वैकुण्ठ का प्रतीक - स्वास्तिक | Swastik Symbol

स्वास्तिक संस्कृत के 'स्वस्ति' शब्द से निर्मित है। स्व और अस्ति से बने स्वस्ति का अर्थ है कल्याण | स्वास्तिक मानव, समाज एवं विश्व के कल्याण की भावना का प्रतीक है। प्रत्येक मंगल कार्य में स्वस्तिवाचन कहा जाता है जिसका आरम्भ ही स्वस्ति से होता है।

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः,

स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः

स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।।

अर्थात यह चार वेदों मे से एक है। इसकी पूर्व दिशा मे बृद्धभवा इंद्र, दक्षिण में ब्राहस्पति इन्द्र, पश्चिम मे पूषा – विश्व वेद तथा उत्तर दिशा मे अरिष्टनीम इन्द्र स्थित है। 

शास्त्रानुसार स्वास्तिक की आठ भुजाएँ पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, मस्तिष्क, भाव और भावना है। चार मुख्य भुजाएँ - चार दिशाओं, चार युगों, चार वर्णों, चार आश्रम, चार मनुष्य के धर्म का प्रतीक भी मानी जाती हैं। धन (+) का चिन्ह होने के कारण लक्ष्मी का भी प्रतीक है। स्वास्तिक को सृष्टि चक्र की संज्ञा दी गयी है, बिना स्वस्तिक बनाए कोई भी पूजा, विधान और यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता है।

स्वस्तिक का चिन्ह किसी धर्म अथवा देश-विदेश का चिन्ह नहीं है! यह सभी धर्मो और प्राणी मात्र के लिए पूज्यनीय है, इसमें समस्त मानव जाति के कल्याण की भावना छिपी है। श्री गणेश पुराण के अनुसार स्वस्तिक श्री गणेश का स्वरूप है, इसी कारण मांगलिक कार्यों में इसके अनुसार स्थापना अनिवार्य है।

स्वास्तिक चिन्ह को भारत के अतिरिक्त कई दूसरे देशों में भी विशेष स्थान दिया गया है। सहस्त्र वर्षों से इस चिन्ह का उपयोग हिन्दू, जैन, और बौद्ध धर्म मे हुआ है, परंतु अलग-अलग देशों मे इसका नाम व पहचान अलग-अलग है। 

चीन मे वान, जापान मे मंजी, ब्रिटेन मे फिलफिट, ग्रीस मे टेट्रा – गैमेडिअन, और जर्मनी में हेकेनक्रएज नाम से प्रचलित है। पहले विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने इसे प्रतीक बनाया जो 1939 तक अनेक लड़ाकू जहाजों पर दिखता रहा। 

रोम की प्राचीन सुरंगों में भी स्वास्तिक चिन्ह पाया गया है। स्वास्तिक के पास zotica - Zotica लिखा गया है जिसका अर्थ है-जीवन। इसके अलावा इथोपिया के रहस्यमयी चर्च में भी स्वास्तिक चिन्ह पाया गया है। ग्रीक गणितज्ञ और वैज्ञानिक पाइथागोरस ने भी स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग अलग-अलग जगह किया है। अमेरिकी लेखक स्टीफन हेलार्ड ने स्वास्तिक और इसके महत्व को बताते हुए एक पुस्तक लिखी जिसका नाम है The Swastik (A symbol beyond Redemption)। 

अतः भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग सकारात्मकता और समृद्धि के लिए किया जा रहा है। इस प्रकार स्वास्तिक चिन्ह किसी एक धर्म या सभ्यता से नहीं जुड़ा है अपितु इसमें समस्त विश्व कल्याण की भावना समाहित है। 

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