जनेऊ | Janeu | The Sacred Thread | जनेऊ धारण करने के महत्व | 200 किलो वजन वाले जनेऊ का रहस्य

जनेऊ का इतिहास और महत्व सनातन धर्म में बहुत गहरा है।  इतिहास से लेकर वर्तमान तक, मुग़ल से ब्रिटिश काल तक जनेऊ धारियों ने अनेक उत्पीड़नों का सामना किया है। लेकिन ये जनेऊ(Janeu-The Sacred Thread) धारण करने वाले मनुष्य के लिए एक अनुपम उपहार है। 

जनेऊ का अर्थ और महत्व

जनेऊ, जिसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहते हैं। भारतीय सनातन सांस्कृतिक परंपरा मे जीवन को परिमार्जित करने, उन्नतिशील बनाने और उसे पवित्रता प्रदान करने वाले 16 संस्कारों मे से एक है। जनेऊ जिसकी सुरक्षा के लिए लोगों ने अपने प्राण भी दे दिए।  प्राचीन काल मे हुए एक नरसंघार मे जब लोगों के जनेऊ का वज़न नापा गया तो उन जनेऊ का वजन 200 किलो था। सबको लगा की इसके बाद मृत्यू का भय फैल जाएगा, लेकिन सनातन संस्कृति के प्रतीक जनेऊ की रक्षा जारी रही। जनेऊ को यज्ञोपवीत के अतिरिक्त उपनयन संस्कार भी कहते हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ है नयन के निकट, लेकिन वास्तविक अर्थ है सत्य की ओर ले जाना। इस संस्कार मे विद्यार्थियों को जनेऊ धारण करवाया जाता है। 

जनेऊ संस्कार की प्राचीन परंपराएँ

जनेऊ को लेकर कई भ्रांतियाँ हैं, जैसे कि इसे केवल ब्राह्मण ही धारण कर सकते हैं। लेकिन सनातन धर्म के अनुसार, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भी जनेऊ संस्कार धारण कर सकते हैं। एक समय ऐसा भी था जब सभी वर्णों द्वारा जनेऊ धारण किया जाता था।  क्यूँ की सनातन धर्म मे ब्राह्मण की अवधारणा जन्म पर नहीं अपितु कर्म पर आधारित है। अनेक हिन्दू धर्म ग्रंथ इस तथ्य को प्रकाशित करते हैं। 

जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद्विज उच्यते।
 वेदपाठात् भवेत् विप्रः, बह्म जानाति ब्राह्मणः।।

स्कन्दपुराण में षोडशोपचार पूजन के अंतर्गत अष्टम उपचार में ब्रह्मा जी द्वारा नारद मुनि को बताया गया है| जन्म से (प्रत्येक) मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज, वेद के पठान-पाठन से विप्र (विद्वान्) और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है|

इसी संदर्भ मे श्री कृष्ण ने भी कहा है-

चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम्।।

अर्थात व्यवसायों की चार श्रेणियाँ लोगों के गुणों और कर्मों के अनुसार मेरे द्वारा बनाई गई थीं। आपको ये जानकार और हैरानी होगी की हरित धर्म सूत्र, अश्वलायन गृह सूत्र, तथा यम स्मृति के अनुसार आठ वर्ष की आयु मे लड़कियों का भी उपनयन संस्कार होता था, और उन्हे ब्रह्मवादिनी की संज्ञा से सुसज्जित किया जाता था।

जनेऊ धागे का महत्व | जनेऊ के तीन धागे क्या प्रदर्शित करते हैं?

जनेऊ के तीन सूत्र त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक, देव ऋण, पितृ ऋण, और ऋषि ऋण के प्रतीक, तथा सत, रज व तम के प्रतीक हैं। साथ ही ये सूत्र तीन आश्रमों के भी प्रतीक हैं। ये धागे आध्यात्मिक ज्ञान की ओर आंतरिक यात्रा का प्रतीक हैं, और इड़ा, पिंगला और सुशुमा तीन नाड़ियों का प्रतिनिधित्व करते है। जनेऊ मे पाँच गांठ लगाई जाती हैं। जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक हैं। ये पाँच यज्ञों, पाँच ज्ञानेन्द्रियों, और पाँच कर्मों के भी प्रतीक हैं। 

जनेऊ कैसे पहनें? जनेऊ पहनने के नियम

जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होती है क्यूँ की जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने के लिए प्रेरित करती है। 32 विद्याएं, चार वेद, वार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्र ग्रंथ और नौ अरण्यक मिला कर होती है। 64 कलाओं मे वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, यंत्र निर्माण, कृषि ज्ञान आदि आते हैं। उपनयन संस्कार एक प्रकार से दूसरा जन्म है। इसमे नौ धागे, नौ गुणों यानि की विवेक, पवित्रता, बलिष्ठता, शांति, साहस, स्थिरता, धैर्य, कर्तव्य एवं समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। 

जनेऊ के लाभ और वैज्ञानिक आधार

सनातन परंपरा मे सभी संस्कारों का ठोस वैज्ञानिक आधार भी है। उपनयन संस्कार पर किये गए शोध के अनुसार दैनिक दिनचर्या के समय कान पर जनेऊ लपटेने का वैज्ञानिक आधार है। शोध के अनुसार जनेऊ को कान के ऊपर लपेटने से कान के पास से गुजरने वाली उन नसों पर दबाव पड़ता है जिनका संबंध सीधे आंतों से होता है जोकि पेट संबंधी समस्याओं के निराकरण मे सहायक है। साथ ही स्मरण शक्ति भी बेहतर होती है। जनेऊ पहनने वाले लोगों को हृदय रोगों और blood pressure संबंधी समस्याओं से भी निजात मिलती है। 

जनेऊ का आधुनिक संदर्भ

भारतीय सनातन संस्कृति मे संस्कारों का आज भी विशेष महत्व है। यद्यपि आज की व्यस्ततम ज़िंदगी मे इन संस्कारों का पूर्ण विधि विधान से पालन नहीं हो पाता, तथापि हिन्दू कुछ बदले हुए स्वरूपों मे इसका पालन करते हैं। वस्तुतः हिन्दू धर्म के ये संस्कार मानव के श्रेष्ठ व्यक्तित्व के निर्माण मे काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आधुनिक सभ्यता के प्रभाव मे उन संस्कारों का स्वरूप अवश्य ही बदला है किन्तु ये संस्कार अपने आदर्शों, श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों एवं विश्वास के कारण आज भी उतने ही प्रासंगिक है, जितने की प्राचीन भारतीय संस्कृति मे थे। ये संस्कार चरित्र निर्माण के प्रमुख आधार हैं। आज अगर आप किसी व्यक्ति को जनेऊ पहने देखे तो इस बात को समझे की वह सनातन धर्म के विस्तार का मार्ग प्रशस्त करने मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, और यही कारण है की जनेऊ इतना महत्वपूर्ण है। 

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