सम्राट विक्रमादित्य : वीरता का सूर्य जिससे इतिहास गौरवान्वित है | Raja Vikramaditya History In Hindi
सम्राट विक्रमादित्य : वीरता का सूर्य जिससे इतिहास गौरवान्वित है | Raja Vikramaditya History In Hindi
इतिहास में ऐसे बहुत से नाम मिल जाएंगे.. जिन्हें कभी भी कोई भूल नहीं सकेगा.. लेकिन विरले ही ऐसे नाम मिलेंगे.. जिनके नाम से इतिहास मापा जा सकेगा। ऐसा ही एक नाम है.. 102 ईसा पूर्व जन्मे.. महान राजा विक्रमादित्य का.. जिनके नाम से अत्यंत प्राचीन हिन्दू पंचांग.. विक्रम संवत या विक्रमी का आरम्भ हुआ। विक्रमादित्य.. यानी वीरता का सूर्य.. वो नाम है.. जिसे महाराजा विक्रमादित्य के बाद.. बहुत से राजाओं के नाम के साथ जोड़कर.. उन राजाओं की अद्भुत वीरता का सम्मान किया गया।
विक्रम संवत के अनुसार.. लगभग 2288 वर्ष पूर्व जन्मे.. विक्रमादित्य का वास्तविक नाम... विक्रमसेन था और उनके पिता उज्जैन के राजा गन्धर्व सेन और माता सौम्यदर्शना थीं। उस वक़्त कौन ये जान सकता था.. कि बचपन से ही निर्भीक और पराक्रमी.. विक्रम.. आगे चलकर भारत का चक्रवर्ती सम्राट बनने वाला था.. लेकिन विक्रम की कहानी तो जैसे स्वयं महादेव लिख रहे थे।
जब बर्बर शकों ने विशाल भारत पर आक्रमण किया तो विक्रमादित्य के पिता.. राजा गर्दभिल्ल यानी राजा गंधर्वसेन के साथ उनका भयंकर युद्ध हुआ.. जिसमें राजा गर्दभिल्ल की पराजय हुई और शकों ने भारत में अपनी जीत की निशानी के तौर पर.. अपने शक संवत की शुरुआत कर दी। हैवान शकों ने भारतीयों पर अत्याचार करना शुरू दिया। धीरे-धीरे शकों ने भारत के कई भागों को अपने कब्ज़े में ले लिया। एक ओर जहाँ शकों ने सम्पूर्ण भारत में हाहाकार मचा रखा था तो दूसरी ओर विक्रमसेन अपनी विराट महाकाल सेना तैयार कर रहे थे.. और फिर शकों की बर्बरता और क्रूरता के खिलाफ़.. विक्रमादित्य नाम कि एक ऐसी चिंगारी उठी जिसने न केवल शकों को भारत से भागने पर मजबूर कर दिया बल्कि भारत के अपने विशाल साम्राज्य को अरब से लेकर तुर्की तक भी फैला दिया।
57 ईसा पूर्व में.. शकों का काल बनकर.. युद्ध जीतने के बाद.. विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की स्थापना की और भारत के इस गौरवमयी विक्रम युग में अपने साम्राज्य का विस्तार करना आरम्भ किया। विक्रम युग की महिमा इस तथ्य से ज्ञात होती है कि भारत में महापुरुषों के संवत.. उनके अनुयायियों ने श्रद्धावश चलाये.. लेकिन आज भी भारत और साथ ही नेपाल का सर्वमान्य संवत 'विक्रम संवत' ही है।
अपने अनुपम साहस.. कर्तव्यपरायणता और युद्धकला के लिए प्रसिद्ध.. महाराजा विक्रमादित्य.. वो चक्रवर्ती हिन्दू सम्राट बने.. जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व पर एकछत्र राज किया और साथ ही अपनी न्यायप्रियता.. उदारता और ज्ञान का लोहा मनवाया।
महाराजा विक्रमादित्य के भव्य साम्राज्य का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि आज के भारत.. पाकिस्तान.. अफ़गानिस्तान.. तज़ाकिस्तान.. उज़्बेकिस्तान.. कज़ाकिस्तान.. तुर्की.. अफ़्रीका.. अरब.. नेपाल.. थाईलैंड.. इंडोनेशिया.. कंबोडिया.. श्रीलंका.. चीन और रोम तक.. राजा विक्रमादित्य का राज्य फैला हुआ था।
सम्राट विक्रमादित्य न केवल उच्च व्यक्तित्व के स्वामी थे.. बल्कि उनमें किसी भी व्यक्ति को परखने की भी अद्भुत क्षमता थी। शायद यही वजह थी कि वे पहले ऐसे राजा थे.. जिनका दरबार.. धन्वन्तरी.. क्षपंका.. अमर्सिम्हा.. शंखु.. खाताकर्पारा.. कालिदास.. भट्टी.. वररुचि.. वराहमिहिर जैसे उच्च कोटि के विद्वान और महान नवरत्नों से प्रतिष्ठित था।
सम्राट विक्रमादित्य की बुद्धिमत्ता.. पराक्रम.. न्यायप्रियता और महानता के विषय में.. संस्कृत.. प्राकृत.. हिन्दी.. बंगला.. गुजराती आदि बहुत सी भाषाओँ में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं.. जिनमें बृहत्कथा.. बेताल पच्चीसी और सिहांसन बत्तीसी की कहानियां बेहद लोकप्रिय हैं।
सम्राट विक्रमादित्य अपने राज्य की जनता के कष्टों और उनका हालचाल जानने के लिए वेश बदलकर नगर भ्रमण करते थे और अपने राज्य में न्याय व्यवस्था कायम रखने के लिए हर संभव प्रयास करते थे। इतिहास में वे सबसे लोकप्रिय और न्यायप्रिय राजाओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने अपने राज्य में राम राज्य की स्थापना की और भारत का राजदूत बनकर भारतीय संस्कृति को सम्पूर्ण विश्व तक पहुँचाया।
भारत समन्वय परिवार.. भारतीय इतिहास के स्वर्णिम युग.. महाराजा विक्रमादित्य के शासनकाल को याद करते हुए.. सम्राट विक्रमादित्य को कोटि-कोटि नमन करता है।
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