रानी दुर्गावती - अकबर सेना को तीन बार युद्ध में हराने वाली वीरांगना | Life History of Rani Durgavati
भारत की धर्मवीर कथाओं की जननी है जहां हम आज आपको बताएंगे ऐसे ही वीरांगना की बारी में जिनका मानना था। बिना स्वाभिमान बड़ी जिंदगी से अच्छा है। मौत को अपना लिया जाए। भवानी स्वरूप सुंदर सुशील योग्य सी रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 15 से 24 मई महोबा की चंदेल राजपूत राजा शालिवाहन के घर हुआ था। उनका विवाह 1542 में बड़ा। राज्य के राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह से हुआ था। रानी दुर्गावती अपने राज्य को बचाने के लिए मुगल शासक सुजा खान से अकेले ही बढ़ गई थी। आइए आपको बताते हैं रानी दुर्गावती की पूरी कहानी असल में 1550 में बच्चा का देहांत हो गया था। उस वक्त दलपत शाह और रानी दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण की उम्र बहुत कम थी जिसके कारण रानी दुर्गावती को गोंडा में राज्य की गद्दी पर बैठा दिया गया। जहां उन्होंने राज्य को बहुत अच्छे से संभालते हुए अपने पूरे राज्य में शांति, व्यापार और सद्भावना को बढ़ावा दिया। कुछ ही समय में रानी। श्री गौड़ घर को छोड़कर चौरागढ़ को अपने राज्य की राजधानी बना लिया था। जहां 1562 में अब अकबर द्वारा शुरू की गई जंग में मलवा राज्य मुगल शासन के अंतर्गत आ चुका था। वही रानी को अब मुगल शासक आसिफ खान के हमले की भी खबर लग चुकी थी। उस जंग से डर के भागने या छुपने की बजाय उन्होंने इस जंग को लड़ने का फैसला किया, जिसकी सफल शुरुआत के लिए लड़ाई की गौर और नर्मदा नदी के बीच की पहाड़ियों को चुना गया। जंग की शुरुआत नहीं रानी दुर्गावती ने अपने पिता को खो दिया था। तब रानी ने फैसला किया कि अब वह अपना और अपने राज्य का बचाव स्वयं करेंगे तभी दुश्मन की पहाड़ी में घुसने की खबर से रानी और उनके सिपाही आगे बढ़े जहां उनके और भी साथी मारे गए। लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। जंग की अगली पढ़ाओ में मुगल सिपाहियों द्वारा किए गए बार मेरी रानी खुद भी घायल हुए थे। इसके बाद उनके बेटे 20 नारायण ने इस जंग में हिस्सा लिया और उन्होंने मुगलों को तीन बार पीछे हटने की चेतावनी भी दी। ऐसा नहीं हुआ और जंग बढ़ती ही गई। अंत में एक दिन ऐसा भी आया जब रानी दोबारा मुगल सिपाहियों के बाद का शिकार हुए एक टीम ने उनके कानों को चोट पहुंचाई तो दूसरी ने उनकी गर्दन को और वह बुरी तरह जख्मी हो गई। जब उन्हें होश आया तब वह खुद जान चुकी थी कि हार बहुत करीब है। उनकी सिपाही ने उन्हें यह तक सुझाव दिया कि अब उन्हें जंग के मैदान को छोड़कर पीछे हट जाना चाहिए, लेकिन उन्होंने इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया।और 24 जून 1564 में उन्होंने आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए अपनी तलवार उठा कर आत्म बलिदान को चुना। आज भी 24 जून के दिन को रानी दुर्गावती जी की याद में बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। जहां मध्य प्रदेश सरकार ने यूनिवर्सिटी ऑफ जबलपुर का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रख दिया है। वहीं इंडियन कोस्ट गार्ड द्वारा 24 जुलाई 2018 में आई पि वि का नाम आईसीजीएस रानी दुर्गावती रख दिया गया है। मध्यप्रदेश की छोटी सी राज्य में रानी दुर्गावती जी की समाधि बनाई गई है। जहां आज भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। निडर साहसी नारी को हमारा शत-शत नमन।
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