लक्ष्मण के मूर्च्छित होने पर क्यों हँसी उर्मिला ? | Urmila Ka Rahasya। Ramayan Katha

राम कथा, प्रभु श्री राम और उनके परम पूज्य परिवार के संघर्षों, आदर्शों, त्याग, और मर्यादा की स्तुति है। प्रभु श्री राम की कथा ऐसे चरित्रों को भी समाहित करती है जो आने वाले युगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। यह वास्तव मे मानवता के पथ पर कुछ और पदचिन्ह है जो सदा के लिए मर्यादा का पथ आलोकित करते रहेंगे। भरत और लक्ष्मण का भ्रातृ प्रेम, हनुमान जी की परम भक्ति, सुग्रीव की मित्रता, जांबवंत का मार्गदर्शन, और भी अनेक पात्र हमारे लिए जीवन के आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
राम कथा और धर्म का महत्व

इस अनंत कथा मे शायद कवि की विवशता रही होगी जिसके कारण ऐसा प्रतीत होता है की कुछ पात्र ऐसे भी है जिनका त्याग और कर्तव्य निष्ठा इस काव्य खण्ड के अभिलेखों मे वह स्थान प्राप्त नहीं कर सका जिसका की वह अधिकारी था।

माता उर्मिला: त्याग और कर्तव्य की प्रतिमूर्ति

अज्ञात मातृशक्ति का योगदान

इसी क्रम मे एक नाम है माता उर्मिला का। उर्मिला, जनकपुर के राजा जनक की दूसरी बेटी थी , उनकी माता रानी सुनैना थीं। माता सीता उनकी बड़ी बहन थी और श्री राम के अनुज लक्ष्मण की वह धर्म पत्नी थी। उर्मिला को नाग लक्ष्मी या क्षीरसागर का अंशावतार माना जाता है। मातृशक्ति और रामायण 

परंतु उनका योगदान सीता तुल्य ही है और वह पतिव्रत धर्म के प्रतीक स्वरूप मे पूजित और सम्मानित हैं।

तु कथा का हिस्सा नहीं,

चर्चित तेरा किस्सा नहीं,

पर चित्र तेरा योगिनी, तप का नया अभ्यास है।

यह कठिन अध्याय है,

तू सती का पर्याय है।

स्वयं माता जानकी के शब्दों मे भी, उन्होंने उर्मिला के त्याग को अपने वनवास के कष्टों से कहीं ऊपर रखा है।

वनवास माता जनकी का,

जब युगों ने गुनगुनाया,

माँ जानकी के नेत्र मे तब,

सहज अंतर उमड़ आया,

उर्मिला को देखते,

कहा यूं ही सोचते,

कठिन मेरा वन नहीं, अनुजा तेरा वनवास है।

उर्मिला का त्याग: पतिव्रता धर्म का आदर्श

वनवास के समय उर्मिला का निर्णय

श्री राम को पितृ द्वारा वनवास की आज्ञा के पश्चात, लक्ष्मण जी ने भी वन जाने का निश्चय किया और माता सुमित्रा से आज्ञा लेने के बाद उर्मिला के कक्ष कि ओर जाते हैं। मन ही मन विचार करते हैं की यदि बताया नहीं तो रो रो कर प्राण त्याग देगी, और यदि बताया तो वन मे साथ चलने का आग्रह करेगी। इसी मानसिक द्वन्द्व मे उनका सामना उर्मिला से होता है। उर्मिला आरती की थाल सजा कर खड़ी थी। स्वामी आप मेरी चिंता छोड़ कर प्रभु श्री राम की सेवा मे वन जाओ, ना तो मै आपको रोकूँगी और ना ही साथ चलने को कहूँगी। मै आपकी सेवा व्रत की बाधा नहीं बनना चाहती। लक्ष्मण जी तो संकोच वक्ष कुछ कह ही नहीं पा रहे थे। परंतु उर्मिला ने अपने विनम्र वचनों से संकोच से बाहर निकाल दिया। पत्नी की कर्तव्य निष्ठा भी शायद ऐसे ही परिभाषित होती है।

उर्मिला ने अपने तप और त्याग से 14 वर्षों तक प्रतीक्षा की। यह त्याग पतिव्रता धर्म का अद्भुत उदाहरण है।
धर्म और तपस्विनी का बलिदान

माँ प्रश्न जो पूछा नहीं,

निज प्राण से तुमने कभी,

वो प्रश्न अंतर मे लिए,

युग कभी सोया नहीं।

मन सिंधु का संयम तेरे,

सौमित्र का वनवास है।

उर्मिला का अद्वितीय विश्वास

राम रावण युद्ध में उर्मिला का योगदान

राम रावण युद्ध मे जब लक्ष्मण जी ने मेघनाद का वध कर दिया था तो अपने पति का शीश लेने उसकी पत्नी सुलोचना श्री राम के पास आई।

पति का छिन्न शीश देखते ही, सुलोचना का हृदय द्रवित होगया, उसकी आँखें बरसने लगीं, रोते रोते उसने पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखा और कहा,

“सुमित्रा नंदन, तुम भूल कर भी गर्व मत करना की मेघनाद का वध तुमने किया है। मेघनाद को धराशाही करने की शक्ति विश्व मे किसी के पास नहीं थी। आपकी इस विजय मे वास्तव मे आपकी पतिव्रता पत्नी उर्मिला की ही शक्ति है। इसे तो उर्मिला के तप ने और उसके अखंड पतिव्रत धर्म ने मारा है।”

युद्ध मे जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगती है और हनुमान जी संजीवनी पर्वत लेकर लौट रहे होते हैं तब भरत अपने बाणों से उन्हे शत्रु होने के आभास से अयोध्या मे उतरने को विवश करते हैं।

नीचे आकर हनुमंत ने सीता हरण और लक्ष्मण मूर्छा की सूचना दी उस समय सुमित्रा, कौशल्या, भरत आदि सभी अत्यंत विचलित होगए परंतु माता उर्मिला अति प्रसन्न थी।

उर्मिला की प्रसन्नता देखकर हनुमान जी को बहुत अचरज हुआ और उन्होंने उर्मिला से कहा की आपके पति का जीवन संकट मे है, यदि प्रातः की प्रथम किरण से पहले संजीवनी आपके पति को ना मिली तो रघुकुल का दीपक संकट मे आजाएगा। फिर भी माता आप इतनी प्रसन्न किस प्रकार से हैं।

उर्मिला ने उत्तर दिया की  आपके अनुसार मेरे पति प्रभु श्री राम की गोद मे हैं, योगेश्वर की शरण मे यम तो क्या महाकाल भी मेरे पति का कुछ नहीं बिगाड़ सकता और जहां तक सूर्य के उदय होने की बात है, तो आप चाहें तो अयोध्या मे ही कुछ दिन विश्राम करने के बाद जाएँ तब तक मैं सूर्य उदित ही नहीं होने दूँगी। यह है पतिव्रत की शक्ति और माता उर्मिला का अपने तप पर विश्वास ।

महलों के पृष्ठों पर तेरे,

बस नाम अंकित रह गए,

तेरा विरह तुझ तक रहा,

अश्रु अञ्चल तक बहा,

रघुवर कथा के खंड मे,

तो अनकहा वनवास है।

राम राज्य और जनक की बेटियाँ

राम राज्य की नीव मे जनक की बेटियाँ चुनी गईं। राम राज्य का आधार जनक की बेटियाँ ही हैं। कभी उर्मिला कभी सीता । प्रभु श्री राम ने राम राज्य का कलश स्थापित किया है, राम राज्य यूं ही नहीं आया इन माताओं के त्याग और बलिदान से आया है।

जानिए ऐसी अज्ञात मातृ शक्तियों की कथाएं

माता उर्मिला जैसी महान पतिव्रता और त्याग की प्रतिमूर्तियों की कहानियां हमारी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। इन प्रेरणादायक कथाओं को विस्तार से जानने के लिए जुड़े रहें भारत माता चैनल के साथ।
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