Ram Setu | राम सेतु : वैज्ञानिक तथ्य, इतिहास और धार्मिक महत्व

भारत, धर्म और आध्यात्मिकता को उच्च व अति महत्वपूर्ण स्थान देने वाली भूमि। इसी वसुधा का अभिन्न अंग है वाल्मिकी रामायण, वह हिंदू महाकाव्य, जिस में सर्व प्रथम सुप्रसिद्ध राम सेतु का उल्लेख किया गया है।

रामसेतु - Ram Setu Bridge History in Hindi

रामसेतु का निर्माण भगवान राम द्वारा अपनी पत्नी सीता को रावण से बचाने के लिए, लंका तक पहुँचने में सहायता करने के लिए किया गया था।  संसार में कुछ ही ऐतिहासिक संरचनाएँ हैं जो पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक सिद्धांतों को एक साथ जोड़ती हैं। 

Ram Setu Bridge: पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार 

पौराणिक रूप से यह मान्यता है कि लंका तक जाने के लिए प्रभु श्री राम ने समुद्र देव से मार्ग देने की याचना की थी, परंतु पंच तत्व आकाश, धरती, अग्नि, वायु और जल, इस सृष्टि के मुख्य आधार हैं। इन पांचों के स्वभाव, गुण और मर्यादाएं ईश्वर की स्वीकृति से निश्चित की गई हैं, और अगर समुद्र देव प्रभु श्री राम को मार्ग दे देते तो ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन होता और सृष्टि के संतुलन मे विकार उत्पन्न होता। इसलिए समुद्र देव, श्री राम को नल और नील के अद्भुत गुण के विषय मे बताते हैं, की बचपन मे वे ऋषियों का समान नदियों मे फेक देते थे, जिस कारण उन्हे यह श्राप दिया गया था की वे जो भी समान पानी मे फेकेंगे, वो कभी डूबेगा नहीं। इस प्रकार भगवान राम की वानर सेना रामसेतु का निर्माण करती है। विश्वकर्मा पुत्र नल और नील इस सेतु के मुख्य अभियंता होते हैं और अन्य सभी सदस्यों को निर्देश देते हैं। कथाओं के अनुसार इसे ‘नल सेतु’ की संज्ञा भी दी गयी थी। 

Ram Setu Bridge History in hindi

एक पौराणिक कथानुसार, सेतु के निर्माण के लिए तैरते पत्थरों का उपयोग किया गया था। सेतु बनाते समय सभी पत्थरों पर भगवान श्री राम का नाम अंकित किया गया था, जिससे सेतु डूबने से वंचित रहा। 

राम सेतु, तमिलनाडु के तट पर पंबन द्वीप को श्रीलंका के तट पर मन्नार द्वीप से जोड़ने वाला चूना पत्थर का मार्ग है जो की दशकों से राजनीतिक, धार्मिक और पारिस्थितिक विवादों का केंद्र बिंदु रहा है।

Ram Setu Bridge (Adam’s Bridge): Scientific and historical facts - 

भूवैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों की मानें तो इस सेतु की चट्टानें 7000 साल से अधिक पुरानी हैं, जबकि रेत की चट्टान लगभग 4000 साल पुरानी है। इसका तात्पर्य यह है कि चट्टानें किसी अन्य स्थान से यहाँ लायी गयी थीं।
ऐसा कहा जाता है कि 15वीं सदी तक यह सेतु चलने लायक था। परन्तु फिर तूफानों के कारण चैनल गहरा हो गया और इसे दुर्गम बना दिया। रामनाथस्वामी मंदिर के अभिलेखों के अनुसार, 1480 में एक चक्रवात से नष्ट होने तक यह सेतु समुद्र तल से ऊपर था।
वहीँ समुद्रशास्त्र के अध्ययन से पता चलता है कि यह सेतु 7000 वर्षों पुराना है। आश्चर्यजनक बात यह है कि धनुषकोडी और मन्नार द्वीप के निकट समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग रामायण की तिथियों से अभिन्न हैं।

राम सेतु-एडम ब्रिज: विज्ञान, इतिहास और आस्था को जोड़ता हुआ:-

राम सेतु के बारे में सत्य सिद्ध करने वाले एक सिद्धांत के अनुसार, पाक जलडमरूमध्य और मन्नार की खाड़ी कावेरी नदी बेसिन का हिस्सा थे। टेक्टोनिक बदलावों के कारण, राम सेतु सहित क्षेत्र की रूपरेखा तैयार हुई, और इन भू-आकृतियों के आकार के परिणामस्वरूप मूंगा विकास हुआ। 

राम सेतु भारतीय पौराणिक इतिहास और संस्कृति का अद्वितीय प्रतीक था, है और सदैव रहेगा। 

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