ ये किला 17 वीं सदी के अनेकों ऐतिहासिक संग्रामों का साक्षी रहा है। संभाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात, इस किले पर पुनः मुग़ल नियंत्रण स्थापित हुआ। 1693 के संग्राम में, “सरदार बलकवडे” की अध्यक्षता में एक बार फिर इस किले पर मराठा ध्वज फहराया। ये सिलसिला यहीं समाप्त नहीं हुआ, 1703 में औरंगजेब ने इस किले पर अपना आधिपत्य स्थापित किया लेकिन, 1706 में एक बार फिर संगोला, विसाजी चापर और पंताजी शिवदेव के सराहनीय प्रयास से ये किला मराठा साम्राज्य के अधिकृत हो गया।
अंततः, भारत में ब्रिटिश आगमन हुआ और पेशवाओं की शान का प्रतीक ये किला उनके अधिकार से वंचित हो 2 मार्च 1818 में अंग्रेजों की जागीर बन गया। कब्जा करते ही अंग्रेजों द्वारा किले पर आधिपत्य के साथ ही मराठा साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया।
वर्तमान में ये किला पर्यटकों के लिए एक सुंदर और आकर्षक पर्यटन स्थल बना हुआ है। मराठाओं की आन बान और शान को दर्शाता सिंहगढ़ किला मराठा इतिहास की अविरल धारा का प्रवाह विश्व भर में कर रहा है।
अविश्वसनीय पराक्रम और मराठा साहस के प्रतीक सिंहगढ़ किले और भारत माता के वीर सपूतों को Bharat Mata परिवार का शत शत नमन। धर्म तथा संस्कृति के प्रकाश से आपको निरंतर आलोकित करने के लिए हम सतत प्रयासरत हैं।
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