Gandhari | महाभारत की अनकही कहानी: गांधारी का बलिदान और श्राप | गांधारी का रहस्य | Bharat Mata
महाभारत के महासंग्राम के मध्य एक नाम गूंजता है, जो न केवल मातृत्व के आदर्श की प्रतीक है, बल्कि स्त्री की अपार शक्ति और समर्पण की कहानी भी प्रस्तुत करता है। वह नाम है—गांधारी। जब हम महाभारत के युद्ध, कौरवों और पांडवों की प्रतिशोधपूर्ण लड़ाई की चर्चा करते हैं, तो गांधारी का नाम उस गाथा से जुड़ा हुआ है, जो त्याग, बलिदान, दुख और संघर्ष के बीच एक स्त्री की साहसिकता और कर्तव्य परायणता की मिसाल बन जाती है।
गांधारी का जन्म और विवाह
गांधारी का जन्म गंधार राज्य के राजा सुबल की बेटी के रूप में हुआ था। वे रूप और गुण की एक अद्वितीय मूरत थीं, और उनके रूप पर अनेक राजकुमार मोहित थे। किंतु उनका विवाह सामान्य नहीं था। यह विवाह केवल उनके जीवन का मोड़ नहीं था, बल्कि यह एक ऐतिहासिक घटना बन गया, जो आने वाले समय की धारा को बदलने वाली थी। राजा सुबल ने अपनी बेटी की शादी हस्तिनापुर के अंधे राजा धृतराष्ट्र से कर दी थी, और यह निर्णय न केवल राजनीति का हिस्सा था, बल्कि परिवार और राज्य की समृद्धि के लिए एक मजबूरी बन गया था। गांधारी का मन इस विवाह से असहमत था, लेकिन उन्होंने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए इसे स्वीकार किया।
धृतराष्ट्र के अंधत्व को महसूस करते हुए, गांधारी ने अपनी आँखों पर भी एक पट्टी बांध ली। यह उनका जीवन का सबसे बड़ा बलिदान था—अपने पति के अंधत्व को अपना खुद का बनाना। गांधारी का यह निर्णय केवल एक पत्नी का कर्तव्य ही नहीं बल्कि उनके चरित्र की अद्वितीय महानता को भी दर्शाता है।
गांधारी का महान बलिदान
गांधारी की यह यात्रा आसान नहीं थी। उनकी गर्भावस्था के दौरान, जो लगभग दो वर्षों तक चली, उन्होंने शारीरिक और मानसिक कष्टों का सामना किया। गर्भवस्था की यह असामान्य अवधि गांधारी के लिए अत्यधिक तकलीफदेह हो गई थी, और इसने उनके भीतर गुस्से और हताशा को जन्म दिया। एक दिन इस पीड़ा से अभिभूत होकर, गांधारी ने अपनी गर्भावस्था के मांसपिंड को ज़ोर से मारा, और इस पर महर्षि वेदव्यास ने उन्हें चेतावनी दी कि यह कार्य सही नहीं होगा। उन्होंने गांधारी को यह भी कहा कि उनका वरदान कभी व्यर्थ नहीं जाएगा और वे इस मांसपिंड को सौ भागों में विभाजित करें। महर्षि की सलाह से, गांधारी ने उस मांसपिंड को सौ हिस्सों में बांटकर उन सभी भागों को घी से भरे घड़ों में रखा, जिससे 100 कौरवों और एक पुत्री दुषाला का जन्म हुआ।
गांधारी की कथा यहीं तक सीमित नहीं है। समस्त संसार जनता है धृतराष्ट्र के जन्मांध होने के कारण ही विवाहोपरांत गांधारी ने आजीवन अपनी आँखों पर पट्टी बांधे रखने की प्रतिज्ञा की थी। लेकिन गांधारी ने अपने पुरे जीवन में इस प्रतिज्ञा को दो बार तोड़ा था। पहली बार जब महाभारत के युद्ध के दौरान, गांधारी ने पुत्र मोह मे दुर्योधन को अजेय बनाने का प्रयास किया। उन्होंने अपनी योगिक शक्तियों का उपयोग करके दुर्योधन के शरीर को वज्र के समान अडिग और अविनाशी बना दिया। इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन से अनुरोध किया कि वह अपनी जंघाओं को ढक लें, ताकि गांधारी की विशेष दृष्टि से बचा जा सके। युद्ध के अंतिम दिन, भीम ने दुर्योधन की जंघाओं पर वार किया और उन्हें तोड़ दिया, जिससे गांधारी की यह योजना असफल हो गई। इसके अलावा दूसरी बार गांधारी ने महाभारत युद्ध के आखिरी दिन ही अपनी पट्टी उतारी थी। जिस समय गांधारी को अपने प्रिय पुत्र दुर्योधन के घायल होने का समाचार प्राप्त हुआ था।
गांधारी का श्राप और गांधार का पतन
उनका जीवन अधिकतर कष्ट, संघर्ष और अंतर्द्वंद्वों से भरा हुआ था। कहते हैं कि जैसे जैसे महाभारत का युद्ध बढ़ता गया था और कौरवों की हार निश्चित हो गई थी, गांधारी का अपने भाई के प्रति गुस्सा चरम पर पहुंच गया था। उन्होंने शकुनि को श्राप दिया कि हस्तिनापुर में नफरत और कलह फैलाने में उसकी भूमिका के भयंकर परिणाम होंगे। न केवल वह युद्ध में मारा जाएगा, बल्कि उसका राज्य, गांधार, हमेशा के लिए संघर्ष और अस्थिरता से ग्रस्त हो जाएगा, शांति और समृद्धि से रहित हो जाएगा।
गांधारी के श्राप के कारण महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र के 18वें दिन सहदेव ने शकुनि का वध किया था और उसके राज्य में अराजकता फैल गई। मान्यताओं के अनुसार, श्राप का प्रभाव आज भी स्पष्ट है, क्योंकि माना जाता है कि गांधार कोई और नहीं बल्कि आज का अफगानिस्तान है।
श्रीकृष्ण को दिया गया गांधारी का श्राप
उनका सबसे गहरा दुख तब आया जब उन्होंने अपने पुत्रों की मृत्यु देखी, और इस दुख के साथ उनके दिल में कृष्ण के प्रति गहरी नाराजगी और आक्रोश भी पनपा। गांधारी ने कृष्ण को शाप दिया कि जैसे उनके कुल का संहार हुआ, वैसे ही कृष्ण के कुल का भी नाश होगा। इस शाप के बाद, महाभारत के घटनाक्रम में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जब कृष्ण के परिवार, यदुकुल का विनाश हुआ।
गांधारी: एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व
गांधारी का जीवन एक शौर्य, त्याग और बलिदान की कथा है। उनका नाम आज भी हमारी संस्कृति में एक प्रेरणा के रूप में जीवित है। एक माँ, पत्नी और स्त्री के रूप में उनका जीवन न केवल उनके परिवार के लिए, बल्कि समस्त समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर बन चुका है।
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