सती जयदेवी | History of Sati Jai Devi | Bharat Mata

सती जयदेवी सीतापुर का इतिहास सत्य की महिमा से मंडित है। नैमिषारण्य क्षेत्र की धरती अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के लिए गौरवान्वित रही है। वैसे हिंदू नारी ने इस वसुधा को सदा सदस्य ही महिमामंडित किया है। इस दृष्टि से भारत का स्थान विश्व में सर्वोच्च उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में महोली नाम का 1 ग्राम है। यह पूर्वी रेलवे का स्टेशन भी है। यहां वर्तमान में शक्कर कारखाना है तथा संपत्ति है। स्वर्गीय श्री राम चरण लाल गुप्ता के पुत्र श्री सरयू प्रसाद गुप्त की। कन्या के रूप में फागुन कृष्ण पक्ष तेरे भी संवत 1988 सन 1932 में जय देवी ने जन्म लेकर कुल को पावन किया। माता श्रीमती रामदेवी स्वभाव से सात व्यक्ति पिता श्री सरयू प्रसाद जी जूनियर हाई स्कूल महोली के प्रधान। पत्ते बचपन से ही जय देवी भजन साधना रामचरितमानस पाठ में रुचि रखती थी। बचपन बड़ी बहन सुंदरी देवी छोटे भाई भगवती प्रसाद श्री संकटा प्रसाद एवं श्री प्रेम शंकर गुप्त के साथ हंसी खुशी से व्यतीत हुआ। सती जयदेवी का विवाह 13 वर्ष की आयु में जमकर e89 से द्वारिका प्रसाद एवं श्रीमती कामिनी देवी गुप्त के चिरंजीव श्री राधे श्याम गुप्त के साथ बड़ी। धूमधाम से वैशाख कृष्ण 3 संवत 2009 तदनुसार अप्रैल 1944 को संपन्न हुआ। विवाह पर जय देवी पतिव्रत धर्म का अनुसरण करते हुए पति परिवार की सेवा में समय देने लगी। 15 वर्ष की आयु में पुत्र रत्न हुआ जो आठवां जीवित रहकर इस दुनिया से चला गया। सतीश जाए देवी का मन शांत था। दुनिया के झंझट ओं का उनके ऊपर कोई प्रभाव नहीं दिखाई देता था। एक बार श्रीमती जयदेवी अपने पिता के घर।होली गई थी। वहीं उन्हें सूचना मिली कि पति राधेश्याम ज्वर से पीड़ित हो गए हैं। वह तत्काल चम घड़ी आई और दिन-रात पति सेवा में रहने लगी। भोजन आदि का परित्याग करके पति सेवा को ही एकमात्र धर्म समझा। औषधि 11 की रात्रि को जागरण कर गीता पाठ किया। दूसरे दिन पति राधेश्याम का कड़ा विरोध हुआ और उन्होंने पत्नी से कहा, आज हमारा तुम्हारा साथ छूटा है। परंतु जय देवी ने हंसकर कहा कि व्यक्ति बातें क्यों करते हो। हमारा तुम्हारा साथ कभी नहीं टूटेगा। श्रीमती जयदेवी के पिता श्री सरयू प्रसाद जी भी वहां उपस्थित है। राधेश्याम के पिता श्री द्वारिका प्रसाद अपनी ससुराल गए थे। वहां उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। सरयू प्रसाद ने बहुत दौड़-धूप कर चिकित्सकों से उपचार कराया। परंतु राधेश्याम को नहीं बचा सके। 16 दिसंबर 1949 पौष बदी।बाबा रे शुक्रवार को 4:00 बजे राधेश्याम की श्वास अनंत में विलीन हो गई। सती जयदेवी ने धैर्य नहीं खोया और कहा कि कोई भी व्यक्ति मेरे पति को बिना स्नान किए स्पर्श ना करें और ना ही घर में प्रवेश करें। सभी कोरोनावायरस कर दिया। अपने श्वसुर द्वारिका प्रसाद से कहा कि आप सीतापुर महोली पुलिस को सूचना कर दीजिए, जिससे पीछे कोई परेशान ना करें। मैं पति के साथ सती होंगी। थोड़े समय में ही यह समाचार आपकी तरह फैल गया। सती जयदेवी की आयु इस समय 19 वर्ष की थी। पति राधेश्याम की आयु 22 वर्ष की थी। सती जयदेवी स्नानादि से निवृत्त होकर रात्रि भर श्री रामचरितमानस का पाठ करते रहे। सती अनुसुइया का चरित्र पड़ती रही। दूसरे दिन 17 दिसंबर को मध्याह्न काल तक कीर्तन आदेश चलता रहा। इतने में एक वृद्ध पंडित ने एकाएक कहा कि सती की परीक्षा होनी चाहिए। हम कैसे मान लें कि सती है? उपस्थित लाला जय नारायण ने कहा की परीक्षा तो होनी चाहिए। फिर निर्णय हुआ की यदि सती देवी अपनी हथेली पर काजल पार दे और जलने का निशान ना हो तो सही है। सती ने घी का दीपक मँगवाया और हथेली पर काजल पार दिया। जलने का निशान नहीं हुआ और सभी चकित होगए। सती ने शृंगार किया। पति की सात परदक्षिणा दी और पति की अर्थी उठाने का आदेश दिया। उन्होंने अर्थी का अनुगमन किया। अपार भीड़ जय जय कार करते हुए चल रही थी। सती की झोली मे मेवा, बताशे आदि थे। वे दोनों ओर चलती भीड़ मे फेकती जा रही थी। लोग हाथ ऊंचा कर के प्रसाद समझकर ले रहे थे। शमशान मे अर्थी सजाई गई, सती अर्थी पर बैठी, अपने पति का सर गोद मे रखा और राम नाम का जाप करने लगी। फिर सती अपने पति के साथ अग्निमय हो गई।  

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