असीम आस्था का प्रतीक गंगा नदी की कहानी | Sacred river of India
गंगा मैया: भारतीय संस्कृति की जीवनदायिनी
गंगा मैया,
राजा जे सोवेला रन बन,
रानी बेइलिया बने हो!
मलहा त’ सोवेला बालू क रेतवा,
त’ तोहरे सरन धइले हो!”
हे गंगा मैया, राजा तो रण भूमि के शिविर में सोता है, रानी भवन में सोती है, पर मैं मलहा (निषाद) तो तुम्हारी गोद में, तुम्हारी रेती और बालू में सोता हूँ। इसलिए तेरी ही शरण आया हूँ, मुझ पर कृपा करें।
गंगा: जैव विविधता का संगम
केवल निषाद ही नहीं, बल्कि भारत भूमि का वृहद जैव तंत्र गंगा की ही शरण में है। न केवल जीवन धारा, अपितु आजीविका के निरंतर स्रोत को प्रवाहित करने वाली गंगा की यह प्रथम धारा लगभग 500 लाख वर्ष पूर्व हिमालय के निर्माण के बाद फूटी। गंगा की यह पवित्र धारा भागीरथ और अलखनंदा दो धराओं से मिलकर सृजित हुई और उत्तराखंड के गंगोत्री हिमनद के गोमुख स्थान से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक 2525 किलोमीटर की दूरी तय करती है।
गंगा का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
गंगा अवतरण का भौगोलिक इतिहास के साथ-साथ मिथकीय इतिहास भी है। एक मान्यता के अनुसार, इक्ष्वाकुवंशीय महाराजा भगीरथ ने अपने तप से गंगा माता को ब्रह्मा जी से पृथ्वी पर अवतरित होने का वरदान मांगा ताकि कपिल मुनि द्वारा श्रापित 60,000 सगरपुत्रों को मोक्ष प्राप्त हो सके। तब ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली मां गंगा के तीव्र वेग को संभालने हेतु आदि योगी शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समाहित कर फिर आगे का मार्ग प्रशस्त किया। इस तरह गंगा मैया की पवित्र धारा से भारत भूमि अभिसिंचित हुई।
वेदों में गंगा का संदर्भ
ऋगवेद में भी गंगा का संदर्भ प्राप्त होता है जहाँ उन्हें जहान्वी नाम से पुकारा गया है। कई पौराणिक कथानकों में गंगा का उल्लेख मिलता है, चाहे वह राजा शांतनु और गंगा की कथा हो या हिमालय पुत्री गंगा का शिव पार्वती पुत्र कार्तिकेय के जन्म में स्थान की महिमा। वेद, पुराण आदि गंगा के महात्म्य से वंचित नहीं हैं।
गंगा दशहरा: संस्कृति की पहचान
शास्त्रीय कथाओं के साथ ही गंगा मैया के अपने लोक पर्वों की छटा भी अनोखी है। ऐसा माना जाता है कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा मैया ने जन जीवन की रक्षा के लिए अपनी धारा बहाई थी। अतः श्रद्धालुओं द्वारा इस दिन गंगा दशहरा का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का रंग हर जगह की अपनी सुगंध स्वयं में समेटे हुए है।
गंगा स्नान और पाप मुक्ति
दसों तरह के पापों से मुक्ति और मन की शुद्धता के लिए इस दिन जगह-जगह से लोग गंगा स्नान और दान करने आते हैं। प्रकृति पूजा हमारी संस्कृति में अनादि काल से चली आ रही है, तभी उत्तराखंड के ग्रामांचल में कई छोटे-छोटे त्योहार मां गंगा के पूजन और उनके प्रति अपनी कृतज्ञता को दिखाने के लिए मनाए जाते हैं। इसके साथ पर्वों में महापर्व माना जाने वाला कुम्भ स्नान जो हर 12 वर्ष में एक बार मनाया जाता है। कुंभ अपने भीतर गंगा के पौराणिक, ऐतिहासिक और लौकिक तीनों पक्षों को समेटे हुए है।
छट पूजा: गंगा की महिमा
मुख्य रूप से मगध क्षेत्र और अब लगभग पूरे देश में छट पूजा बड़ी धूमधाम से होती है। इसी छट के पूजन में स्त्रियों द्वारा गाया जाने वाला बहु प्रचलित लोक गीत है:
"ए गंगा मइया के ऊंची अररिया तिरीयवा एक रोवेली हों,
मइया मोहे अपने लहर मोहे देतु त हम धँसी मरती हो ..."
इस लोक गीत में स्त्रियां माता गंगा से अपनी निजी जीवन की व्यथा कहती हैं, क्योंकि गंगा उनकी मां है। वह अपनी मां से प्रार्थना करती हैं कि गंगा मैया तुमने इस पूरे देश को जन्मों-जन्मों से जीवन दिया तो अब या तो अपनी बेटी के दुख दूर करो या तो अपनी गोद में सुला लो।
गंगा का स्थान भारतीय संस्कृति में
ऋग्वेद, महाभारत, रामायण एवं अनेक पुराणों में गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, महानदी कहा गया है। संस्कृत कवि जगन्नाथ राय ने गंगा की स्तुति में 'श्रीगंगालहरी' नामक काव्य की रचना की है। हिंदी के आदि कालीन महाकाव्य पृथ्वीराज रासो तथा वीसलदेव रास में, जिसके रचयिता नरपति नाल्ह हैं, में पुण्यसलिला मां गंगा का उल्लेख मिलता है। आदिकाल का सर्वाधिक लोक विश्रुत ग्रंथ जगनिक रचित आल्हाखण्ड में भी गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख है।
गंगा नदी: कृषि और अर्थव्यवस्था में योगदान
गंगा नदी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में भारी सहयोग करती है। यह अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई का प्रमुख स्रोत है। इन क्षेत्रों में उगाई जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवं गेहूँ आदि की उपज में इस नदी का अत्यधिक योगदान है।
गंगा: जीवन की आवश्यकता
जन्म से लेकर जीवन जीने तक और फिर जीवन समाप्ति तक गंगा का भारतीय जनमानस में अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इसलिए भारतवर्ष के लिए गंगा नदी नहीं, अपितु मां है।