शिवाजी के जीवन की प्रेरणास्रोत राजमाता जीजाबाई की कहानी । Story of Rajmata Jijabai | Bharat Mata

समर में ज़ख्म सहते हैं.. उन्हीं का मान होता है.. 

छिपा इस वेदना में भी.. अमर बलिदान होता है..

सृजन में चोट खाता है.. जो छेनी और हथौड़ी की..

वही पाषाण मंदिर में.. कभी भगवान होता है।

आपने मंदिरों में ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों की मूर्तियाँ और संग्रहालयों में स्थित पाषाण प्रतिमाओं को अवश्य देखा होगा। इन कला-कृतियों में से कुछ तो आस्था का केंद्र होने के कारण पूजित होती हैं और कुछ को उनकी सुन्दरता के कारण सराहना मिलती है। किन्तु प्रायः इनको निर्मित करने वाले शिल्पी.. काल के अंधेरों में विस्मृत ही रहते हैं। न तो उन्हें इतिहास के पृष्ठों में कोई स्थान मिलता है और न ही वो स्मृति में कोई स्थान प्राप्त कर पाते हैं। इसी क्रम में कुछ ऐसी मातृशक्तियां भी हैं.. जिन्होनें महान नायकों और महापुरुषों को न केवल जन्म दिया बल्कि उन्हें संस्कारों और मातृशिक्षा से सिंचित भी किया और अपनी शिक्षा से उन्हें इस योग्य बनाया कि वो युगों-युगों तक भावी पीढ़ियों की प्रेरणा बन सके। ये आदर्श पुरुष तो अपने महान कार्यों के कारण अमर हो गए.. परन्तु उनकी मार्ग दर्शिका माताओं को समय ने अल्पकाल में ही विस्मृत कर दिया। ऐसी ही एक विस्मृत मातृशक्ति का नाम राजमाता जीजा बाई है.. जिनका पूरा नाम जीजा बाई शाह जी भोंसले था। उन्हें साधारणतः जीजाई के नाम से भी जाना जाता था। 

वो.. गौरवशाली.. स्वतंत्र मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की माँ थीं। जीजाबाई का जीवन.. कठिनाइयों.. विषम और विपरीत परिस्थितियों से भरा था किन्तु उन्होंने कभी धैर्य नहीं खोया और अपने पुत्र को ऐसे संस्कारों से पोषित किया कि आगे चलकर.. वो हिन्दू समाज का सरंक्षक एवं गौरव बना। स्वराज के प्रति प्रतिबद्धता.. उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता थी। वो अत्यंत दूरदर्शी महिला थीं। उनमें सभी प्रशासकीय गुण थे और वो स्वयं भी शास्त्र के साथ शस्त्र विद्या में भी पारंगत थीं। बालक शिवा में उन्होंने इन सभी गुणों का संचार किया और देश प्रेम तथा स्वराज की ज्वाला प्रदीप्त की। साहस और धैर्य के साथ विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का साहस तो उन्हें स्वतः ही माँ से प्राप्त हो गया था। 

यूँ तो मैंने बुलंदियों के..

हर निशान को छुआ..

जब माँ ने गोद में उठाया..

तो आसमान को छुआ।

माँ के स्नेह एवं त्याग का पृथ्वी पर दूसरा उदाहरण मिलना संभव नहीं है। शायद इसी लिए कहा गया है कि 

“जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी”

यानी जन्म देने वाली माता और मातृभूमि.. स्वर्ग से भी बढ़कर है। 

परम पूज्य माता जीजा बाई के मार्गदर्शन और शिक्षाओं से शिवाजी ने धार्मिक सहिष्णुता और न्याय के साथ साथ राष्ट्र प्रेम और स्वराज स्थापना की प्रेरणा प्राप्त की। अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी नारी सम्मान और मानवीय जीवन मूल्यों के प्रति शिवाजी की निष्ठा का श्रेय भी माँ जीजाबाई को ही है।

छत्रपति शिवाजी अपनी सभी सफलताओं का श्रेय सदा अपनी माँ को ही देते थे। एक ऐसी माँ जिसने अपना सारा जीवन ही अपने बेटे को स्वराज की स्थापना करने और मराठा साम्राज्य के महान शासक बनाने में समर्पित कर दिया। 

आदिलशाही के सेनापति अफ़ज़ल ख़ान ने शिवाजी के बड़े भाई और जीजाबाई के बड़े बेटे संभाजी की छल से हत्या कर दी थी.. जिसका बदला शिवाजी ने माँ के आशीर्वाद से प्राप्त कर लिया था।

अपने संघर्षमय जीवन में शिवाजी ने कई यादगार और अतुलनीय विजय हासिल की.. जैसे तोरणगढ़ किले पर जीत.. मुग़लों की नज़रबंदी से निकलना.. सिंहगढ़ किले पर विजय.. अफ़ज़ल ख़ान की पराजय और मृत्यु आदि किन्तु इन बड़ी सफलताओं में एक समानता ये थी कि वो सभी जीजाबाई द्वारा प्रेरित थीं। शिवाजी और उनके सहयोगियों की सफलता से वो अति प्रसन्न और गर्वित होती थीं। 

सौभाग्य का विषय है कि इस त्यागी और समर्पित माँ का स्वराज का सपना.. उनकी आँखों के सामने सन 1674 में पूरा हुआ जब शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ और वो स्वतंत्र मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले महाप्रतापी राजा बने। उन्होंने स्वतंत्र शासक के रूप में अपने नाम का सिक्का चलवाया और छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से ख्याति अर्जित की।

छत्रपति शिवाजी के इस गौरवशाली राज्याभिषेक के मात्र 12 दिनों के बाद 17 जून 1674 को माता जीजाबाई ने अपने प्राणों का त्याग किया। एक स्वप्न को देखना.. उसमें जीना और उसे साकार होते हुए देखने की इच्छाशक्ति का.. वो प्रतीक बनकर इस संसार से विदा हुईं लेकिन युगों युगों तक ये राष्ट्र उनका ऋणी रहेगा और सदा उनसे प्रेरणा प्राप्त करता रहेगा। आदिल शाही.. निज़ाम शाही और आक्रान्ता मुग़लों के अत्याचार से त्रस्त समाज को मुक्ति प्रदान करने के उनके संकल्प और निष्ठा को भारत समन्वय परिवार का शत शत नमन। हमारा प्रयास है कि वर्तमान की मातृशक्तियां इस माँ से प्रेरणा प्राप्त करें और आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्र प्रेम का संस्कार प्राप्त हो।

“सख्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है..

ये मेरी माँ की दुआओं का असर लगता है।“

मातृशक्ति को नमन।

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