Sudarshana Chakra की कहानी | कैसे हुआ सुदर्शन चक्र की मदद से 51 शक्तिपीठ का निर्माण

ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।

नारायण द्वारा धारित सुदर्शन चक्र सृष्टि के महान शस्त्रों में से एक है. सुदर्शन दो संस्कृत शब्दों की संधि है. ‘सु’ अर्थात शुभ व ‘दर्शन’ अर्थात दृष्टि.

यह सर्वोच्च्य देवत्व, भगवान् विष्णु का ब्रम्हाण्डीय शस्त्र है.

सुदर्शन चक्र के निर्माण को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार भगवान् विशकर्मा ने सूर्य के तेज से इसका निर्माण किया था. भगवान विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्य देव से संपन्न हुआ था, और विवाह के पश्चात् वो सूर्य लोक में रहने लगीं थी. परन्तु सूर्य का तेज सहन करने में उन्हें अत्यंत कठिनाई हो रही थी. संज्ञा ने अपनी पीड़ा अपने पिता के सामने व्यक्त की. पुत्री की व्यथा सुनकर भगवान् विश्वकर्मा ने सूर्य देव के तेज से “सुदर्शन चक्र” का निर्माण किया. चक्र निर्माण के पश्चात् भी जब समस्या का समाधान न हुआ तो भगवान् विश्वकर्मा ने पुष्पक विमान और त्रिशूल का निर्माण किया. 

मान्यता है की सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को महादेव की भेंट है. किंवदंती यह भी है की सुदर्शन चक्र की उतपत्ति महादेव जी द्वारा की गयी थी. एक बार असुरों द्वारा किये गए अत्याचारों से विचलित हो कर, देवगणों ने भगवान् विष्णु की सहायता लेने का निर्णय लिया. भगवान विष्णु के पास पर्याप्त शक्तियां होने के करण उन्होंने महादेव की साहयता लेने का प्रयत्न किया. महादेव के समीप आने पर विष्णु जी को ज्ञात हुआ की शिव जी साधना में लीन हैं. उन्होंने महादेव की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया और प्रार्थना प्रारंभ की. क्षण दिनों में परिवर्तित हो गये और दिन वर्षों में. भगवान् विष्णु प्रतिदिन महादेव को एक सहस्त्र कमल के फूल अर्पित करते थे, और साथ ही नाम जप करते थे. उस समय असुरों के आक्रमणों में वृद्धि हो रही थी, परन्तु महादेव का ध्यान बाधित नहीं किया जाता सकता था. अत्यंत धैर्य एवं प्रयासों के पश्चात् महादेव ने अपने नेत्र खोल दिए. यह देखकर भगवान् विष्णु को अति प्रसन्नता हुयी. उन्होंने भगवान् शिव को एक सहस्त्र कमल के फूल चढ़ाने प्रारंभ किये किन्तु शीघ्र ही उन्हें यह अनुभूति हुयी की एक फूल कम है. सत्य तो यह है की वह एक फूल भगवान् शिव ने छुपा दिया था, यह देखने के लिए की हरि क्या करेंगे. विष्णु ने सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ अपना एक नेत्र निकाल कर फूल के स्थान पर चढ़ा दिया था. महादेव यह भक्ति देखकर भावनाओं ने अभिभूत हो उठे. उन्होंने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगने को कहा. भगवान विष्णु ने ऐसा अस्त्र प्रदान करने का अनुरोध किया जिसकी सहायता से दैत्यों को पराजित किया जा सकता हो. 

वह अस्त्र था “सुदर्शन चक्र”. एक क्षण में बारह योजन का लक्ष्य भेद करने की क्षमता रखने वाला चक्र.

एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शंकर की पत्नी मां सती के पिता दक्ष प्रजापति ने एक महायज्ञ किया था, जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया , परन्तु भगवान शंकर से रुष्ट होने के कारण उन्हें आमंत्रित नहीं किया. मां सती ने अपने पिता से जब इस विषय में प्रश्न किया, तो उन्होंने भगवान शिव के लिए कटु वचन कहे, इस बात से क्रोधित होकर मां सती ने उसी यज्ञ कुण्ड में अपने प्राणों का आहुति दे दी. 

भगवान शिव को जब इस घटना के विषय में ज्ञात हुआ तो उन्होंने माता सती के शव को उठाकर तांडव प्रारंभ कर दिया. भगवान शिव के क्रोध पूर्ण तांडव से पृथ्वी पर प्रलय का संकट बढ़ने लगा, जिसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से मां सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया. मां सती के मृतशरीर के हिस्से धरती पर जहां गिरे, वहां एक शक्तिपीठ की स्थापना हुई. इस प्रकार कुल 51 शक्तिपीठों का निर्माण हुआ. 

सुदर्शन चक्र के नाम मात्र से ही श्री कृष्ण का बोध होता है. श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र भगवान परशुराम से प्राप्त किया था. जिसके पश्चात् उनकी शक्तियां विकसित हो गयीं. शिक्षा ग्रहण करने के बाद श्रीकृष्ण की भेंट भगवान् विष्णु के अवतार परशुराम से हुई थी. परशुराम ने श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र भेंट किया था. इसके पश्चात् यह चक्र सदैव श्रीकृष्ण के साथ रहा. चक्र से सहयोग से श्री कृष्ण ने महाभारत में चेदी नरेश शिशुपाल का वध किया था. 

सुदर्शन चक्र कोई सामान्य शस्त्र नहीं है, अपितु मानसिक शक्ति से उपयोग किया जाने वाला महास्त्र है. 

मान्यता यह भी है की सुदर्शन गायत्री मंत्र का जाप करने से स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है.

ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि| तन्नो चक्रः प्रचोदयात् ||

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