ब्रम्हवादिनी गार्गी - Matra Shakti
देवी गार्गी का नाम वैदिक नारियों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। वह बाल ब्रह्मचारिणी हैं, संसार के सुखों को स्पर्श भी नहीं किया, रात-दिन ब्रह्मचिंतन में ही डूबी रहती, वे शास्त्र पढ़ते-पढ़ते इतनी तल्लीन हो जाती कि शरीर सुधि नहीं रहती। यह बाल ब्रह्मचारिणी वाचक्नवी गार्गी और ब्रह्मवादिनी गार्गी के नाम से विद्वानों में प्रसिद्ध हुई। पिता का नाम वचक्न होने से वाचक्नवी तथा गर्ग गोत्र में उत्पन्न होने के कारण गार्गी कहलाई। एक बार राजा जनक ने श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठओं, संतों महात्माओं और विद्वानों की सभा आमंत्रित की और घोषणा की कि जो सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मनिष्ठ होगा उसे एक हजार गाय जिनके सींग स्वर्णमंडित होंगे दान में दी जाएगी। दूर-दूर से विद्वान आए गार्गी भी पहुंची परंतु यशवरधान में मग्न रहे सभा प्रारंभ कि सभी विद्वान एक दूसरे के मुंह की ओर ताकते रहे।
किसी ने कुछ नहीं पूछा तब याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य सोम श्रद्वा से संपूर्ण गायों को हांक ले जाने को कहा। उपस्थित विद्वान तिलमिला उठे कि क्या आप अपने को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं याज्ञवल्क्य ने सभी को नमस्कार करते हुए ब्रम्हनिष्ठ शब्द से संबोधित किया और कहा ‘मेरे आश्रम में पढ़ने वाले छात्रों को दूध की आवश्यकता है इसलिए दाएं हाँकने को कहा है’। विद्वानों ने उनसे प्रश्नों की बौछार की याज्ञवल्क्य जी ने सभी को शांति से उत्तर दिया जब सभी विद्वान थक गए तो गार्गी का ध्यान उदित हुआ और उन्होंने कहा ब्राह्मणों में दो प्रश्न पूछूंगी यदि इनका उत्तर सटीक मिल गया तो याज्ञवल्क को संसार में कोई नहीं जीत सकता। देवी गार्गी ने प्रश्न किया हे महर्षि इस पृथ्वी लोक और दूसरे सारे लोगों के बीच में कि क्या क्या है? क्या हो चुका है? और क्या होने वाला है? याज्ञवल्क्यजी ने उत्तर दिया आकाश ही में सब है आकाश ही में यह सब विश्व है यह गोल है इसे खगोल भी कहा जाता है। देवी गार्गी संतुष्ट हुई तब दूसरा प्रश्न किया आकाश किस में रखा हुआ है?
महर्षि बोले हे गार्गी यह जो अविनाशी व्यापक ब्रह्म है, आकाश और सब पदार्थ उसमें रखे हुए है वहीं सारे संसार का आधार है सहारा है। वह पतला न मोटा न लंबा न छोटा न बड़ा है वह कुछ नहीं खाता और न भोगता है वहीं सारे विश्व का अकेला राज्य है वहीं सबको दंड देता है रुलाता है वहीं सबका रक्षक पालक इस उत्तर से देवी गार्गी बहुत प्रसन्न हुई और विद्वानों से कहा कि सभी महर्षि को प्रणाम करो अब इन्हें जीतने वाला कोई नहीं है कहकर देवी गार्गी चुप हो गई। ऐसी विदुषी और
ब्रह्मावादिनी माताओं पर भारत और भारत की संस्कृति को गर्व है। चरणों में नतमस्तक हो जाता है।
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