भारत का तिरंगा: 1904 से 1947 तक का पूरा इतिहास | Real Story Behind Indian Flag || Bharat Mata
हम हर साल 15 अगस्त के दिन तिरंगा फहराते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सिर्फ ध्वज नहीं, बल्कि हमारी उन अनगिनत कहानियों का साक्षी है जो स्वतंत्रता की कीमत पर लिखी गई हैं।
भारत माता की आज की प्रस्तुति में हम भारतीय ध्वज, यानी तिरंगे के बारे में बात करेंगे, जो न केवल हमारी स्वतंत्रता और संप्रभुता का प्रतीक है, बल्कि हमारे देश की पहचान का हिस्सा भी है।
तिरंगे का महत्व और प्रतीकात्मकता
यह तिरंगा हमेशा भारतीय नागरिकों के दिलों में गर्व और सम्मान का भाव जागृत करता है। इसके तीन रंग—केसरिया, सफेद और हरा— न केवल भारत के विविधता में एकता का प्रतीक हैं, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम की लंबी यात्रा को भी दर्शाते हैं। प्रथम प्रधानमंत्री का कहना था कि झंडा सिर्फ हमारी स्वतंत्रता का प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारे देशवासियों की स्वतंत्रता और गौरव का भी प्रतीक है।
तिरंगे का पहला स्वरूप – भगिनी निवेदिता द्वारा डिज़ाइन
आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का डिज़ाइन पिंगली वेंकय्या ने तैयार किया था, जिसे भारतीय संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को अपनाया था। लेकिन क्या आपको पता है कि भारत का पहला झंडा 1904 से 1906 के बीच स्वामी विवेकानंद की मित्र भगिनी निवेदिता द्वारा डिजाइन किया गया था? इस ध्वज में लाल और पीले रंग थे—लाल रंग स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक था, जबकि पीला रंग जीत और संघर्ष की ओर इंगित करता था। इसमें वज्र का चिन्ह, 108 ज्योति, और कमल का चित्र भी शामिल था, जो शक्ति, विजय और पवित्रता का प्रतीक था।
1906 – कोलकाता- ध्वज इसके बाद 1906 में एक और डिज़ाइन "कोलकाता ध्वज" के रूप में आया, जिसे सचिंद्र प्रसाद बोस और सुनीति कुमार मित्रा ने तैयार किया था। इस ध्वज में तीन रंगों का उपयोग किया गया था—नारंगी, पीला और हरा, जो भारतीय एकता और अखंडता के प्रतीक थे। इस झंडे की ऊपर की पट्टी में आठ कमल के फूल थे, बीच में "वंदे मातरम्" लिखा गया था, और नीचे चंद्रमा व सूर्य के प्रतीक बनाए गए थे।
1907 – बर्लिन ध्वज - 1907 में, विदेशी भूमि पर भारतीय संघर्ष का प्रतीक बना "बर्लिन ध्वज", जिसे भिकाजी कामा, वीर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा ने विकसित किया। इसमें तीन रंग—केसरिया, पीला और हरा—थे और बीच में "वंदे मातरम्" अंकित था।
1917 – होम रूल आंदोलन का झंडा - वर्ष 1917 में बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट द्वारा "होम रूल" आंदोलन के दौरान एक और झंडा प्रस्तुत किया गया। इस झंडे में पाँच लाल और चार हरे रंग की क्षैतिज पट्टियाँ थीं। बाईं ओर ऊपर यूनियन जैक, दाईं ओर चाँद और तारा, तथा सात सितारे सप्तऋषि मंडल के प्रतीक के रूप में झंडे में सम्मिलित थे। यह झंडा भारत की ब्रिटिश शासन में डोमिनियन स्टेटस की माँग और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक था।
वर्ष 1921 में महात्मा गांधी जी के आग्रह पर एक और झंडा डिज़ाइन किया गया, जिसमें चरखा जोड़कर सभी समुदायों के एकीकरण के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया। चरखा स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था।
1931 – तीन रंगों वाला झंडा, - सबसे महत्वपूर्ण बदलाव 1931 में हुआ, जब एक नया झंडा डिज़ाइन किया गया, जिसमें लाल के स्थान पर केसरिया रंग को शामिल किया गया। इस झंडे में तीन रंग थे: केसरिया, सफेद, और हरा, और बीच में चरखा था। यह झंडा भारतीयों की एकता और अखंडता का सशक्त प्रतीक बन गया।
भारतीय ध्वज की संरचना
अब, भारतीय ध्वज की संरचना की बात करें तो यह तीन क्षैतिज रंगों में विभाजित है—केसरिया, सफेद, और हरा। सबसे ऊपर केसरिया रंग है, जो साहस, बलिदान और त्याग का प्रतीक है। सफेद रंग शांति और सच्चाई का प्रतीक है, और हरा रंग जीवन की समृद्धि और प्रगति को दर्शाता है। सफेद पट्टी के बीच में स्थित अशोक चक्र जीवन की निरंतर प्रगति और गतिशीलता को दर्शाता है। इस चक्र में 24 तीलियां होती हैं, जो गति और जीवन के निरंतर विकास का प्रतीक हैं।
भारत का राष्ट्रीय ध्वज खादी से बना होना चाहिए, जिसे महात्मा गांधी जी ने देशवासियों के बीच लोकप्रिय बनाया। यह खादी सूती या तिलहन के धागों से बुना होता है। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के फहराने को एक मूल अधिकार घोषित किया था, और इसे संविधान के अनुच्छेद 11 के तहत अधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त हुई।
क्या आप जानते हैं कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज ने माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई तक भी अपना परचम लहराया था? 2004 में,
रतीय ध्वज माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुंचा था। इसके अलावा, 1994 में यह ध्वज अंतरिक्ष में भी भेजा गया था, और इसका श्रेय जाता है विंग कमांडर राकेश शर्मा को, जिन्होंने भारतीय ध्वज को अंतरिक्ष में उड़ाया।
इस प्रकार, हमारा राष्ट्रीय ध्वज न केवल हमारे इतिहास, संघर्ष और संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह हमारे देश की अनगिनत उपलब्धियों और भविष्य की ओर बढ़ते कदमों का भी प्रतीक बन चुका है।
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