श्रीमद भगवत गीता सार | श्री हरिहर मारुती धाम भाग 4
श्री हरिहर मारुती धाम भाग 4 - स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज | Bharat Mata
अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया॥
तिन्ह महँ जो परिहरि मद माया। भजै मोहि मन बच अरु काया॥
ईश्वर कहता है की यह संपूर्ण विश्व मेरे द्वारा ही जन्मा हुआ है। अतः सब पर मेरी बराबर दया है, परंतु इनमें से जो मद और माया छोड़कर मन, वचन और शरीर से मुझको भजता है,॥
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः।।
हजारों मनुष्यों में कोई एक वास्तविक सिद्धि के लिये यत्न करता है और उन यत्न करने वाले सिद्धों में कोई एक ही मुझे तत्त्वसे जानता है।
अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम्।।
स्वामी जी बताते हैं की समस्त भूतों के महान् ईश्वर रूप मेरे परम भाव को नहीं जानते हुए मूढ़ लोग मनुष्य शरीरधारी मुझ परमात्मा का अनादर करते हैं।।
सर्वं खल्विदं ब्रह्म, नेह नानास्ति किंचन ॥ अर्थात यह समस्त विश्व ही ब्रह्म हैं, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है॥
स्वामी जी कहते हैं की परमात्मा महेश्वर है, अर्थात सबका ईश्वर है।
कर्तुं अकर्तुं अन्यथा कर्तुं समर्थ इति ईश्वर!
जो चाहे करे न करे अन्यथा करे-ऐसे समर्थ ईश्वर का श्रद्धापूर्वक आश्रय लेना चाहिये।
श्रीमद भागवत गीता के इस अध्याय में पवित्रता के बारे में स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज बता रहे हैं. अगर आप को ये जानना है कि आप परमात्मा के कितना निकट हैं तो उसके लिए आप में पवित्रता होना बहुत जरूरी है, क्योंकि मनुष्य के जीवन में पवित्रता से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसके पास जितनी पवित्रता है. वह उतना ही परमात्मा के निकट है. आप ईश्वर के कितना निकट है. इसे किसी और से पूछने की जरूरत नहीं है. क्योंकि जैसी आप की निष्ठा, जैसी आपका पवित्रता, जैसी आपकी भावना होगी. वैसी आपकी परमात्मा से निकटता होगी।
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