Nataraja Story | शिव का नटराज नृत्य | Shiva Tandava | नटराज की रहस्यमयी कथा और महत्व
जिसके डमरू की ध्वनि सुन सृष्टि जागे, अग्नि कराल से जग भय त्यागे।
एक कर से आशीष झरे, दूजा मोक्ष की राह चले।
जटाओं से गंगा सहज बहे, त्रिनेत्र की ज्वाला तम हर ले।
दायाँ पग अज्ञान मिटाए, बायाँ ब्रह्मज्ञान दिलाए।
प्रकृति निस्तब्ध, समय थमा है, देव-दानव, सबका मन डरा है।
क्या यह नर्तन केवल राग है? या ब्रह्मा-विष्णु का भी आगाज़ है?
राग, रचना, रहस्य अनंत, शिव का यह नृत्य है ब्रह्म का मंत्र।
जीवन की गति, सृजन का सार, नटराज में छिपा है सारा संसार।
भगवान शिव का नटराज स्वरूप: एक परिचय
जब कोई नृत्य केवल कला न होकर ब्रह्मांड की उत्पत्ति, संचालन और पुनर्निर्माण का प्रतीक बन जाए, तब वह साधारण नहीं रहता – वह नटराज बन जाता है। "नटराज" — यह शब्द दो भागों से बना है: 'नट', जिसका अर्थ है नर्तक, और 'राज', जिसका अर्थ है राजा। अर्थात नृत्य का सम्राट । नटराज केवल एक देवता का स्वरूप नहीं है, यह एक विचार है, एक दर्शन है, एक ऐसी शक्ति है जो आत्मा को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। भगवान शिव का यह रूप न केवल नृत्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह समग्र सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार का भी संकेत देता है।
नटराज के रूप में भगवान शिव ने जिस तरह से ब्रह्मांडीय तांडव किया, वह न केवल एक नृत्य था, बल्कि सृष्टि के निर्माण और पुनर्निर्माण के चक्र का प्रतीक बन गया। इस नृत्य के पीछे एक दिलचस्प और गूढ़ कथा भी छिपी हुई है, जो अपस्मार नामक राक्षस से जुड़ी है। अपस्मार, जो अज्ञान और अहंकार का प्रतीक था, उसने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की और उसके बदले में उसे एक अद्भुत शक्ति मिली। इस शक्ति के माध्यम से वह लोगों में मिर्गी जैसी बीमारियाँ फैलाने लगा, जिससे दुनिया में अराजकता फैल गई। जब अपस्मार ने माता पार्वती को भी अपनी शक्तियों से परेशान किया, तब भगवान शिव ने इस राक्षस को समाप्त करने का निर्णय लिया।
परंतु अपस्मार का वध करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि वह अमर था। अगर अपस्मार को मारा जाता, तो ज्ञान और अज्ञान के संतुलन को बिगाड़ने का खतरा था। इस समस्या का हल भगवान शिव ने नटराज के रूप में किया। उन्होंने अपने तांडव नृत्य के दौरान अपस्मार को अपने दाहिने पाँव के नीचे दबा दिया, लेकिन उसे मारा नहीं। इस प्रकार भगवान शिव ने नटराज के रूप में यह सुनिश्चित किया कि अज्ञान और अहंकार को सदैव नियंत्रित किया जाए, लेकिन वे नष्ट न हों, ताकि जीवन के चक्र में संतुलन बना रहे। यह नृत्य चिदंबरम में हुआ था, जो आज भी एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
नटराज की प्रतिमा का हर हिस्सा गहरे प्रतीकात्मक अर्थ से भरा हुआ है। उनके चार हाथों में से एक हाथ में डमरू है, जो सृष्टि के निर्माण की ध्वनि "ॐ" का प्रतीक है। उनके दूसरे हाथ में अग्नि की लौ है, जो सृष्टि के संहार और भ्रम की समाप्ति को दर्शाती है। उनके एक हाथ में अभय मुद्रा है, जो भयमुक्ति और सुरक्षा का संदेश देती है, और उनके दूसरे हाथ से वह अपने बायें पाँव की ओर इशारा कर रहे हैं, जो कृपा और मोक्ष का प्रतीक है। नटराज के चारों ओर की अग्नि की ज्वाला ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है, जो जीवन के दुख और कष्टों को भी समेटे हुए है। उनका सर्प, जो उनके कमर पर लपेटा हुआ है, आत्मा के शरीर से अगली यात्रा की ओर बढ़ने का संकेत देता है। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नटराज के नीचे दबा हुआ अपस्मार अज्ञान और अहंकार के रूप में मानवता की सबसे बड़ी कमजोरियों को दीन-हीन करता है।
भारतीय कला, संस्कृति और नटराज
नटराज की छवि भारतीय कला और संस्कृति में गहरे रूप से समाहित है। यह न केवल मंदिरों में, बल्कि भारतीय शास्त्रीय नृत्य, संगीत और साहित्य में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। भरतनाट्यम जैसे शास्त्रीय नृत्य रूपों में नटराज का तांडव एक प्रेरणा बनकर रहता है। प्रसिद्ध भारतीय नृत्यांगना पद्मा सुब्रह्मण्यम ने कई बार अपने नृत्य में नटराज के रूप को समर्पित किया है। नटराज का तांडव "आनंद तांडव" के रूप में योग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है, जो शारीरिक और मानसिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है।
नटराज का सर्वप्रथम चित्रण महाराष्ट्र स्थित एलोरा की गुफाओं तथा कर्नाटक की बादामी गुफाओं में पत्थरों पर उकेरे गए शिल्पों में प्राप्त होता है, जो लगभग 6वीं शताब्दी ईस्वी का माना जाता है।
नटराज की कांस्य मूर्तियाँ चोल साम्राज्य के समय की हैं, जिसने दक्षिण भारत — विशेषकर वर्तमान तमिलनाडु और केरल — पर 9वीं से 13वीं शताब्दी ईस्वी तक शासन किया।
नटराज का उल्लेख करने वाला सबसे प्राचीन ज्ञात ग्रंथ “अंशुमद्भेदागम” है, जो एक शैव धर्मग्रंथ है और जिसे माना जाता है कि यह ग्रंथ पल्लव वंश के काल में, लगभग 9वीं शताब्दी ईस्वी में रचित हुआ था। ये ग्रंथ संस्कृत और तमिल दोनों भाषाओं में लिखे गए थे और तमिलनाडु क्षेत्र में प्रमुख रूप से प्रचलित थे।
नटराज के नृत्य में निहित सृष्टि, संहार एवं पुनर्जन्म की दार्शनिक अवधारणा संत मणिक्कवाचार द्वारा रचित तमिल भजन संकलन "थिरुवासगम" में भी प्रकट होती है। मणिक्कवाचार भगवान शिव के एक महान भक्त थे और उनका यह काव्य 9वीं शताब्दी में रचा गया था।
अब जानते हैं नटराज से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- नटराज की सबसे प्राचीन मूर्ति का पता चोल साम्राज्य के क्षेत्र में चला, जिसका 9वीं से 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत पर शासन करता था।
- विश्व की सबसे ऊँची नटराज प्रतिमा भारत के तमिलनाडु राज्य के कुंभकोणम् नगर में स्थित है। यह प्रतिमा 23 फीट से अधिक ऊँचाई की है और इसे प्रसिद्ध शिल्पकार वरदराज ने 10 वर्षों में पूर्ण किया था। इसकी स्थापना वर्ष 2022 में की गई।
- नटराज की एक प्रतिमा भारत सरकार द्वारा CERN (सर्न) संस्था को भेंट स्वरूप प्रदान की गई थी।
- तमिलनाडु के चिदंबरम नगर में स्थित नटराज मंदिर दक्षिण भारत के पंच महाशिव मंदिरों में से एक है।
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