Ashok Stambh: 2500 साल पुराना स्तंभ बना भारत का प्रतीक! | इतिहास से वर्तमान तक अशोक स्तंभ

 

हम सब जानते हैं की 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। लेकिन देश का संविधान 26 जनवरी 1949 को ग्रहण किया गया, और 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया, और इसी दिन अशोक स्तम्भ को सांविधानिक रूप से स्वीकार किया गया।

 

अशोक स्तंभ की उत्पत्ति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

अशोक स्तंभ भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित  प्रतीक है, जो सम्राट अशोक के समय से जुड़ा हुआ है। इसे लगभग 250 ईसा पूर्व सम्राट अशोक ने बनवाया था। अशोक स्तंभ एक धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। सम्राट अशोक ने कई स्तंभों को मुख्य रूप से उन स्थानों पर बनवाया था जो भगवान बुद्ध से जुड़ी हुई थीं, जैसे सांची, सारनाथ, और लुंबिनी। 

इन स्तंभों में विशेष रूप से चार सिंहों की आकृतियां दिखाई देती हैं, जो शक्ति, साहस और शाही अधिकार का प्रतीक मानी जाती हैं।  हालांकि, अशोक स्तंभ केवल एक प्रतीक नहीं था, बल्कि इसके माध्यम से सम्राट अशोक ने अपने शासन के धार्मिक दृष्टिकोण और नीति का प्रचार किया। 

सम्राट अशोक के इस स्तंभ का चिन्ह समय के साथ कुछ स्थानों पर मिट गया था, लेकिन 19वीं शताब्दी में इस स्तंभ की खोज फिर से की गई। इतिहासकार CHARLES ALLEN ने अपनी किताब " Ashoka: The Search for India's Lost Emperor " में इस खोज का विवरण दिया है। इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका जर्मन नागरिक फ्रेडरिक की थी, जिन्होंने सारनाथ में खुदाई के दौरान इस स्तंभ को खोजा। 

फ्रेडरिक को पहले गुप्तकाल के मंदिर के सबूत मिले, लेकिन बाद में उन्हें अशोक स्तंभ के रूप में एक ऐतिहासिक खजाना मिला। यह स्तंभ आज भी सारनाथ म्यूजियम में संरक्षित है, और ये म्यूजियम भारत का पहले ऑनसाइट म्यूजियम है

अशोक स्तंभ को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाना

भारत को 1947 में स्वतंत्रता मिली, और इसके बाद यह सवाल उठा कि भारत का राष्ट्रीय प्रतीक क्या होना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव रखा कि सम्राट अशोक के शासनकाल के प्रतीक को राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया जाए। आपके पासपोर्ट पर जो अशोक स्तंभ आप देखते हैं इसे बनाने का काम प्रख्यात चित्रकार नंदलाल बोस के शिष्य दीनानाथ भार्गव ने इस प्रतीक को संविधान के पहले पन्ने पर उकेरा था। दरअसल ये सिंह चक्रवर्ती सम्राट की ताकत को दिखाते थे और जब भारत में इसे राष्ट्रीय प्रतीक बनाया गया तो इसके जरिए सामाजिक न्याय और बराबरी की बात भी की गई इस प्रतीक को 26 जनवरी 1950 को औपचारिक रूप से राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया।

 

किसे अनुमति है अशोक स्तंभ के प्रयोग की?

अशोक स्तंभ का प्रयोग केवल संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा किया जा सकता है। इनमें राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उपराज्यपाल और उच्च न्यायपालिका के अधिकारी शामिल हैं। इसके अलावा, अशोक स्तंभ का इस्तेमाल किसी भी आम नागरिक के लिए प्रतिबंधित है।

अशोक स्तंभ न केवल भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक न्याय, समावेशिता और भारत की शक्ति और एकता का भी प्रतीक है। इसके द्वारा भारत ने अपनी शांति और सहिष्णुता की नीति को वैश्विक स्तर पर प्रस्तुत किया।

यह स्तंभ भारतीय संस्कृति, इतिहास और धर्म का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, और आज भी इसका महत्व न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में महसूस किया जाता है।

 

भारत माता चैनल से जुड़ें

भारत माता चैनल को सब्सक्राइब करें और भारत माता वेबसाइट पर पढ़ें भारत के अन्य सांस्कृतिक प्रतीकों के बारे में।