श्रीमद भागवत गीता सार | श्री हरिहर मरुती धाम | भाग 2

श्रीमद भागवत गीता सार | श्री हरिहर मरुती धाम | भाग 2 | Bharat Mata

यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति। 
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥
“जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है|”
स्वामी जी बताते हैं की भगवान कहते है की जो मुझमे सबको देखता है और सब मे मुझको देखता है, वो मेरी दृष्टि से ओझल नहीं होता और मै उसकी दृष्टि से ओझल नहीं होता। 
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥ १ ॥
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ॥
स्वामी जी कहते हैं की जिसके हृदय मे ईश्वर है वो संसार मे कहीं भी जाए उस हर स्थान पर लाभ की प्राप्ति होगी। 
सर्व धर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। 
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
इस श्लोक में परम पुरुष, परमात्मा भगवान्श्री कृष्ण ने अपने भक्त को भक्ति के चरम मार्ग में प्रवेश का निमन्त्रण दिया है। 
जब सिद्धांत जीवन के क्रियाकलापों के साथ एकरूप होने लगते हैं| तब कुछ कहने की आवश्यकता नहीं होती | जो कुछ भी हमें उन कार्यों से प्राप्त होने लगता है, वही शास्त्र बन जाता है| इसलिए कर्म की महत्ता को बल दिया गया है. हरिहर मरुति धाम में स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज सिद्धांत की इसी महत्ता को वर्णित कर रहे हैं|

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