कैकई जैसी मां ही नहीं हुई, कैकई निंदनीय नहीं वंदनीय है - Bharat Mata

युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी, रघुकुल" में भी थी एक अभागिन रानी ||

निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा, धिक्कार "उसे था महा स्वार्थ ने घेरा ||

 क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी, मेरा मन ही रह सका न निज विश्वासी ||

जल पंजर-गत अब अरे अधीर अभागे, ये ज्वलित भाव थे स्वयं मुझी में जागे ||

Kaikai's Untold Story | kaikeyi ka anutap | कैकई का सत्य 

अविरल गति से बहती और जन जन के मानस में अंकित राम कथा की सबसे मूल पात्र माता कैकेयी का जब भी नाम आता है ,उन्हें नकारात्मक और निष्ठुरता से ही याद किया जाता है |  इस चरित्र ने सदा से निंदा और आलोचना ही सही है| 

उनके जीवन के सकारात्मक पक्ष को प्रायः विस्तृत किया जाता रहा है| यदि संक्षेप में अतीत के पृष्ठो को देखे तो सर्वविदित कथा के अनुसार देवी सरस्वती द्वारा उनकी मति को भ्रमित किया गया था| जो एक प्रकार से विधि का विधान था|

महाराजाधिराज अश्वपति की पुत्री और महान ऋषि दुर्वासा द्वारा  शिक्षा प्राप्त तथा राजपुरोहित रत्नऋषि के संरक्षण में युद्ध कौशल में निपुण माता कैकेयी का दासी मंथरा के द्वारा भ्रमित हो जाना भी तर्कसंगत नहीं है|

मां कैकेयी जैसा प्रेम राम से किसी ने नहीं किया | The truth of Kaikeyi

सच तो यह है की बालक राम को माता कौशल्या से भी कही अधिक स्नेह माता कैकेयी का प्राप्त था| माँ कैकेयी को अपने पुत्र भरत से भी अधिक राम प्रिय थे| उनका प्रयास था की राम ( Shri Ram Janam katha )केवल कौशल नरेश न बनकर जन जन द्वारा युगो युगो तक पूजित रहे, विश्व उन्हें मानवता के उद्धारक और दानवता के संहारक के रूप में स्वीकारे और उनके वास्तविक स्वरुप जगत नियन्ता को पहचाने|

वह राम को एक ऐसा परम पद देना चाहती थी जहां उनकी प्रतिष्ठा शुभ आचरणों के उद्गम और श्रोत के रूप में हो| उन्होंने वेदना और उपेक्षा सहकर भी केवल परमार्थ के लिए कठोर निर्णय लिया और किसी भी नारी के लिए वैधव्य जैसे कठोरतम निर्णय को सहजता से स्वीकार किया|

माता कैकेयी - The Untold Story of Ramayana | Kaikeyi Demands Shree Ram's Exile 

यह सत्य है कि वह राजभवन से राम के निर्वासन का कारण बनी परन्तु उन्होंने जन मानस के ह्रदय में युगो युगो तक मर्यादा पुरषोत्तम के रूप में सुवास भी दिया| देवत्व लोकहित और  एक प्रकार से देवत्व की रक्षा के लिए उनका यह निर्णय वंदनीय माना जा सकता है| भगवन श्री राम, जो की त्रिलोक स्वामी श्री हरी विष्णु का अवतार थे , इस धरती पर अयोध्या पर राज करने के लिए अवतरित नहीं हुए थे| प्रायः यह समझा जाता है की उनके आने का उद्देश्य रावण वध था, परन्तु रावण का वध एक इतना छोटा काम था जिसे महावीर हनुमंत भी कर सकते थे, जामवंत भी इसके सक्षम थे, किन्तु दण्डकवन को श्राप से मुक्ति और शबरी की लम्बी प्रतीक्षा का सुफल तो केवल श्री राम द्वारा ही संभव था|

मर्यादा पुरषोत्तम ने अपनी अनन्त मर्यादा के क्षेत्र में कभी निर्जीव पदार्थो तक को वंचित नहीं रखा| उन्होंने उपेक्षित पाषाणों को भी कभी पीछे छूटने नहीं दिया, उनको भी स्नेह दिया और राम-काज में उनका भी प्रयोग किया| सागर को भी अपनी मधुर विनम्रता से रूठने नहीं दिया| प्रतिफल में सागर ने भी आस्था को तोड़ा नहीं और पाषाणों ने भी "राम-नाम " को डूबने नहीं दिया|

मानव जाति के लिए मानवता के मापदंड स्थापित करने के उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने के लिए राम का वनवास आवश्यक था| इस प्रकार मात्र शक्ति कैकेयी की कामना से ही जग को राम मिल सके| वनवास से लौटकर स्वयं मर्यादा पुरषोत्तम ने उन्हें प्रथम पूज्य माता के रूप में सम्मानित किया|

त्रेता के युगनायक भगवान राम ने अपने जीवन में जिस प्रकार से मनुष्यता के ऋण उतारे और जीवन मूल्यों की स्थापना की वह आने वाले युगो युगो तक मानव आदर्श के रूप में स्वीकारे गए | पिता के वचनो का पालन, राजसुख का परित्याग, पारिवारिक मर्यादाओ की स्थापना, आसुरी शक्तियों का दमन और अंत में रामराज की परिकल्पना को मूर्त रूप देना आज भी प्रासंगिक और अनुकरणीय है, परन्तु इस प्रेरणा की अन्तर्शक्ति का श्रेय माता कैकेयी को ही जाता है|

 कैकई निंदनीय नहीं वंदनीय है | कैकई की कहानी | kaikeyi ka anutap

जीवन भर उपेक्षा और निंदा सहकर भी और अपना सुयश त्याग कर उन्होंने मानवता को अनुपम भेट और कीर्ति के नए मापदंड दिए| युद्ध भूमि में रथ चक्र को थाम कर, महाराज दशरथ के जीवन की रक्षा करने वाली वीरांगना ने अपने अपराधिक जीवन को सहजता से स्वीकार कर लिया| मर्यादा और त्याग का ऐसा उदहारण अन्यत्र दुर्लभ है|

                 होने पर बहुधा अर्ध रात्रि अँधेरी 

                 जीजी आकर करती पुकार थी मेरी 

                 लो कुहकिनी, अपना कुहक राम यह जागा 

                 निज मंझली माँ का स्वप्न देख उठ भागा|

राम का अपनी मंझली माँ कैकेयी के प्रति यह गहन अनुराग ,उनके राम-स्नेह को दर्शाता है और इस वात्सल्य का त्याग उनकी कर्तव्य निष्ठा का परिचायक है| 

कैकेयी की राम कहानी

राघव से मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम तक की यात्रा और इस यात्रा को शाश्वत बनाने का श्रेय मात्र शक्ति कैकेयी को ही जाता है| धन्य है वह माँ जिसने अपने स्नेह और वात्सल्य का बलिदान कर मानवता को नया इतिहास दिया | भारत समन्वय परिवार की ओर से इस त्यागमयी वात्सल्य मूर्ति माता कैकेयी को शत शत नमन| 
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