छत्रपति शिवाजी महाराज: | प्रेरणा और पराक्रम का प्रतीक | Bharat Mata

स्वतंत्रता संग्राम के अमर नायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के ये शब्द, जिनसे भारतीय जनमानस को स्वतंत्र भारत के लक्ष्य को अर्जित करने का साहस एवं आत्मबल प्राप्त हुआ, पराक्रम के पर्याय तथा राष्ट्रप्रेम के ज्वलंत प्रतीक – छत्रपति शिवाजी महाराज के सम्मान में उद्बोधित थे।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में एक ऐसी अद्भुत शौर्य से परिपूर्ण प्रेरणा का जन्म हुआ जिनकी अनुपम जीवनगाथा शताब्दियों से मानवता को प्रेरणा देती आ रही है। पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई के संरक्षण में बालक शिवाजी का निर्माण एक बुद्धिमान, पराक्रमी, कुशल राजनीतिज्ञ एवं शक्तिशाली शासक के रूप में हुआ।

शिक्षा और प्रारंभिक सैन्य कौशल | दादोजी कोंडदेव से शिक्षा

पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई के पालन-पोषण में बाल्यकाल से ही बालक शिवाजी राजे का निर्माण एक बुद्धिमान पराक्रमी, कुशल राजनीतिज्ञ एवं शक्तिशाली शासक में हो रहा था। मराठा परिवार का ये कुलदीपक शिवाजी राजे केवल मराठा गौरव ही नहीं, अपितु भविष्य में हिन्दू ह्रदय सम्राट तथा भारतीय गणराज्य के महानायक के रूप में सुशोभित होने वाला था।

शिवाजी के गुरु दादोजी कोंडदेव ने उनकी शिक्षा के अतिरिक्त युद्ध कौशल तथा युद्ध नीति में भी उन्हें प्रशिक्षण प्रदान किया, जो कालांतर में शिवाजी के हर युद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। बाल्यकाल में ही, निर्भीकता एवं उत्तम नेतृत्व क्षमता के प्रतीक शिवाजी ने शिवनेरी दुर्ग के निकट सहयाद्री पर्वत, दक्कन क्षेत्र के दुर्ग, घाटी, नदी को भली-भांति जान लिया था और ये ज्ञान उनके सैन्य अभियानों में अत्यधिक सहायक सिद्ध होने लगा। उन्होंने छापामार युद्ध के रूप में एक ऐसी युद्ध कला विकसित की, जो रणक्षेत्र में वीरता एवं चतुराई का मिश्रण थी। 

शिवाजी का सर्वप्रथम युद्ध एवं सैन्य कौशल का प्रदर्शन सन 1645 में हुआ, जब उन्होंने किशोरावस्था में ही बीजापुर के अधीन तोरण दुर्ग पर सफलतापूर्वक विजय प्राप्त कर ली। इसके पश्चात् उन्होंने बीजापुर के कई दुर्गों कोंडाना, चाकन, सिंहगढ़ तथा पुरंदर आदि पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। 1655 तक शिवाजी ने कोंकण, कल्याण तथा जावली के दुर्ग पर भी अधिकार अर्जित कर लिया। शिवाजी के युद्ध कौशल एवं सैन्य गतिविधियों से त्रस्त होकर, बीजापुर के सुल्तान ने निर्दयी एवं क्रूर सेनापति अफ़ज़ल ख़ान को शिवाजी को युद्ध में पराजित करने का आदेश दिया।

षड़यंत्र से शिवाजी का वध करने के लिए अफ़ज़ल ख़ान ने संधि का नाटक किया। शिवाजी इस संधि प्रस्ताव को लेकर सावधान थे, तभी वो इस भेंट में कवच पहनकर धातु के बाघ नख को साथ छुपाकर पहुंचे। 10 नवंबर 1659 को हुई इस छद्म संधि भेंट में जब अफ़ज़ल ख़ान ने शिवाजी पर खंजर से वार किया, तो कवच के कारण शिवाजी को कुछ नहीं हुआ और शिवाजी ने पलटवार करते हुए अफ़ज़ल ख़ान पर बाघ के नख से वार किया, जिससे वो गंभीर रूप से घायल हो गया।

अफजल खान से संघर्ष

अफ़ज़ल ख़ान को पराजित करने के पश्चात, शिवाजी ने रुस्तम ज़मान और सिद्दी जोहर को भी युद्ध में पराजित किया। शिवाजी की शक्ति से चिंतित होकर, मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने अपने मामा शाइस्ता ख़ान को एक लाख पचास हज़ार सैनिकों के साथ शिवाजी से युद्ध करने के लिए भेज दिया, किन्तु शिवाजी ने छापामार युद्ध रणनीति के द्वारा शाइस्ता ख़ान को युद्ध में पराजित कर दिया।

इसके पश्चात शाइस्ता ख़ान ने अपनी पराजय का प्रतिशोध लेने के लिए शिवाजी पर अनेक आक्रमण किए, जिससे कोंकण क्षेत्र के दुर्गों पर शिवाजी का आधिपत्य तथा मराठा साम्राज्य की धन-संपदा को अत्यधिक क्षति हुई। इसका प्रतिकार करते हुए, शिवाजी ने एक महत्वपूर्ण मुग़ल व्यापारिक केंद्र सूरत पर आक्रमण किया और मुग़ल संपत्ति पर अधिकार स्थापित कर लिया। इससे क्रुद्ध औरंगज़ेब ने 150000 सैनिकों के साथ अपने प्रमुख सेनापति जय सिंह प्रथम को भेजा। मुग़ल सेना ने शिवाजी के नियंत्रण के दुर्गों की घेराबंदी की और आक्रमण करके सैनिकों का वध किया। शिवाजी सैनिकों के प्राणों की रक्षा के लिए औरंगज़ेब के साथ संधि करने के लिए सहमत हुए और 11 जून 1665 को शिवाजी और जय सिंह ने पुरंदर की संधि पर हस्ताक्षर किए। औरंगज़ेब ने शिवाजी के सैन्य कौशल का उपयोग करके अफ़ग़ानिस्तान में मुग़ल साम्राज्य की शक्ति में वृद्धि करने के उद्देश्य से उन्हें आगरा में आमंत्रित किया। शिवाजी ने अपने आठ साल के पुत्र संभाजी के साथ आगरा की यात्रा की किन्तु औरंगज़ेब द्वारा उचित सम्मान न प्राप्त करने पर शिवाजी ने भरे हुए दरबार में औरंगज़ेब को 'विश्वासघाती' कहा, जिसके परिणामस्वरूप औरंगज़ेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र को 'जयपुर भवन' में नज़रबंद कर दिया। किन्तु शिवाजी अपनी बुद्धि और चतुराई के बल पर, अपने पुत्र के साथ वहां से निकलने में सफल हो गए।

इसके पश्चात, शिवाजी ने मुग़लों पर आक्रमण कर दिया और मुग़लों द्वारा घेर लिए गए अपने अधिकांश क्षेत्रों को पुनः प्राप्त कर लिया।

राज्याभिषेक और मराठा साम्राज्य

6 जून 1674 को रायगढ़ में एक विस्तृत राज्याभिषेक समारोह में वीर शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ। उन्हें छत्रपति अर्थात सर्वोपरि संप्रभु, शककार्ता अर्थात एक युग के संस्थापक, क्षत्रिय कुलवंत अर्थात क्षत्रियों के प्रमुख और हिंदव धर्मोधारक अर्थात हिंदू धर्म की पवित्रता का उत्थान करने वाले की उपाधियों से विभूषित किया गया। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य 18वीं शताब्दी के भारत की प्रमुख शक्ति के रूप में प्रतिष्ठापित हो चुका था।

शिवाजी संस्कृत भाषा का अत्यंत सम्मान करते थे तथा इस भाषा का प्रचार-प्रसार करने हेतु, उन्होंने अपने दुर्गों के नाम संस्कृत में रखे थे जैसे कि- सिंधुदुर्ग, प्रचंडगढ़ तथा सुवर्णदुर्ग। स्वतंत्र हिन्दू शासक शिवाजी ने अपने नाम का सिक्का भी संस्कृत भाषा में – शिवराई रखा था। शिवाजी शूरवीर योद्धा तथा हिन्दू धर्म के अनुयायी अवश्य थे, किन्तु उनके ह्रदय में दया तथा सभी धर्मों, जातियों एवं महिलाओं के लिए सम्मान विद्यमान था। शिवाजी ने सदैव सत्य एवं न्याय का अनुसरण किया तथा शोषितों एवं पीड़ितों की रक्षा की। उनका संघर्ष जातिभेद तथा मुग़ल शासकों के अन्याय तथा अत्याचार के विरुद्ध था।

शिवाजी का अंतिम समय

बहुमुखी प्रतिभा के धनी छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीयता के जीवंत प्रतीक एवं परिचायक के रूप में सदैव प्रतिष्ठित रहेंगे। 3 अप्रैल 1680 को दुर्भाग्य का वो क्षण आया, जब रायगढ़ में भारतीयता के आदर्शपुरुष छत्रपति शिवाजी ने सदा के लिए इस संसार को त्याग दिया।

स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लुइ माउन्टबैटन ने छत्रपति शिवाजी की यशगाथा की महिमा करते हुए कहा था – HAD SHIVAJI BEEN BORN IN ENGLAND, WE WOULD NOT ONLY HAVE RULED EARTH, BUT THE WHOLE UNIVERSE.

भारत भूमि के इस अमर सपूत छत्रपति शिवाजी महाराज को भारत समन्वय परिवार की ओर से शत-शत नमन।

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