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राम नाम की औषधि | Swami Satyamitranand Ji Maharaj | Adhyatm Ramayan Pravachan

इस प्रेरक प्रस्तुति में स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज भक्ति, श्रद्धा और ईश्वर के नाम के महत्त्व को बड़े ही सजीव उदाहरणों के माध्यम से समझाते हैं। वे बताते हैं कि भगवान का नाम केवल जपने की औपचारिकता नहीं है, बल्कि वह हमारे जीवन के भय, दुःख और तापों को शमन करने वाली परम औषधि है।

राम नाम का अद्भुत प्रभाव

जैसे प्रह्लाद जी ने कहा –
“राम नाम जपताम कुतो भयं”
(जो राम का नाम जपते हैं, उन्हें भय कैसा?)

महाराज इस श्लोक के माध्यम से समझाते हैं कि जब कोई व्यक्ति ईश्वर का नाम लेता है तो उसमें अभय होने की शक्ति जागृत होती है। भगवान का नाम लेने के बाद भी यदि कोई भयभीत रहता है तो वह सही मायने में भक्ति नहीं, केवल औपचारिकता कर रहा है।
प्रह्लाद जी ने इसी भाव को समझाते हुए कहा था – “राम नाम जपताम कुतो भयं”। राम नाम लेने वाला भक्त भयमुक्त होता है।

गांधी जी और राम नाम की शक्ति

भक्ति के इस सिद्धांत को स्वामी जी गांधी जी के जीवन प्रसंग से जोड़ते हैं। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी का पुत्र हरिलाल गंभीर रूप से बीमार पड़ा। डॉक्टर ने उन्हें मांसाहार जैसी औषधीय खान-पान की सलाह दी, क्योंकि वहाँ भारत जैसी परिस्थितियाँ नहीं थीं।

लेकिन गांधी जी ने कहा –
“मैं कट्टर वैष्णव परिवार का हूं, धर्म नहीं छोड़ूंगा। चाहे बेटा जाए तो जाए, मैं इस मार्ग से नहीं हटूंगा।”

उन्होंने रात भर जल को राम नाम से अभिमंत्रित किया और अपने बेटे को पिलाया। हर बार जब ताप बढ़ता, वे जल लेकर मंत्रोच्चारण करते और बेटे को पिलाते रहते। भोर होते-होते बुखार उतरने लगा, हरिलाल ने आंखें खोलकर ‘बापू’ कहा और लोग आश्चर्यचकित रह गए।

अंग्रेज डॉक्टर ने पूछा – “आपने डॉक्टरी कहाँ सीखी?”
गांधी जी ने उत्तर दिया –
“मेरी माता ने मुझे यह औषधि घुट्टी में पिलाई थी। संसार के तापों को नष्ट करने की शक्ति परमात्मा के नाम में है – वही सबसे बड़ी भेषज (औषधि) है।”

राम नाम – भय, दुःख और ताप की औषधि

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज समझाते हैं कि यही राम नाम, यही भक्ति मनुष्य को भीतर से शुद्ध, निर्भय और मजबूत बनाती है। भक्ति केवल धर्म का हिस्सा नहीं, बल्कि धर्म का सार है। एक भक्त भगवान से यही प्रार्थना करता है –

“मुझे न धर्म चाहिए, न वसुंधरा के रत्न चाहिए, न भोग की कामनाएँ चाहिएं। बस आपके चरणों में अचल और निश्चल भक्ति ही मेरी सबसे बड़ी संपत्ति बने।”

भक्ति ही धर्म का सार

भक्ति का यह स्वरूप इतना गहरा है कि भक्त की हर क्रिया, हर आचरण अपने आप धर्म बन जाती है। भक्ति के भीतर ही धर्म की महिमा समाई है। इसलिए सच्चा भक्त धर्म के बाहरी आडंबर से परे होकर भी धर्म के सार को जीता है।

वह जानता है कि संसार की वस्तुएँ, सुख-सुविधाएँ और भोग अस्थायी हैं। उनका उपभोग करने वाले भी अंततः दुखी होते हैं, क्योंकि वियोग अनिवार्य है।

सच्चे भक्त की प्रार्थना

इसीलिए सच्चा भक्त भगवान से केवल यही मांगता है कि चाहे जीवन में कितने ही उतार-चढ़ाव आएं,
चाहे पूर्वकर्म के कारण कोई भी परिस्थिति बने,
बस उसके हृदय में भगवान के चरणों के प्रति प्रेम और निष्ठा बनी रहे।

यह विश्वास इतना गहरा है कि वह कह उठता है –

“हे प्रभु! जो कुछ होना है होने दीजिए। मेरे पूर्वकर्मों के अनुसार जो फल है, वही मुझे भोगना है।
पर आपके चरण कमलों में मेरी भक्ति अचल बनी रहे, यही मेरी प्रार्थना है।”

कर्म और विचार – जीवन का निर्माण

स्वामी जी इस भाव को समझाते हुए कहते हैं कि जीवन में सुख-दुख के लिए किसी और को दोष देने की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के सूत्र में बंधा हुआ है। जो हम बार-बार सोचते हैं और जो कर्म बार-बार करते हैं, वही हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं।

जैसे अंग्रेजी में कहा गया है –
“Man of today is the result of million repetitions of thoughts and actions.”
आज का आदमी वही है जो उसने बार-बार अपने मन में सोचा और अपने कर्मों में किया।

रामायण से प्रेरणा

रामायण में लक्ष्मण जी और श्रीराम जी के संवाद का उदाहरण देते हुए स्वामी जी बताते हैं कि अपने पिता के लिए कटु शब्द बोलने पर भी लक्ष्मण जी ने तुरंत प्रायश्चित किया। क्योंकि भक्त जानता है कि उसकी वाणी और उसके विचार ही उसके जीवन का निर्माण करते हैं।

कबीर दास जी भी यही कहते हैं –
“बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाए।”
(जिसने बबूल बोया, उसे आम नहीं मिल सकते।)

यानी हमारे जीवन में जो भी परिस्थितियाँ आती हैं, वे हमारे ही कर्मों और विचारों की उपज होती हैं।इसलिए हमें सजग होकर जीना चाहिए और अपने जीवन को भक्ति से भरना चाहिए।

निष्कर्ष – भक्ति ही सबसे बड़ी औषधि

स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज का संदेश स्पष्ट है –
भक्ति ही सबसे बड़ी औषधि है, वही सबसे बड़ा सहारा है।
न धर्म, न वसु, न भोग – बस भगवान के चरणों में अचल प्रेम और विश्वास ही जीवन को सार्थक बनाता है।