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दीपं ज्योति परम् ज्योति, दीप ज्योतिर्जनार्दन:। दीपो हरतु मे पापम् , दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।
शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यम् धन सम्पदा शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते।।
अर्थात सनातन संस्कृति में प्रातः एवं सायं की आराधना का विशेष महत्व है। प्रातः-सायं दीपक प्रज्वलित कर मंत्र का जाप करने से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं। सायं के समय दीप प्रज्वलित कर मंत्र जाप करने का विशेष लाभ होता है, जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, और घर में सुख-समृद्धि आती है। शुभ, आरोग्य और ऐश्वर्य देने वाले, वैमनस्य भावों का नाश करने वाले, दीप के प्रकाश को नमस्कार है।
सनातन धर्म कुछ ऐसे तत्व और उनसे जुड़ी विशेषताओं से अलंकृत है, जो इसे आध्यात्मिक क्षेत्र में गौरवान्वित करती हैं। ऐसा ही एक तत्व है अग्नि। हिंदू धर्म में अग्नि का विशेष महत्व है, अग्नि को देवता का स्थान दिया गया है। किसी भी प्रकार का शुभ कार्य हो या पूजा अथवा अनुष्ठान करना हो, सबसे पहले दीपक ही जलाया जाता है। दीपक शुभ, मंगल और कल्याण कारक है (Deepak is extremely auspicious)। चाहे मंदिर हो या घर में बने पूजा घर, हर स्थान पर पूजा के लिए घी या तेल का दीपक अवश्य जलाया जाता है। दीपक जलाने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है, जिसके पीछे कुछ धार्मिक (religious) और वैज्ञानिक (scientific) दोनों कारण हैं।
सबसे पहले चर्चा करते हैं lighting Deepak दीपक जलाने के धार्मिक कारण की, जैसा की हमने आपको बताया की हिन्दू धर्म मे अग्नि को देवता स्वरूप माना जाता है इसलिए मान्यता है की अग्नि देव को साक्षी मानकर उनकी उपस्थिति में किए कार्य अवश्य सफल होते हैं, इसलिए किसी भी देवी- देवता के पूजन के समय दीपक जलाया जाता है। कहते हैं की दीपक प्रज्वलित करने से घरों से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है (eliminates negative energies and darkness)। इसके साथ ही दीपक को अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाले प्रकाश का प्रतीक भी माना जाता है। जिसके पीछे ये धारणा है कि हम अपने जीवन में फैले अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश से समाप्त कर सकते हैं। एक धार्मिक मान्यता यह भी है की जिन घरों मे नियमित रूप से सच्ची श्रद्धा से दीपक जलाए जाते हैं, वहाँ दरिद्रता का नाश और माता लक्ष्मी का निवास होता है।
जैसा की हमने बताया की दीपक प्रज्वलित करने का वैज्ञानिक कारण भी होता है। तो वैज्ञानिकों की माने तो प्राचीन समय से ही गाय के घी से दीपक जलाने की परंपरा चली आ रही है। इसके पीछे ये कारण है कि गाय के घी में रोगाणुओं को दूर करने की क्षमता होती है। घी जब अग्नि के संपर्क में आकर जलता है तो वातावरण को स्वच्छ और पवित्र बनाता है इससे वायु प्रदूषण भी समाप्त होता है। घरों और मंदिरों मे दीपक जलाने से एक स्वच्छ ऊर्जा की प्राप्ति होती है, लोग रोग मुक्त होते हैं, वातावरण स्वच्छ होता है, हवा हल्की होती है जिससे सांस लेने मे आसानी होती है। घी के अतिरिक्त सरसों के तेल के दीपक भी जलाए जाते हैं, कहते हैं की सरसों के तेल में ऐसे तत्व होते हैं, जिनमे वातावरण में उपस्थित रसायनों से प्रतिक्रिया स्वरूप विषैले तत्वों, कीट-पतंगे, रोगाणु आदि की मारने की शक्ति होती है।
दीपक के प्रकाश में सूर्य का तेज एवं अग्नि तत्त्व अवतरित होते हैं। सूर्य के तेज एवं प्रकाश में ब्रह्म प्रकाश होता है। अतः प्रत्येक साधक को दीपक का दर्शन ब्रह्म भाव से ही करना चाहिए। दीपक में सत्, तम एवं रज का समन्वय है। दीपक धवल प्रकाश तेज अर्थात (सत) और श्याम वर्ण अन्धकार अर्थात (तम) का सम्मिश्रण होता है।
मिट्टी के दीपक के जलते ही अन्धकार को प्रकाश (तेज) अपने में लीन कर लेता है। इस प्रकार धवल (सत) एवं श्याम वर्ण (तम) के मिश्रण से लौ में पीलापन आ जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार दो रंगों के मिलने से ही तीसरा रंग बनता है। कहने का तात्पर्य यह है कि दीपक की लौ में पीलेपन की झलक से (सत्+तम) के दर्शन होते हैं।
सबके जीवन को सकरात्मकता और रोशनी से सुशोभित करने वाले दीपक का भारत समन्वय परिवार अभिनंदन करता है। भारत भूमि के अन्य सांस्कृतिक प्रतीकों के बारे मे जानकारी प्राप्त करने के लिए सबस्क्राइब करें भारत माता चैनल।