गायत्री मंत्र | गायत्री जप का महत्व क्या है? | ॐ भूर्भुवः स्वः | Bharat Mata
मंत्र की परिभाषा और महत्व
मंत्र शब्द का अर्थ असीमित है। वैदिक ऋचाओं के प्रत्येक छंद भी मंत्र कहे जाते हैं। देवी-देवताओं की स्तुतियों व यज्ञ हवन मे निश्चित किये गए शब्द समूहों को भी मंत्र की ही मान्यता प्राप्त है। तंत्र शास्त्र के अनुसार मंत्र उसे कहते हैं जो शब्द पद या समूह जिस देवता या शक्ति को प्रगट करता है, उस देवता के परिपेक्ष्य मे इन शब्दों को शक्ति मंत्र कहा जाता है।
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उपासना पद्धति और मंत्रों का महत्व
भारतीय प्राचीनतम सांस्कृतिक प्रणाली मे मंत्रों द्वारा उपासना पद्धति को स्वीकार किया गया है। एक प्रकार से धर्म, कर्म और मोक्ष की प्राप्ति हेतु प्रेरणा देने वाली शक्ति के आवाहन को ही मंत्र कहा गया है। इसी क्रम मे गायत्री मंत्र को महामंत्र की संज्ञा प्रदान की गई। समस्त धर्म ग्रंथों मे गायत्री की महिमा एक स्वर मे कही गई है। शास्त्रों मे गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता मे योगेश्वर श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है।
गायत्री छंदसामहं
अर्थात गायत्री मंत्र मे मै स्वयं ही हूँ।
गायत्री मंत्र और इसका अर्थ
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
इस महामंत्र की शाब्दिक व्याख्या कुछ इस प्रकार से व्यक्त की जा सकती है।
ॐ अर्थात परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द
भूः अर्थात भूलोक
भुवः अर्थात अंतरिक्ष लोक
स्वः अर्थात स्वर्गलोक
त अर्थात ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता
वरेण्यम अर्थात पूजनीय
भर्गः अर्थात अज्ञान तथा पाप का निवारक
देवस्य अर्थात ज्ञान स्वरुप भगवान का
धीमहि अर्थात हम ध्यान करते हैं
धियो अर्थात बुद्धि प्रज्ञा
योः अर्थात जो
नः अर्थात हमें
प्रचोदयात् अर्थात प्रकाशित करें।
संक्षेप मे इसे इस प्रकार से भी व्यक्त किया जा सकता है।
उस प्राण स्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा का हम ध्यान करें, वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग मे प्रेरित करें। इन शब्दों का भावार्थ यही है की ‘हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है। जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान को दूर करने वाला है, वह हमे प्रकाश दिखाए और हमे सत्य पथ पर ले जाए। गायत्री महामंत्र के जाप से कुछ शुभेच्छा स्वयं ही जागृत हो जाती हैं। जैसी व्यक्ति के अंदर उत्साह और सकारात्मकता बढ़ने लगती है। व्यक्ति धार्मिक कार्यों की ओर आकर्षित होता है और उसे पूर्वाभास भी होने लगता है।
गायत्री मंत्र का धार्मिक महत्व
शास्त्रों के अनुसार यह सार्वमान्य है की गायत्री मंत्र को समझने मात्र से चारों वेदो के ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। देवी गायत्री को सनातन संस्कृति के धर्म शास्त्रों मे बहुत महत्व दिया गया है। देवी गायत्री की आराधना से सभी मनोकामनाओं को पूर्ति होती है और इस उपासना से अंततः मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। गायत्री को चारों वेदों की जन्मदात्री माना जाता है। इसी कारण यह वेदों के सार के रूप मे प्रतिष्ठित है।
मान्यता है की चारों वेदों का ज्ञान प्राप्त करने के बाद जो पुण्य फल मानव को मिलता है, अकेले गायत्री मंत्र के निरंतर जाप से वही पुण्य फल प्राप्त होता है। चारों वेद शास्त्र और श्रुतियों की जनक दात्री देवी गायत्री ही है। वेदों की जनक दात्री होने के कारण ही इनको वेद माता भी कहा जाता है। त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की आराध्य देवी भी इनको ही माना जाता है। देवी गायत्री, वेदमाता होने के साथ साथ देव माता भी हैं।
गायत्री मंत्र: महर्षि विश्वामित्र का योगदान
गायत्री माता ब्रह्मा जी की दूसरी पत्नी है। इनको पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी के समकक्ष अवतार भी कहा जाता है। एक सार्वमान्य मान्यता के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ मे ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रगट हुआ था। इसके बाद ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या देवी गायत्री की कृपा से अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप मे की। प्रारंभ मे गायत्री मंत्र सिर्फ देवताओं की लिए ही था, बाद मे महर्षि विश्वामित्र ने अपने कठोर तप से गायत्री मंत्र को जन-जन तक पहुंचाया।
ज्ञान और भक्ति के इन अनुपम आदर्शों को जन मानस के कल्याण के लिए उपलब्ध कराने के लिए मानवता इन महर्षियों के प्रति सदा कृतज्ञ रहेगी।
भारतीय संस्कृति और मंत्र साधना पर.