पृथ्वीराज चौहान को हराने वाला वीर योद्धा | Alha Udal defeated Prithviraj Chauhan

अभी तक आपने जाना की किस प्रकार महान योद्धा आल्हा और उदल ने अपने पिता और चाचा की मृत्यू का बदला लिया, अब जानते हैं की किस प्रकार उन्होंने महान राजा पृथ्वीराज चौहान हो पराजित कर विजयधुनी बजाई।

आल्हा -ऊदल बड़े लड़ैया, चम- चम चमक रही तलवार।

मची खलबली रण में भारी, होने लगे वार पर वार।।

जब- जब दुश्मन रण में आये,टूट पड़े ऊदल तत्काल।

काट -काट सर धूल चटाते, कर रणभूमि रक्त से लाल।।

आल्हा- ऊदल लड़ी लड़ाई, ऊदल तभी भरी हुँकार।

चुन-चुन सारे दुश्मन मारे,ऊदल करते हैं संहार।।

महाबली ऊदल बलशाली, भीम सरीखे विपुल महान।

सेना जब -जब आल्हा गाये,लड़त जायें वीर जवान।।

बड़े लड़ैया महोबा वाले, इनकी मार सही ने जाए।

एक को मारे दुई मर जावे, तीसरा ख़ौफ़ खाए मर जाए॥

मरे के नीचे जिंदा लुक गौ, ऊपर लोथ लई लटकाए।।

माहिल की ईर्ष्या और सिरसागढ़ की लड़ाई

मांडोंगढ़ की जीत के बाद हर तरफ आल्हा उदल की जीत की कीर्ति फैल गई थी। लेकिन मामा माहिल के मन मे अभी भी ईर्ष्या और द्वेष भरा हुआ था। फिर एक दिन वो मलखान को बताता है की पृथ्वीराज ने आक्रमण कर के सिरसागढ़ का राज्य उसके पिता से छीन लिया था। ये बात सुनकर मलखान आग बबूला हो गया। फिर वो उसी क्षण महाराज परमाल के पास गया। उसने अपने प्रश्नों के उत्तर मांगे, की इतने वर्षों मे किसी ने उसे ये बताया ही नहीं। महाराज परमाल उसे समझाते हैं की गड़े मुर्दे उखाड़ने से कुछ नहीं होगा। पृथ्वीराज की सेना बहुत बड़ी है, उन्हे पराजित करना इतना आसान नहीं होगा। परंतु बात मलखान के आत्म सम्मान की थी, बहुत लंबी चर्चा के बाद सिरसागढ़ पर आक्रमण का फैसला सुनाया गया। एक बार फिर आल्हा के हाथों मे महोबा की सेना की कमान थी। युद्ध से पूर्व पृथ्वीराज के पुत्र पार्थ को संदेश भेजा गया की, या तो युद्ध करो, वरना किला खाली कर दो। इस अकस्मात संदेश को देख कर पार्थ घबरा गया। उसने उसी क्षण महामंत्री को बुलाया, मंत्री सुझाव देता है की महाराज पृथ्वी राज चौहान को इस युद्ध के बारे मे सूचित कर देते हैं। पार्थ उसकी बात मान लेता है और अपने पिता को पत्र भेजता है। पृथ्वीराज तुरंत अपनी सेना को सिरसागढ़ के लिए रवाना होने को कहते है। महाराज का हुक्म सुनते ही, पृथ्वीराज का सेनापति चामुंडा राय, दस हज़ार सैनिकों की सेना लेकर सिरसागढ़ के लिए रवाना हो जाता है। वहीं दूसरी तरफ महोबा की सेना सिरसागढ़ की सीमा तक पहुँच गई थी। अगले ही दिन महोबा की सेना सिरसागढ़ पर आक्रमण कर देती है। फिर 6 दिनों तक घनघोर युद्ध होता है।

" घोड़ा विचला था उदल का, जिसमे बहे हजारो जवान

आधी जमना में पानी बहे , आधी में रक्त की धार

एक को मारे द्वि मार जावे, तीसर खौफ खाए मार जाए,

मरे के नीचे जिंदा लुक गौ, ऊपर लोथ लई लटकाए।। "

सातवें दिन उदल ने सिरसागढ़ के राजा पार्थ को तलवार मारकर घायल कर दिया ! राजा पार्थ आल्हा उदल के पराक्रम के आगे वहां से भाग खड़ा हुआ ! जब तक पृथ्वीराज खुद नही आ जाते, आल्हा उदल से पार पाना मुश्किल था। खुशकिस्मती से चामुंडराय 10000 की सेना के साथ सिरसागढ़ पहुंच गया था ! उसे लगता था कि वह इतनी विशाल और कुशल सेना के साथ चंदेलों को कुचल कर रख देगा ! अगले दिन उसने व्यूह रचना कर आल्हा ओर उदल को घेर लिया !

खुद को घिरा देखकर उदल ने चामुंडा को ललकारा ....

“की यहां बूढ़े घोड़े काम ना देवे, जहां बारह माह चले तलवार” ...

आल्हा उदल के पराक्रम के आगे चौहानों की एक ना चली ! चामुंडा और राजा पार्थ को भागकर पृथ्वीराज के पास जाना पड़ा ! सिरसागढ़ फिर से चंदेलों का हो गया !!

सिरसागढ़ की लड़ाई जीतने के बाद आल्हा उदल का ओहदा बहुत ऊंचा हो गया था। पूरे भारत मे आल्हा उदल के नाम का डंका बज रहा था। राजा परमाल ने मलखान को सिरसागढ़ का प्रभारी बना दिया था। लेकिन माहिल अब भी यही सोच रहा था की ऐसा क्या किया जाए की आल्हा उदल का ये यश, अपयश मे बदल जाए। एक दिन आल्हा उदल को एक गंधर्व ने 5 घोड़े दिए जिनका नाम, पक्षीराज, मृगराज, राजसुजान, पवनवेग, और मानवेग था। ये घोड़े इस तरह से भागते थे, की लोगों को लगता था की ये घोड़े हवा मे उड़ रहे हैं। आल्हा उदल उन घोड़ों को युद्ध के लिए तैयार करते हैं। वहीं माहिल को एक विचार आता है। वो अपनी बहन मल्हना के पास जाता है, और उसके कान भरता है, की आल्हा उदल के घोड़े खरीदने के पीछे कोई षड्यन्त्र है। वो कहता है की आल्हा उदल के मन मे खोट है। ये दोनों महाराज को मार कर गद्दी पर कब्जा करना चाहते हैं। माहिल की बात सुनकर मल्हाना की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है, और वो महाराज को सूचित करने जाती है। परमाल आल्हा उदल का पक्ष लेते है, परंतु मल्हाना एक नहीं सुनती और हठ कर लेती हैं की आल्हा उदल से उनके वो घोड़े ले लिए जाए। परमाल आल्हा उदल को बुलाते हैं, और उनसे वो घोड़े मांगते हैं। ये सुनकर सभी चकित हो गए। आल्हा राजदरबार से चला जाता है, और उदल अपनी पगड़ी और गहने उतार कर फेक देता है।

सावर चूरिया नागर छोड़े, ना बनिजर बनईजे जाए

और टप-टप बूंदे पद कपडन पर, दया ना काहू ठौ दिखाए,

आल्हा चलिबे उदल चलिबे , जैसे राम लखन चली जाएँ

राजा के डर कोई ना बोले नैना टपिक-टपिक रहे जाए।

नगर निवासी आँसू ढरे फिर से राम चले वनवास।।

आल्हा उदल अपनी माँ के साथ एक अज्ञात स्थान की ओर चल देते हैं, और ये खबर कन्नौज के राजा जयचंद के पास पहुँचती है। जयचंद उन दोनों के सामने कन्नौज का सेना पति बन ने का प्रस्ताव रखते है, और आल्हा उदल इस निमंत्रण को स्वीकार लेते हैं। राजकीय सम्मान के साथ उन दोनों का स्वागत हुआ। इतना सब होने के बाद भी माहिल का षड्यन्त्र खत्म नहीं होता, और वो पृथ्वीराज चौहान के पास जाकर उन्हे महोबा पर आक्रमण करने के लिए कहता है। पृथ्वीराज महिल की बातों मे आ जाते हैं, और इस बार चामुंडा राय पचास हज़ार सैनिकों के साथ महोबा पर आक्रमण करता है। उधर परमाल अपने पुत्र ब्रह्मा के कहने पर आल्हा उदल को एक पत्र भेजते हैं। अपनी माता की आज्ञा लेकर दोनों भाई महोबा जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। इस बात से जयचंद बहुत प्रसन्न होते हैं, और पचास हजार सैनिकों को महोबा भेज देते हैं। आल्हा उदल के महोबा पहुचने के बाद युद्ध आरंभ होता है। चामुंडा राय आल्हा को देखकर घबरा जाता है। भयंकर युद्ध शुरू होता है, दोनों दल दिल खोलकर लड़ते हैं, और इसी बीच चामुंडा राय आल्हा से मल्ल युद्ध करने के लिए कहता है। आल्हा चुनौती स्वीकार कर लेता है और उन दोनों के बीच 3 घंटों तक मल्ल युद्ध चलता रहा और फिर आल्हा ने चामुंडा राय को हरा दिया। एक के बाद एक महोबा के योद्धा सबको पछाड़ते हुए युद्ध जीतते जा रहे थे। युद्ध जीतने के बाद जब दोनों भाई अपने महल पहुचे, तब उनके सामने एक नई मुसीबत खड़ी हुई थी। एक दिन उदल आल्हा से मिलने के लिए उनके कमरे मे जाते हैं और कहते हैं की वो गंगा दशहरा के दिन बिठूर जाना चाहते हैं। आल्हा का बेटा इंदल भी साथ जाने की बात कहता है। फिर चाचा भतीजा बिठूर की तरफ चल देते हैं। गंगा दशहरा के दिन दोनों ने स्नान किया और फिर अपने खेमे की ओर चल दिए। रास्ते मे इंदल ने मेले मे जाने की बात कही तो उदल ने उसे जाने की आज्ञा देदी।

इंदल मेले मे गए और वहाँ बल्क बुखारे की राजकुमारी चित्ररेखा ने इंदल को देख लिया। और वो इंदल पर मोहित होगई। और उसने अपनी दासी को इंदल  के पास भेजा। चित्ररेखा इंदल के सामने विवाह का प्रस्ताव रखती है, लेकिन इंदल उसे माना कर देते हैं। तब चित्ररेखा ने अपने सिपाहियों को बुलवाया और इंदल को कैद कर लिया। साथ ही उसने इस बात को गोपनीय रखने का आदेश दिया। दूसरी तरफ उदल इंदल का इंतज़ार कर रहे थे, उदल को जब पता चला की इंदल लापता है तो वह विचलित होगए। उदल ने पूरा मेला देख लिया लेकिन इंदल नहीं मिला। उसी मेले मे माहिल भी था और जैसे ही उसे पता चला की इंदल गायब है, वो तुरंत आल्हा के पास पहुच गया।

“देखो आल्हा उदल की कोई संतान नहीं है इसीलिए वो सोचता है की उसके हिस्से की सारी संपत्ति इंदल ले लेगा”

माहिल ने कहा " ऊदल ने तुम्हारे पुत्र इंदल को मार दिया । जैसे ही उसने डुबकी लगाई , ऊदल ने तलवार से वार करके उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। सिर और धड़ गंगा में ही बहा दिए । "

आल्हा को पहले तो विश्वास नहीं हुआ, परंतु माहिल ने गंगाजी की सौगंध ली तो विश्वास हो गया । जवान पुत्र की हत्या पर किसे क्रोध नहीं आता! आल्हा भी आग- बबूला हो गया। माहिल की हरकत से अनजान उदल आल्हा के पास जाता है और उसे देखते ही आल्हा अपने भाई उदल को पीटने लगता है। उदल के लिए आल्हा पिता से बढ़कर थे, उसने बिन कुछ कहे सब सह लिया। ये सब देखकर आल्हा की पत्नी सोनादे अपने आप को रोक नहीं सकी, उसने आल्हा का हाथ पकड़ लिया और उदल को छोड़ने के लिए गिड़गिड़ाने लगी। सोनादे ने आल्हा को समझाया,

“हम तुम रहिबे जौ दुनिया में इंदल फेरि मिलैंगे आय,

कोख को भाई तुम मारत हौ ऐसी तुम्हहिं मुनासिब नाय।

जोड़ी बनी रहे दम्पत्ति की, बेटा होत ना लागत देर,

भैया गए तो फिर ना मिलिहैं, देवर मेरा लड़ाईता शेर,

काहे रूठ गए हो स्वामी काहे लखन को मारे राम,

भैया विपत्ति बट्टिया होते,गाढ़े दिन मे आवे काम।”

आल्हा ने हाथ रोक लिया लेकिन उसने जल्लाद बुलवाए और आदेश दिया कि ऊदल की हत्या करके इसकी आँखें सबूत के तौर पर मुझे लाकर दो । जल्लाद चले तो सोनादे साथ चली । उन्हें रोककर कहा, किसी हिरण का शिकार करके आँखें निकाल लाना, पर ऊदल को मत मारना । इनाम के रूप में सोनादे ने अपने गले का कीमती हार जल्लादों को दे दिया । जल्लादों ने जंगल में ले जाकर ऐसा ही किया । ऊदल अब अकेला सोचने लगा कि जाऊँ तो जाऊँ कहाँ? फिर उदल अपने ससुराल पहुँच गए और सब कुछ मकरंद राय को बताया। मकरंद ने इंदल को ढूँढने के लिए हर तरफ गुप्तचर भेज दिए थे। कुछ दिन बाद एक गुप्तचर मकरंद को बताता है की बलक बुखारे की राजकुमारी ने ही इंदल हो अगवाह किया है। ये बात पता चलते ही उदल ने बलक बुखारे पर हमला कर दिया। लेकिन बलक बुखारे के राजा घबरा गए और उन्होंने अपना दूत भेजा तब मकरंद ने उस दूत को सारा किस्सा बताया। ये बात पता चलते ही बलक बुखारे के राजा ने मकरंद और उदल को आमंत्रित किया, और उनसे क्षमा मांगी और बताया की इस बारे मे उन्हे कुछ नहीं पता था। बलक बुखारे के राजा ने इंदल को वापस उदल को सौंप दिया। और फिर मकरंद उदल और इंदल वापस चल पड़े। रास्ते मे मकरंद ने इंदल और उदल को सिरसागढ़ छोड़ दिया। इंदल को जीवित देखकर मलखान बहुत खुश हुए। और फिर उसे महोबा भेज दिया।

बिछड़ने के बाद आल्हा-उदल का पुनर्मिलन और अंतिम युद्ध

राजा परमाल ने आल्हा और सोनादे को बुलाया। वो दोनों अपने बेटे को देख कर बहुत खुश हुए और बहुत देर तक रोते रहे। मलखान ने अपने दूत के हाथों एक पत्र भेजा था और उस पत्र मे इंदल के साथ जो कुछ हुआ वो सब लिखा हुआ था। आल्हा के सर पर पहाड़ टूट पड़ा था, उन्हे एहसास हुआ की उनसे कितनी बड़ी गलती हुई है। तभी इंदल ने आल्हा को बताया की काका श्री जीवित हैं। ये सुनते ही सबकी खुशी का ठिकाना ना रहा। आल्हा तुरंत सिरसागढ़ गए। उदल को देखते ही आल्हा ने उन्हे गले लगा लिया और दोनों भाई एक दूसरे से लिपटे रहे। कहते हैं की उस दिन दोनों भाइयों के इस प्रेम को देख कर स्वर्ग के देवताओं ने भी फूल बरसाए थे।

आल्हा ने अपने जीवन काल मे 52 युद्ध लड़े, और उनमे से एक भी नहीं हारा, फिर आल्हा और ऊदल दोनों का अंतिम युद्ध दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान के साथ हुआ। बुंदेलखंड विजय का सपना लेकर पृथ्वीराज चौहान ने चंदेल शासन पर हमला किया था. बैरागढ़ में हुए भीषण युद्ध में आल्हा के भाई ऊदल को वीरगति प्राप्त होती है. इसके बाद आल्हा भाई की मृत्यू की खबर सुनकर आपा खो बैठते हैं और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर कहर बनकर टूट पड़ते हैं. भीषण युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान और आल्हा रण में एक दूसरे के सामने आ गए. आल्हा ने भीषण लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया. लेकिन कहा जाता है कि अपने गुरु गोरखनाथ के आदेश पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया था. उदल के बिना आल्हा अधूरे थे, उनके मन मे वैराग्य आगया और उन्होंने संन्यास ले लिया और मां शारदा की भक्ति में लीन हो गए. मान्यता है की माँ ने उनकी भक्ति और वीरता को देखकर अमर होने का वरदान दिया था।

तो ये थी आल्हा उदल की वीरता की कहानी। आल्हा उदल और मैहर माता की भक्ति की गाथा जानने के लिए follow करें भारत माता चैनल