चित्र चरित्र का निर्माण कैसे करता है | Swami Satyamitrananad Ji Maharaj | Kumbh Pravachan - 6

भारत माता चैनल प्रस्तुत करता है स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी जी महाराज की वाणी से प्रस्फुटित "कुम्भ की स्मृतियाँ"। स्वामी जी कहते हैं कि वह मनुष्य अत्यंत भाग्यशाली है जो प्रयागराज के कुम्भ मे विभिन्न स्थानों पर बैठकर ईश्वर की महिमा का श्रवण कर रहा है।

कुम्भ का आयोजन - एक दिव्य अवसर

कुम्भ का आयोजन केवल एक साधारण मेला नहीं है, बल्कि यह एक दिव्य अवसर है, जहाँ आत्मा को परमात्मा से जुड़ने का एक विशेष अवसर प्राप्त होता है। यह वह समय होता है जब समस्त संसार के ऋषि-मुनि, संत-महात्मा और साधक एकत्रित होते हैं, और स्वयं भगवान की महिमा का गान करते हैं।

श्रवण और दर्शन - जीवन में बदलाव के दो साधन

स्वामी जी आगे कहते हैं कि संसार में दो चीजों के माध्यम से बदलाव आता है – एक दर्शन और दूसरा श्रवण। यदि हम किसी महात्मा का दर्शन करते हैं या उनकी वाणी को सुनते हैं, तो वे हमारे भीतर एक सकारात्मक बदलाव लाने में समर्थ होते हैं। कुम्भ में, दोनों ही चीजें सहज रूप से उपलब्ध होती हैं – महात्माओं का दर्शन और उनके प्रवचन।

जीवन में सकारात्मकता का स्रोत - महात्माओं के दर्शन

स्वामी जी की यह गहरी शिक्षाएँ हमें बताती हैं कि जैसे हम जिस प्रकार के दर्शन करते हैं, वैसे ही हमारा जीवन भी बदलता है। यदि हम निरंतर सकारात्मक और ऊँचे आदर्शों वाले महात्माओं का दर्शन करेंगे, तो हमारी मानसिकता, हमारी सोच और हमारा आचरण भी वैसा ही बन जाएगा। जैसा दर्शन होता है, वैसा ही जीवन बनता है।