अहंकार मिटाने के लिए स्वयं को ईश्वर का उपकरण बनाए | SHRIMAD BHAGWAT GEETA - Pravachan
प्रस्तुत विडिओ के माध्यम से स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरी जी महाराज बताते हैं की जितना निजत्व बढ़ेगा उतनी आत्मीयता भी बढ़ेगी। अगर आत्मीयता के सूत्र मे यह सारा संसार बंध जाए तो समय के साथ युद्ध, लड़ाई, कलेश, कलह सब समाप्त हो जाएगा। स्वामी जी बताते हैं की प्रभु कहते हैं की,
रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययो:।
प्रणव: सर्ववेदेषु शब्द: खे पौरुषं नृषु॥८॥
अर्थात भगवान् किस प्रकार अपनी विविध परा तथा अपरा शक्तियों द्वारा सर्वव्यापी हैं। परमेश्वर की प्रारम्भिक अनुभूति उनकी विभिन्न शक्तियों द्वारा हो सकती है और इस प्रकार उनका निराकार रूप में अनुभव होता है। जिस प्रकार सूर्यदेवता एक पुरुष है और अपनी सर्वत्रव्यापी शक्ति-सूर्यप्रकाश-द्वारा अनुभव किया जाता है, उसी प्रकार भगवान अपने धाम में रहते हुए भी अपनी सर्वव्यापी शक्तियों द्वारा अनुभव किए जाते हैं।
जल का स्वाद जल का मूलभूत गुण है। कोई भी समुद्र का जल नहीं पीना चाहता क्योंकि इसमें शुद्ध जल के स्वाद के साथ-साथ नमक मिला रहता है। जल के प्रति आकर्षण का कारण स्वाद की शुद्धि है और यह शुद्ध स्वाद भगवान की शक्तियों में से एक है। निर्विशेषवादी जल में भगवान की उपस्थिति जल के स्वाद के कारण अनुभव करता है और सगुणवादी भगवान् का गुणगान करता है क्योंकि वह प्यास बुझाने के लिए सुस्वादु जल प्रदान करता है। परमेश्वर को अनुभव करने की यही विधि है।
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