सती अनुसूईया | Sati Anusuya | Bharat Mata

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता हा शास्त्रों में वर्णित इन शब्दों का अर्थ है जहां नारी का सम्मान होता है और उसे पूजनीय समझा जाता है। वहां सुख समृद्धि और देवताओं का वास होता है।

कहा जाता है जो महिलाएं पतिव्रत धर्म का पालन करती है और प्रदीप राणा होती है। वह सद्गति सहज की प्राप्ति करती है जिसकी प्राप्ति ऋषि मुनि साधु संतों को वर्षों की तपस्या के पश्चात होती है। पतिव्रता नारियों के दौरान में चरित्रों से भारतीय इतिहास का पन्ना पन्ना भरा है। पतिव्रत धर्म एक योग साधना है। इसका पालन गांधारी ने धृतराष्ट्र के साथ शेवया ने हरिश्चंद्र के साथ दमयंती में नल के साथ तथा सीता ने राम के साथ कठिन समय आने पर अपने त्याग और ट्रेन द्वारा किया। अरुंधति सत्यवती, सुकन्या, शकुंतला, भारती आदि कितनी ही नारियों के ऐसे दिव्य चरित्र हिंदू पौराणिक कथाओं के रूप में अंकित है जिससे यह प्रतीत होता है कि पति पर आना को इस देश का नारी समाज अत्यंत उच्च भावनाओं के साथ निभाता आया है। पतियों के साथ परलोक में भी रहने की भावना से प्रेरित होकर कई महिलाओं ने अपने पति के मृत शरीरों के साथ जलकर बात का परिचय भी दिया है। पतियों की शान पर रत्ती भर भी आंच ना आने देने और पतिव्रत धर्म की रक्षा के लिए चित्तौड़ की रानियों ने जो अपूर्व बलिदान का परिचय दिया। वह आज भी भारत के गौरवशाली इतिहास के अंश हैं। इसलिए आज कई स्थानों पर साथियों के विशाल मंदिर और स्मारक देखने को मिलते हैं जिससे यह प्रतीत होता है कि इतिहास में भारतीय नारी ने कितने कष्ट सहकर भी अपने पतिव्रत धर्म का पालन भली-भांति किया है भारतवर्ष की महान पतिव्रत धर्म का पालन करने वाली महिलाओं में से एक माता अनुसूया विषय में पांच पतिव्रता देवियों में स्थान मिला है।

हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार माता अनुसूया प्रजापति कदम और भीम होती की नौ कन्याओं में से एक तथा अत्रि मुनि की पत्नी थी। उनकी पति भक्ति अर्थात सतीश का तेज इतना अधिक था कि से आकाश मार्ग से जाते देवों को भी उसके प्रताप का अनुभव होता था। एक दिन जब भारतमुनि माता लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती से भेंट करने पहुंचे तो उन्होंने अत्री महा मुनि की पत्नी अनुसूया के असाधारण पत्री वृक्ष के बारे में माताओं को बताया। तीनों देवियों के मन में अनुसूया के प्रति ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हुई। तीनों देवियों ने अनुसूया के पति वृक्ष को खंडित करने के लिए अपने पतियों से स्वयं अनुसूया की कुटिया में जाने का निवेदन किया। बीवियों के विशेष आग्रह पर तीनों देव, ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने सती अनुसूया के सतीत्व और ब्रह्म शक्ति की परख करने का निर्णय किया।कुछ दिनों बाद तीनों देव ऋषि यों का भेष धारण करके सती अनुसूया के आश्रम पहुंचे और भिक्षा मांगने लगे। उस समय ऋषि अत्रि किसी कार्य वर्ष आश्रम से बाहर गए थे। अतिथि सत्कार की परंपरा के चलते सती अनुसूया ने तीनों देवों का उचित स्वागत करके उन्हें खाने पर निमंत्रित किया, लेकिन ऋषि यों के भेष में आए त्रिदेव ने एक स्वर में कहा कि साध्वी हमारा एक नियम है। हम वस्त्र धारण किए हुए व्यक्ति के हाथों से भोजन ग्रहण नहीं करते था। जब तुम हमें निर्वस्त्र भोजन परोस होगी, तभी हम भोजन ग्रहण करेंगे। सती बड़े धर्म संकट में पड़ गए। बामन में भगवान का स्मरण करते हुए कहने लगी हे भगवान! यदि मैंने अपने पति के समान कभी किसी दूसरे पुरुष को ना देखा हो। यदि मैंने किसी भी देवता को पति के समान ना माना हो। यदि मैं सदा मन, वचन और कर्म से अपने पति की आराधना में लगी रही हूं तो मेरे इस सतीत्व के प्रभाव से यह तीनों नवजात शिशु के रूप में परिवर्तित हो जाए। इतना कहकर माता। प्रदीप ऊपर पानी छिड़का और बात तीनों देव धनी बालक के रूप में परिवर्तित हो गए। जिसके बाद माता ने उन्हें दूध पिलाया। वह मीठी लोरी सुना कर तीनों को अपनी गोद में सुला दिया। कुछ समय बीतने के बाद आश्रम के बाहर एक सफेद बैल एक विशाल करो और एक राजहंस आ पहुंचे। यह देखकर वहां नारद मुनि लक्ष्मी सरस्वती और पार्वती माता पहुंचेगी।

नारद मुनि ने पूर्ण स्वर में माता अनुसूया से कहा, माता यह तीनों देवियां अपने पतियों से संबंधित प्राणियों को आपके द्वार पर देखकर यहां आ पहुंची हैं। यह तीनों अपने पतियों को खोज रही है। कृपया इनके पतियों को आप इन्हें शॉप दीजिए। सती अनुसूया ने तीनों देवियों को प्रणाम करते हुए कहा बताओ अगर यह सोए हुए शिशु आपके पति है तो आप इन्हें ली जा सकती है। एक समान लगने वाले शिक्षकों को जब तीनों देवियों ने सोते हुए देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। नारद मुनि ने तीनो देवियों से कहा कि आप अपने पतियों को नहीं पहचान सकती कृपया हास्य का पात्र ना बने और जल्दी से अपने-अपने पतियों को गोद मे ले लीजिए। तीनों देवियों ने एक एक बालक को अपनी गोद मे उठा लिया। जब तीनों बालक एक साथ त्रिदेवों के रूप मे खड़े होगए, तब उन्हे मालूम हुआ की सरस्वती ने शिव को, लक्ष्मी ने ब्रहमा को और पार्वती ने विष्णु को उठाया है। तीनों देवियाँ शर्मिंदा होगई, और उन्होंने अनुसूईया से क्षमा याचना करते हुए उन्हे सच बताया की हुमने ही आपकी परीक्षा लेने के लिए अपने पतियों को बाध्य किया था। अनुसूईया का पति धर्म देख कर त्रिदेव प्रसन्न होकर बोले क्या वरदान चाहिए? तब उन्होंने कहा की आप तीनों मेरी कोख से जन्म ले ये वरदान चाहिए। कालांतर मे तीनों ने माता अनुसूईया के गर्भ से जन्म लिया। 

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