सत्य ,अहिंसा और मानवता की प्रतिमूर्ति सम्राट अशोक | History of Samrat Ashok | Bharat Mata

विश्व इतिहास के पृष्ठों पर अनगिनत महान शासकों की अद्भुत जीवन-गाथाएं अंकित हैं.. जिनकी ख्याति काल-खंड की सीमाओं से बद्ध नहीं हैं।

कुछ ने विश्वविजय अर्जित की.. कुछ ने राग-द्वेष को समाप्त करने में अपना जीवन व्यतीत कर दिया.. कुछ ने क्रूरता और हिंसा पर करुणा एवं अहिंसा की विजय स्थापित की और अपने राष्ट्र को प्रेम एवं सहृदयता की भेंट प्रदान की.. तो कुछ ने न केवल अपने साम्राज्य को अपितु विश्व को भी प्रभावित किया। इसी श्रृंखला में एक ऐसा नाम भी है.. जिनकी सफलता और यश का सम्पूर्ण विश्व में कोई अन्य उदाहरण नहीं है।

वो नाम है – सम्राट अशोक.. अशोक का शाब्दिक अर्थ होता है शोक से रहित। भारतीय संस्कृतभाषीय ग्रन्थ अशोकावदान के अनुसार बालक अशोक का ये नाम उनकी माता द्वारा रखा गया था.. क्यूंकि अशोक के जन्म ने उनके सारे दुखों का अंत कर दिया था। एक अन्य प्राचीन एवं बौद्ध तथा पाली साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रन्थ दीपवंस के अनुसार सम्राट अशोक को प्रियदशी की उपाधि भी प्राप्त थी। सम्राट अशोक के शिलालेखों में उनके शीर्षक देवनम्पिया अर्थात देवताओं के प्रिय संबोधन का भी उल्लेख है। सम्राट अशोक के स्वयं के शिलालेख अत्यंत विस्तृत हैं परन्तु उनके परिवार का कोई उल्लेख नहीं है। उनके जीवनकाल पर इतिहासकारों एवं विद्वानों के विभिन्न मत एवं धारणाएं हैं।

 किन्तु एक तथ्य जिसपर सभी पूर्णतः सहमत हैं वो ये है कि भारतीय मौर्य राजवंश के शक्तिशाली और विश्व प्रसिद्ध चक्रवर्ती सम्राट अशोक.. इतिहास के महानतम शासकों की श्रेणी में विराजमान हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि सम्राट अशोक के अतिरिक्त कोई दूसरा भारतीय शासक नहीं है जिसके जीवन का इतिहास निर्माण में इतना अभूतपूर्व योगदान रहा हो। अशोक दशकों से भारत और विदेशों में विद्वानों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। भारत के यशस्वी एवं कीर्तिवान शासक.. सम्राट अशोक.. Ashoka the great.. की उपाधि से सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं।

चक्रवर्ती सम्राट अशोक का जन्म 304 ई.पू. वर्तमान बिहार के पाटलिपुत्र में.. मौर्य साम्राज्य में हुआ था। पराक्रमी एवं कुशल सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अनुपम राजनीतिज्ञ चाणक्य द्वारा स्थापित मौर्य राजवंश.. प्राचीन भारत का एक शक्तिशाली राजवंश था। सम्राट अशोक.. सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के वंशज और सम्राट बिन्दुसार के पुत्र थे.. जिन्होंने मौर्य वंश के तृतीय शासक के रूप में मौर्य साम्राज्य का वृहद् स्तर पर विस्तार किया। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य.. महान एवं शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हुआ।

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के समान ही उनका पौत्र.. अशोक भी अति पराक्रमी एवं शूरवीर था.. जिसने अपने राज को अखंड भारतवर्ष में स्थापित किया और सम्पूर्ण भारत पर एकछत्र राज किया। बाल्यकाल से ही अशोक सैन्य गतिविधियों एवं युद्ध कला में निपुण था।

अशोक में महान शासक और साहसी योद्धा के गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान थे। बालक अशोक को ज्ञान अर्जित करने एवं अध्यन में विशेष रूचि थी। अर्थशास्त्र और गणित के महान ज्ञाता अशोक ने शिक्षा के प्रचार के लिए कई विद्यालयों एवं अध्यन केन्द्रों की स्थापना भी की थी। अपने शासनकाल में सम्राट अशोक ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किए थे जिस कारण भारतवर्ष में ज्ञान एवं शिक्षा के प्रति जागरूकता में वृद्धि हुई थी।

शासन करने के सभी गुण होने के पश्चात् भी.. अशोक को मौर्य राज्य स्वतः ही प्राप्त नहीं हुआ और सिहांसन पर उनका ऊद्गम विवादित रहा था। तक्षशिला और उज्जैन के उपद्रव और विद्रोह के दमन तथा अपने भाइयों के साथ गृह-युद्ध में विजय के पश्चात्.. अशोक ने मौर्य राजवंश के सम्राट के रूप में अपने साम्राज्य का विस्तार करना आरम्भ किया।

मौर्य सम्राट अशोक ने चहुँदिशा में अपनी कीर्ति एवं साम्राज्य का विस्तार किया.. उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण तक और पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में इराक और अफ़गानिस्तान तक सम्राट अशोक के राज्य का विस्तार था। भारत और वर्तमान के पाकिस्तान.. अफ़गानिस्तान.. नेपाल.. बांग्लादेश.. भूटान.. म्यांमार और ईराक तक सम्राट अशोक का साम्राज्य होने के कारण उन्हें चक्रवर्ती सम्राट अशोक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त हुई।

जो योद्धा किसी भी युद्ध से भयभीत नहीं होता था.. उस पराक्रमी चक्रवर्ती शासक अशोक के जीवन के एक युद्ध ने जीवन के प्रति उसके दृष्टिकोण को परिवर्तित कर दिया।

साम्राज्य विस्तार के लिए किया गया ओडिशा में कलिंग का वो युद्ध.. सम्राट अशोक के जीवन की वो महत्वपूर्ण घटना है जिसने अशोक के ह्रदय में प्रेम एवं करुणा का बीज रोपित किया। कलिंग युद्ध के भीषण नरसंहार और हानि से द्रवित होकर.. सम्राट अशोक ने आजीवन युद्ध ने करने का प्रण ले लिया और शांति.. सामाजिक एवं धार्मिक प्रचार प्रसार आरम्भ किया।

सम्राट अशोक सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने वाले.. धार्मिक सहिष्णु शासक थे.. जिनकी राज्य सभा में सभी धर्मों के विद्वान् भाग लेते थे। उन्होंने मानवता को प्रेम.. करुणा एवं शांति के मार्ग को अपनाने की प्रेरणा प्रदान की।

महात्मा बुद्ध द्वारा प्रदान की गयी शिक्षा से अत्यधिक प्रभावित सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का अनुयायी बनकर.. अन्य देशों में भी इन उपदेशों का प्रचार प्रसार किया।  मान्यता है कि सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में.. उपगुप्त नामक बौद्ध भिक्षु ने दीक्षित किया था। सम्राट अशोक ने अपने शासनकाल के दसवें वर्ष में सर्वप्रथम बोधगया की यात्रा की थी और बीसवें वर्ष में लुम्बिनी की यात्रा की थी तथा लुम्बिनी ग्राम को करमुक्‍त घोषित कर दिया था।

भारत के महान शासक सम्राट अशोक मौर्य ने अपने जीवन में कई शिलालेखों का निर्माण कराया था जिन्हें इतिहास में सम्राट अशोक के शिलालेखों के नाम से जाना जाता है। मौर्य वंश की सम्पूर्ण जानकारी उनके द्वारा स्थापित इन्हीं शिलालेखों से प्राप्त होती है। धम्म प्रचार के संदर्भ में अशोक के शिलालेखों में कुछ ऐसे विवरण भी प्राप्त होते हैं.. जिनमें उनके एवं विदेशी पारस्परिक सम्बन्धों का आभास दृष्टव्य है। ये सम्बन्ध कूटनीति एवं भौगोलिक सान्निध्य के हितों पर आधारित थे। 

ऐसा कहा जाता है कि सम्राट अशोक ने अपना अंतिम समय मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र में ही व्यतीत किया और 232  ईसापूर्व में उनका देहावसान हुआ।

सम्राट अशोक के विशाल साम्राज्य में राष्ट्रीय एकता एवं आर्थिक संयोजन और धार्मिक सहिष्णुता का अद्भुत समन्वय स्थापित हुआ। चक्रवर्ती सम्राट अशोक की महान अशोक तक की यात्रा.. सदैव ही मानवता को जीवनमूल्यों का पाठ सिखाती रहेगी। अशोक स्तम्भ के नाम से प्रसिद्ध चिन्ह.. सम्राट अशोक के राष्ट्र प्रेम के कारण.. भारत के राष्ट्रिय चिन्ह के रूप में भारतीय ध्वज में सुशोभित है। 

इतिहास सदैव ही.. महान अशोक का.. सम्राट.. योद्धा.. इतिहासकार ही नहीं.. मानवता के प्रवर्तक के रूप में स्मरण करता रहेगा। Bharat Mata परिवार की ओर से महान सम्राट अशोक को शत-शत नमन।

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