गीता के माध्यम से जानिए भोजन के लिए जीवन या जीवन के लिए भोजन? | स्वामी सत्यमित्रानंद जी | Pravachan

भारत माता की प्रस्तुति: स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज का गीता संदेश

भारत माता की इस प्रस्तुति में स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज ने गीता के माध्यम से वर्णित किया है कि शुद्ध आहार से अंतःकरण की शुद्धि होती है।

गीता और उपनिषदों का उपयोग कठिन समय में करें

स्वामी जी कहते हैं कि इस संसार के अधिकतर व्यक्तियों को गीता, उपनिषद आदि ग्रंथों का ज्ञान है, परंतु अगर कठिनाई के समय उनका उपयोग ना किया जा सके, तो वह ज्ञान व्यर्थ है।

स्वामी जी का विशेष संदेश

स्वामी जी कहते हैं-

शास्त्राण्यधीत्यापि भवन्ति मूर्खा यस्तु क्रियावान् पुरूष: स विद्वान् |
सुचिन्तितं चौषधमातुराणां न नाममात्रेण करोत्यरोगम्।

अर्थात शास्त्रों का अध्ययन करने के बाद भी लोग मूर्ख रहते हैं, परंतु जो क्रियाशील है वही सही अर्थ में विद्वान है।
किसी रोगी के प्रति केवल अच्छी भावना से निश्चित किया गया औषध रोगी को ठीक नहीं कर सकता। वह औषध नियमानुसार लेने पर ही रोगी ठीक हो सकता है।

भगवद गीता: माँ का स्वरूप

स्वामी जी के अनुसार, भगवद गीता माँ है, शाश्वत है, अविनाशीनी है। इस संसार में आज तक ना कोई उसे नष्ट कर सका है, ना कभी कोई कर सकेगा।
जो व्यक्ति गीता को माँ समझकर उसके चरणों में जाता है, वह माता की भांति ही उसका संरक्षण करती है।

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