गीता के माध्यम से जानिए की ईश्वर में आसक्ति कैसे हो - Pravachan
प्रस्तुत विडिओ मे स्वामी सत्यामित्रानंद गिरि जी महाराज गीता के सातवें अध्याय को वर्णित करते हुए कहते हैं कि अर्जुन की सिर्फ यही इच्छा है की भगवान अर्थात श्री कृष्ण उनसे बात करते रहें, जितनी बार ईश्वर उनके समक्ष श्वास भी लेते हैं, उनके जीवन की दुर्गंध दूर होती जाती है।
अध्याय 7: भगवद गीता | Geeta ke Updesh in Hindi
स्वामी जी बताते हैं की तुलसीदास जी ने लिखा है – “नाना पुराण निगमागम सम्मतं यद्” अर्थात जो मै रामायण लिख रहा हूँ, इसमे अनेक शस्त्रों की बातें हैं। तुलसीदास जी आसक्ति का केंद्र वर्णित करते हुए लिखते हैं,
“जननी जनक वंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुह्रद परिवारा।।
सबकै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहिं बाँधि वर डोरी।।”