सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग:सोमनाथ मंदिर की कहानी एवं रहस्य | Story of Somnath Temple Gujrat
संस्कृति सभ्यता एवं आस्था के लिए संपूर्ण विश्व में प्राकृतिक भारत को देवताओं की धरती भी कहा जाता है। भारत वही पुण्य भूमि है जहां ऐसे कई धार्मिक और पवित्र तीर्थ स्थल स्थापित हैं जिनका अपना अलग-अलग धार्मिक महत्व है और जैन से लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है। उन्ही में से एक है गुजरात राज्य के वेरावल बंदरगाह में प्रभास पाटन के पास स्थित सोमनाथ मंदिर भारत के वैभव शाली इतिहास और सनातन धर्म की महानता का देदीप्यमान प्रतीक है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित उनके 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग का स्थान है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों के स्थान हैं जहां भगवान शिव ने साक्षात प्रकट होकर दर्शन दिए थे। सोमनाथ मंदिर की प्राथमिकता एवं वास्तुकला मन को मंत्र मुक्त करने वाली है। अपने गौरवशाली इतिहास और शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को कई बार मुस्लिम आक्रमणकारियों और कोर्स। भाइयों द्वारा तोड़ा गया तो साथ ही कई बार इसका पुनर्निर्माण भी हुआ है। इस पर है। यह मंदिर कई सदियों से सहिष्णुता सहयोग और अहिंसा का जीवंत उदाहरण रहा है और आज भी है। इतिहास की दृष्टि से सोमनाथ मंदिर भारतीय संस्कृति में एक अति विशिष्ट स्थान रखता है। सोमनाथ मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद स्कंद पुराण महाभारत में देखने को मिलता है। इस मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था जिन्हें सोम नाम से भी जाना जाता है। अतः चंद्रमा द्वारा भगवान शिव के मंदिर को उनके प्रिय भक्त सोम के नाम से आगे प्रसिद्धि मिली। बबीता और आस्था के प्रतीक सोमनाथ मंदिर पर साल 1026 में।आमोद गजनबी ने हमला कर न केवल मंदिर की आस्था संपत्ति लूटी और मंदिर को क्षतिग्रस्त किया अपितु हजारों लोगों की जान भी ले ली थी जिसके पश्चात इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और विनाश का सिलसिला कई वर्षों तक जारी रहा। इस वास्तु कला एवं उत्कृष्ट बनावट सभी के लिए आकर्षण का केंद्र है। लगभग 42 मंदिरों से सोमनाथ मंदिर 10 किलोमीटर के विशाल क्षेत्रफल में विस्तारित है, जिसे तीन हिस्सों में विभाजित किया गया है, जिसमें मंदिर का गर्भगृह नृत्य मंडप मंडप सम्मिलित हैं। मंदिर के दक्षिण दिशा की तरफ आकर्षक हम भी बने हुए हैं जो कि बाण स्तंभ के लाते हैं। वही एक खंबे के ऊपर एक तीर रखा गया है जो कि यह प्रदर्शित करता है कि इस पवित्र सोमनाथ मंदिर और दक्षिण पूर्व के बीच पृथ्वी का कोई भी हिस्सा नहीं। श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ा। यह सोमनाथ मंदिर प्रभास क्षेत्र या फिर प्रभास पाटन के नाम से जाना जाता था। इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया था।तुम नाथ मंदिर के प्राचीन और भव्य पर हाथ एवं इसकी अद्भुत वास्तुकला के कारण यहां दूर-दूर से भक्त जनदर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन मात्र से भक्तों के सारे दुख दर्द दूर हो जाते हैं एवं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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