Maurya Emperor Bindusara | मौर्य सम्राट बिंदुसार के जन्म की अनसुनी कहानी I Bindusar | Mauryan Empire

मौर्यकाल यानी भारत के इतिहास का वह समय जब चंद्रगुप्त मौर्य जैसा शूरवीर राजा एवम चाणक्य जैसा अद्भुत प्रज्ञा का राजनीतिक सलाहकार का शासन राष्ट्र के बड़े भूभाग पर था। मौर्यकाल ही वह समय था जब नालंदा एवम् तक्षशिला जैसे विद्या केंद्रों से फैली ज्ञान की ज्योति सम्पूर्ण भारतवर्ष को प्रकाशित कर रही थीं। 
मौर्य साम्राज्य अपने समय के सबसे बड़े साम्राज्यों में से एक था और जो की पचास लाख वर्ग कि.मी से भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तारित था। कलिंग को छोड़कर मौर्योों ने शेष भारतीय उपमहाद्वीपों पर शासन किया था।
मौर्य साम्राज्य के संस्थापक सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को हरसंभव संकट से बचाने हेतु आचार्य चाणक्य प्रशिक्षित करते थे, जिसके अंतर्गत वे उनके भोजन में थोड़ा थोड़ा विष मिलाते थे, ताकि वे विष को ग्रहण करने के आदी हो जाएं और यदि कभी शत्रु उन्हें विष का सेवन कराकर मारने की कोशिश भी करे तो उसका राजा पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ सके। साथ ही उन्होंने ये आदेश दिया कि यह भोजन सम्राट के अतिरिक्त कोई अन्य न ग्रहण करें।
परंतु दुर्भाग्य से  एक दिन विष मिलाया हुआ खाना राजा की पत्नी दुर्धरा ने ग्रहण कर लिया। रानी उस समय गर्भवती थीं। अब विष से पूरित खाना खाते ही उनकी तबियत बिगड़ने लगी, और जब आचार्य आचार्य को इस बात का पता चला तो उन्होंने तुरंत रानी के गर्भ से शिशु को बाहर निकलवा लिया और राजा चंद्रगुप्त के वंश की रक्षा की। यह शिशु आगे चलकर राजा बिंदुसार के रूप में विख्यात हुए, क्योंकि विष का एक तिल या बिन्दु समान अंश उनके मस्तक पर रह गया था इसलिए इनका नाम बिंदुसार पड़ा।
320 ईसा पूर्व पाटलिपुत्र में जन्मे इस महान शासक के जन्म को लेकर मतभेद है. कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म 340 ईसा पूर्व माना गया है. 
इतिहास में बिंदुसार को 'महान पिता का पुत्र और महान पुत्र का पिता' कहा जाता है, क्योंकि वे चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र और महान सम्राट अशोक के पिता थे।
चन्द्रगुप्त मौर्य के पश्चात बिन्दुसार 297 ईसा पूर्व में मगध के सिंहासन पर बैठा। बिंदुसार का उपनाम अमित्र घात था। अमित्रघात अर्थात शत्रु का नाश करने वाला। इससे पता चलता है कि बिंदुसार अपने पिता की तरह एक विजेता शासक थे।
यूनानी ग्रंथों में बिन्दुसार मौर्य को अमित्रोचेटस कहा गया है तो जैन ग्रंथ बिंदुसार को सिंहसेन कहकर संबोधित करते है।
बिन्दुसार भारत के दूसरे मौर्य सम्राट थे जिन्होंने 297 ईसा पूर्व से 273 ईसा पूर्व तक शासन किया था। प्रसिद्ध भारतीय शिक्षक, अर्थशास्त्री और दार्शनिक चाणक्य जिन्हें भारत में राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र का अग्रणी माना जाता है भी बिन्दुसार के मुख्य सलाहकार रहे थे।
बिंदुसार अपने पिता चंद्रगुप्त मौर्य की ही भांति वीर एवं चतुर थे। तिब्बत्ती यात्री तारानाथ ने बिंदुसार को राज्यों का विजेता के रूप में उल्लेखित किया है। उसके अनुसार बिंदुसार ने चाणक्य की सहायता से सोलह राज्यों पर विजय प्राप्त की थी तथा पूर्वी और पश्चिमी समुद्र के मध्य के भूभाग पर भी बिंदुसार ने अपना अधिकार कर लिया था।
अपने पिता चंद्रगुप्त की भांति बिंदुसार भी कला प्रेमी थे। 
विदेशों के साथ बिंबिसार ने शांति और मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखा। सेल्यूकस वंश के राजाओं तथा अन्य यूनानी शासकों के साथ चंद्रगुप्त के समय के संबंध इस सम्राट के काल में भी बने रहे। स्ट्रैबो के अनुसार सीरिया के सम्राट ए। टियोकस प्रथम का राजदूत डायमेकस बिंदुसार के दरबार में रहता था।
बिंदुसार के समय में अन्य राज्यों से भारत के अच्छे संबंध थे और व्यापारिक वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था । 
एथीनियास नामक लेखक के अनुसार यूनान का शासक एंटियोकस प्रथम के भारत के साथ अच्छे संबंध थे। बिंदुसार ने एंटियोकास को एक पत्र लिखा था जिसमें अंगूरी शराब ,अंजीर और एक (सोफिस्ट) दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की गई थी।

महावंश' के अनुसार बिन्दुसार के 16 स्त्रियों से 101 पुत्र थे जिनमें से अशोक और सबसे छोटे पुत्र तिष्य का जन्म एक ही माँ से हुआ था।

बिंदुसार के शासनकाल में उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में दो बार विद्रोह हुआ। पहली बार विद्रोह बिन्दुसार के बड़े पुत्र सुशीमा के कुप्रशासन के कारण हुआ। दूसरे विद्रोह का कारण अज्ञात है पर उसे बिन्दुसार के पुत्र अशोक ने विद्रोह को दबा दिया।

बिंदुसार एक शक्तिशाली एवं योग्य शासक था। उनके  शासनकाल में मौर्य राज्य अत्यधिक उन्नति को प्राप्त हुआ।बिंदुसार की आर्य मंजुश्री मूलकल्प ग्रंथ में अत्यंत प्रशंसा की गई है। इस कृति में सम्राट बिंदुसार की प्रौढ़ अर्थात् अनुभवी, धृष्ट अर्थात अत्यंत साहसी, प्रगल्भ यानी वाकविद्या में निपुण, प्रियवादी अर्थात् मीठा बोलने वाला मृदुभाषी जैसे शब्दों से प्रशंसा की गई है।

पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने 24 वर्ष तक तो वहीं महावंश के अनुसार बिन्दुसार ने 27 वर्ष तक राज्य किया। बिंदुसार की मृत्यु के समय को लेकर मतभेद है। कुछ विद्वानों ने बिन्दुसार की मृत्यु तिथि ईसा पूर्व 272 तो कुछ विद्वान् यह मानते हैं कि बिन्दुसार की मृत्यु ईसा पूर्व 270 में हुई थी। चंद्रगुप्त मौर्य के बाद बिंदुसार ने जिस कूटनीति एवम शौर्य पूर्वक राष्ट्र शासन किया उसने अशोक को महान शासक बनने की नींव प्रदान की। 

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