श्रीमद भागवत गीता सार | श्री हरिहर मरुती धाम | भाग 1
श्री हरिहर मरुती धाम (भाग 1) - स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज | Bharat Mata
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥
कल्याणानां निधानं कलिमलमथनं पावनं पावनानां
पाथेयं यन्मुमुक्षोः सपदि परपदप्राप्तये प्रस्थितस्य।
“सकल कल्याणोंका निवास स्थान, कलियुगके पापोंका नाशक, पावनोंको भी पावन करने वाला, परमपदको पानेकी लालसासे प्रस्थान करने वाले मुमुक्षुओंका पाथेय, कविकुलचूडामणि महर्षि वाल्मीकि आदि कवियोंकी सुधन्या वाणीके लिये एकमात्र विश्रामस्थान, सत्पुरुषोंका जीवन, और धर्मरूप वृक्षका बीज ‘रामनाम’ आप सभीके लिये निःश्रेयसका दायक हो”
विश्रामस्थानमेकं कविवरवचसां जीवनं सज्जनानां
बीजं धर्मद्रुमस्य प्रभवतु भवतां भूतये रामनाम॥
ॐ यस्यांके च विभाति भूधरसुता देवापगा मस्तके।
भाले बाल विधुरगले च गरलं यस्योरसिव व्यालराट।
सोयं भूति विभूषण:सर्वाधिपा सर्वदा।
सर्वा सर्व गत: शिवा शशिनिभा श्री शंकरा पातुमाम।।
अर्थ:- जिनकी गोद में हिमाचलसुता पार्वतीजी, मस्तक पर गंगाजी, ललाट पर दूज का चन्द्रमा, कंठ में हलाहल विष और वक्षःस्थल पर शेषजी सुशोभित हैं, वे भस्म से विभूषित, देवताओं में श्रेष्ठ, सर्वेश्वर, कल्याण रूप, चन्द्रमा के समान शुभ्रवर्ण शंकरजी सदा हम सब की रक्षा करें|
मूकं करोति वाचलं पङ्गुं लङ्घयते गिरिं।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्॥
“जिनकी कृपा से गूंगे बोलने लगते हैं, लंगड़े पहाड़ों को पार कर लेते हैं, उन परम आनंद स्वरुप श्रीमाधव की मैं वंदना करता हूँ।“
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || १ ||
नमो ब्रह्मण्य देवाय गोब्राह्मण हिताय च ।
जगत् हिताय कृष्णाय गोविंदाय नमो नमः ॥
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् |
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत् ||
अर्थ – भगवान नारायण देवी सरस्वती और व्यास जी को भी मैं बारंबार नमस्कार करता हूं।
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